-पवन चौहान

जब बच्चे छोटे होते हैं तो मां-बाप उनका हाथ पकड़कर उन्हें चलना सिखाते हैं। जब वे गिरने लगते हैं तो उन्हें सहारा देकर मां-बाप चोट से बचाते हैं। जब बच्चे को नींद नहीं आती तो उसे मां लोरियां गा कर सुलाती है। बच्चे की बीमारी में रात-रात भर जागकर मां-बाप भगवान से उसके स्वस्थ होने की कामना करते हैं। बच्चे की ग़लती के कारण मां-बाप को अन्य लोगों से खरी-खोटी सुनकर शर्मिन्दा होना पड़ता है। अपनी इच्छाओं को दिल में ही दबाकर वे अपने बच्चों की हर ख्‍वाहिश व ज़रूरत को पूरा करने में अपनी पूरी ज़िन्दगी तक गुज़ार देते हैं। लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं। छोटी-छोटी बातों के कारण उनमें दूरियां पनपने लगती हैं।

राहुल अपने पापा से इसलिए ढंग से बात नहीं करता क्‍योंकि उसे अपने बूढ़े पापा का किसी बात के लिए बार-बार समझाना अच्छा नहीं लगता। वह सोचता है कि जो वह कर रहा है सही है। उस वक़्त तो वह अपने मां-बाप को उसके कार्य में बाधक तत्व जैसी संज्ञाएं भी दे डालता है। लेकिन जब वह अपने कार्य में असफल रहता है तो फिर वह अपना दुखड़ा लेकर मां-बाप के सामने बैठ जाता है। वे फिर भी अपना सारा अपमान, पीड़ा भूलकर राहुल को पहले जैसा प्यार, दुलार, उत्साह और सहारा देते हैं। मां-बाप बच्चों को हर परिस्थिति में अपनाने को तैयार रहते हैं लेकिन बच्चे ऐसा नहीं कर पाते।

आज देखा गया है कि मां-बाप या वृद्ध मां-बाप बुज़ुर्ग स्वयं को अपमानित, उपेक्षित-सा महसूस कर रहे हैं। इसके पीछे कई कारण गिनाए जा सकते हैं। जिसमें सबसे बड़ा हाथ आज की तेज़ रफ्‍़तार ज़िंदगी और रुपए कमाने की होड़ कहा जाए तो ग़लत न होगा। यदि उपेक्षा, अपमान की बात घर के बाहर तक सीमित रहे तो दिल को इतना आघात नहीं पहुंचता। परंतु यदि घर में ही बुज़ुर्ग को अपमानित व उपेक्षित किया जाने लगे तो यह स्थिति बूढ़े मां-बाप या बुज़ुर्ग के लिए गंभीर चिंता और पीड़ा का विषय बन जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए आइए कुछ बातों पर अमल करें।

बच्चों के लिए:  मां-बाप हमारे हर सुख-दु:ख को अपना समझकर पूरी ज़िंदगी नि:स्वार्थ भाव से झेलते हैं। वे हर परिस्थिति में हमारा सहारा बने रहते हैं। अब जब वे बूढ़े हो गए हैं तो उन्‍हें हमारे सहारे की विशेष उम्मीद रहती है। हमें चाहिए कि हम भी उनकी इस उम्मीद पर खरे उतरते हुए इस अवस्था में नि:स्वार्थ भाव सें सेवा करें। इसके लिए…………………

उनका हाल-चाल पूछते रहें: सुबह दफ्‍़तर जाने से पूर्व मां-बाप या बुज़ुर्ग के पांव अवश्य छुएं और उनका हाल चाल पूछें। यदि आप घर से बाहर रहते हैं या बाहर नौकरी करते हैं तो हफ्‍़ते में एक या दो बार फ़ोन के माध्यम से उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहें। आपसे बातचीत करके जहां वे स्वयं को आपके क़रीब पाएंगे वहीं आप भी मां-बाप के साथ की ऊर्जा को अपने क़रीब से महसूस करेंगे। पत्र रिश्तों को जोड़े रखने का एक सशक्‍त माध्यम माना गया है। इसलिए बीच-बीच में पत्र अवश्य लिखते रहें।

समय निकालें: चाहे आप कितने भी व्यस्त क्यों न हों। अपने परिवार के साथ मां-बाप को समय-समय पर बाहर घुमाने ले जाने के लिए समय निकालें। इससे जहां तन-मन स्वस्थ रहेगा वहीं अपनत्व भाव में भी वृद्धि होती है।

