–शोभा आफताब
यारो मेरी अर्थी उठाने से पहले,
दिल निकाल लेना जलाने से पहले।
इस दिल में रहता है और कोई
कहीं वो न जल जाए मेरे जल जाने से पहले।
प्यार भी क्या ग़ज़ब की चीज़ है जिसे पाने की हर किसी को चाहत होती है। यह प्यार मिल जाए तो ज़िन्दगी स्वर्ग लगने लगती है और बिछड़ जाए या छीन लिया जाए तो यही ज़िन्दगी नरक से भी बदत्तर लगने लगती है। इन्सान मौत मांगता है तो वह भी उस का मज़ाक उड़ाती है। इस ज़िन्दगी में प्यार से बड़ी सौगात कोई नहीं और प्यार से बड़ा दर्द भी कोई नहीं। प्यार ही हमारी ज़िन्दगी को संवार भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है।
इश्क के चिरागों का हर जगह उजाला है।
इश्क मिल गया जिसे वह नसीबों वाला है।
हमारे देश में सच्चे प्यार को लेकर कई कथाएं सुनाई जाती है और उन प्रेमियों का नाम लेना हम गर्व की बात समझते हैं। हम आज उन प्रेमियों की प्रेम कहानियां सुनाते हैं और उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते। लेकिन अगर कोई लड़की या लड़का इस प्यार के रास्ते पर चलने की कोशिश करता है तो यह मज़हब, जात-पात, अमीरी-ग़रीबी और सभी इन्सान के रास्ते में दीवार बन जाते हैं। अगर इन्सान उन प्रेम कहानियों को गर्व के साथ सुनाता है तो उसी प्यार का विरोध क्यों करता है।
आज इतने विकास के बाद भी कई प्रेमियों की प्रेम कहानियां इस झूठी जात-पात, मज़हब की भेंट चढ़ जाती हैं। कई प्रेमी अपने प्यार से बिछड़ जाने के कारण आत्महत्या कर गए और कई पागल हो गए।
दुनिया बड़ी ज़ालिम है,
दिल तोड़ के हंसती है।
एक लहर किनारे से
मिलने को तरसती है।
तड़प कर जो लिखा करते हैं उनके ‘शेयर’ खूबसूरत हुआ करते हैं मुहब्बत लोगों को शायर भी बना देती है।
कितने ज़ालिम हैं ग़म को
खुशी कहते है लोग,
शमा पिघली जा रही है,
रौशनी कहते हैं लोग।
आज भी हीर-रांझा की कब्र पर जाने का सौभाग्य ढूंढ़ते हैं जबकि वह पाकिस्तान में है। लेकिन सारी दुश्मनी भूल कर भी उन प्रेमियों की कब्रों पर जाते हैं। और जब असल ज़िन्दगी में कोई हीर-रांझा बनने की कोशिश करता दिखाई देता है तो उनके साथ भी वही बर्ताव किया जाता है जो हीर-रांझा के साथ हुआ था।
हम सब प्यार को उस भगवान् की देन मानते है। प्यार को भगवान् का रूप मानते है तो आज तक इस को क्यों अपना नहीं पाए। आज भी इस के दुश्मन क्यों बनते हैं। उस भगवान् की दी हुई प्यार की देन के आगे इन्सान की बनाई जात-पात, मज़हब सिद्धांत हमेशा ज़्यादा बड़े हो जाते हैं। हम इन को तोड़ नहीं सकते। जो इन्सान-इन्सान से प्यार नहीं कर सकता, इन्सान के प्यार को अपना नहीं सकता, उसको देख नहीं सकता। वह इन्सान भगवान् से कैसे प्यार कर सकता है। उसको कैसे प्राप्त कर सकता है।
क्या इस प्यार को इस दुनियां में लाने के लिए अभी और प्यार करने वालों की क़ुरबानियों की ज़रूरत है? क्या ऐसे ही दो प्यार करने वालों का विरोध होता रहेगा। प्यार से बड़ी इस दुनियां में कोई नेमत नहीं। प्यार वो जज़्वा है जो आदमी को जीना सिखाता है। यह समझाए से समझाया नहीं जा सकता और मिटाने से मिटाया नहीं जा सकता। क्यूं प्यार भरे दिलों को हमेशा तड़पाती है यह दुनिया। नफ़रतों में लिप्त यह इन्सान खुद इन्सानियत से दूर होते है। इनका कसूर नहीं यह मजबूर होते है ज़रा मगरूर होते है। भगवान इनको तौफीक दे। यह मुहब्बत को समझें। और खुदा इनको भी प्यार और मुहब्बत से नवाज़े। दुनियां से नफ़रत का नामो-निशान मिट जाए-आमीन।