उनके अतीत के बारे में पूछें: ख़ाली समय में मां-बाप या बुज़ुर्ग से उनके बीते हुए कल के बारे में पूछें। आपको ढेर सारी दिलचस्प, रोमांचक, रोमांटिक, प्रेरणादायक बातें सुनने को मिलेंगी जो आपके व्यक्‍तित्व व सामाजिक व्यवहार को निखारने में आपकी मददगार साबित होंगी। ये बातें जहां आपको दुनियां के प्रति एक नया अनुभव प्रदान करेंगी। वहीं आपका साथ पाकर और पुरानी यादों को आपसे सांझा कर मां-बाप या बुज़ुर्ग भी सुख की अनुभूति प्राप्‍त करेंगे।

उपहार दें: यूं तो मां-बाप लेने के बजाय देने के लिए ज्‍़यादा उत्साहित रहते हैं लेकिन उपहार, प्यार व अपनत्व का अहसास करवाता है इसलिए जब भी आपकी आर्थिक स्थिति आपको इजाज़त दे। आप मां-बाप को अपने सामर्थ्‍यनुसार उपहार अवश्य दें। इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि आप किसी ख़ास त्यौहार या अन्य किसी ख़ास दिवस का इंतज़ार करें। इससे रिश्तों में प्रगाढ़ता बनी रहती है।

उनकी बात मानने का प्रयास करें: बूढ़े मां-बाप ताउम्र अनुभव की भट्ठी में तप कर खरा सोना बन चुके होते हैं। जब मां-बाप आपको किसी बात के लिए टोकें तो उसमें अवश्य कोई न कोई ख़तरा या नुक़सान की संभावना बनी रह सकती है। मां-बाप द्वारा कही बात को जानने का प्रयास करें। बात को हलके में न लेते हुए उस पर गहनता से विचार कर लें।

दूसरी बात- हो सकता है आज के किसी आधुनिक उपकरण या नई चीज़ या फिर किसी नए व्यवसाय की जानकारी आपके माता-पिता को न हो। तो उस समय आपका फ़र्ज़ है कि उन्हें पहले उस चीज़ या व्यवसाय के बारे में प्यार और धैर्य से समझाएं। इससे आपको कार्य करने में आसानी रहेगी। यदि उन्हें भी इस नए व्यवसाय में आपके साथ कार्य करने की इच्छा हो तो उन्हें अपने साथ अवश्य इस क्षेत्र में लाएं। इससे जहां उनका ख़ालीपन दूर हो जाएगा वहीं आपको भी उनका अनुभव सहारा और मार्गदर्शन मिलता रहेगा। इससे आपको अपना कार्य क्षेत्र और बढ़ाने में भी सहायता मिलेगी।

 मां-बाप को बेसहारा न छोड़ें: अक्‍सर देखने में आता है कि जब भाई-भाई एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं तो ऐसे में मां-बाप बिल्कुल अकेले पड़ जाते हैं। उस समय स्वार्थ में डूबे बच्चे सिर्फ़ अपने लिए ही सोचते हैं। मां-बाप को अपने साथ रखने में बोझ समझते हैं। जिस अवस्था में उन्हें सहारे और प्यार की ज़रूरत होती है। उसी समय उनका अपना खून उनसे पीछा छुड़ाने के उपाय ढूंढ़ता है। बेशक आप भाई किसी भी कारण अलग हो चुके हैं लेकिन अपने मां-बाप को कभी अपने से अलग न करें। उनको इस बात की आज़ादी रहे कि वे जिसके पास चाहें रहें, जहां चाहे खाएं-पीएं। आप सब भाइयों के दिल व घर के दरवाज़े कभी अपने मां-बाप के लिए बंद न हों।

मिलकर भोजन करें: मां-बाप के साथ पूरे परिवार को भोजन करना चाहिए। इससे आत्मीयता का भाव बढ़ता है।

धार्मिक कार्यों में साथ दें: देखा गया है कि वृद्धावस्था में व्यक्‍ति ईश्‍वर की भक्‍ति के साथ ज्‍़यादा क़रीब से जुड़ जाता है। इसमें वृद्ध मां-बाप का साथ दें। उनके हाथों से साधु-संतों व लोगों को भोज करवाएं।

उन्हें धार्मिक स्थलों के दर्शन व चार धाम की यात्रा करवाएं। इससे उनके मन को शांति व संतुष्‍टि मिलेगी और इस तरह के कार्यों में आपका साथ पाकर अपने जीवन को धन्य समझेंगे।

उचित सम्मान दें: कई बार देखा जाता है कि किसी समारोह व अन्य कार्यक्रम में आमंत्रित बुज़ुर्ग को अनदेखा कर सभी अपने में मस्त रहते हैं। ऐसे में बुज़ुर्ग अपने आप को अकेला व अपमानित महसूस करता है। ऐसी स्थिति न पनपने दें। बुज़ुर्ग का घर में, घर के बाहर जैसे समारोहों में, सार्वजनिक स्थलों, बस, रेल आदि में उचित आदर-सत्कार करें।

मां-बाप या बुज़ुर्गों के लिए: ताली दोनों हाथों से ही बजती है। यदि मां-बाप या बुज़ुर्ग अपने सहारे, आदर-सत्कार में कमी या अपने प्रति उपेक्षा व अपमान महसूस करता है तो हो सकता है वह उसके अपने व्यक्‍तिगत व्यवहार के कारण हो। यूं भी सभी आदमी चाहे वह मां-बाप या अन्य कोई बुज़ुर्ग व्यक्‍ति हो एक जैसे नहीं होते। वे भी अपने स्वार्थ में फंसकर बहुत से ऐसे ग़लत फ़ैसले ले लेते हैं। जिसके कारण उन्हें अपनों के सहारे, आदर-सत्कार से वंचित रहना पड़ जाता है। ऐसी स्थिति न उभरे आइए इसके लिए………

बच्चों में समानता रखें: चाहे कोई कुछ भी कहे लेकिन हक़ीक़त यही ब्यान करती है कि ज्‍़यादातर मां-बाप आज भी लड़का और लड़की में भेदभाव बरतते हैं। यहीं से ही ऐसे मां-बाप अपने लिए सहारे की कमी और आदर-सत्कार के अभाव का बीज अपने लिए स्वयं बो देते हैं। ऐसी स्थिति न आए इसके लिए बच्चों को समान नज़र से देखें।

जायदाद का सही बंटवारा करें: यह तो सर्वविदित है कि मृत्यु के बाद कोई अपने साथ कुछ नहीं ले जाता। इसलिए अपने रहते सभी बच्चों में जायदाद का सही बंटवारा करें। इससे आपके दिल को भी तसल्ली रहेगी और बच्चों में भी बाद में लड़ाई-झगड़ा पनपने की संभावना को विराम मिल जाएगा। आपके लिए आपके बच्चों के दिल में आदर व सेवा भाव भी बना रहेगा। आप जग हंसाई से भी बचे रहेंगे।

समय के साथ चलने का प्रयास करें: हो सकता है बदलते समय के बदलते कार्य आपको अपनी सोच के मुताबिक़ खरे न लगें। लेकिन समय की मांग के अनुसार कार्यों में परिवर्तन होता रहता है। इसलिए बेहतर होगा कि आप नए कार्य की जानकारी प्राप्त करें। उसमें अपने बच्चों का साथ दें। काम को जाने बग़ैर उसमें व्यर्थ की टोका-टाकी न करें। समय के साथ चलने का प्रयत्न करें।

नशे से बचें: नशा करने वाले की समाज में क़द्र कम ही होती है। इसलिए नशे से दूर रहें ताकि आपके बच्चों को आपके कारण कहीं शर्मिन्दगी न उठानी पड़े। यूं भी नशेड़ियों की पहले घर में और फिर धीरे-धीरे समाज में इज्‍़ज़त घटने लगती है।

अपनी रुचियों की ओर ध्यान दें: यदि कोई बुज़ुर्ग पेंटिंग, लेखन, धार्मिक, सामाजिक, जन सेवा व अन्य रचनात्मक कार्यों में रुचि रखता है तो वह इस अवस्था में अपनी इन रुचियों को पूरा कर अपने ख़ाली समय का सदुपयोग कर सकता है। इन कार्यों को करने से जहां उसका अकेलापन दूर होगा वहीं इनसे ख्याति प्राप्‍त कर वह समाज में मान-सम्मान का हक़दार बनेगा।

अपने बच्चों की रुचि को भी महत्त्व दें: अपने बच्चों पर बेवजह अपनी रुचियों व इच्छाओं को थोपने का कार्य न करें। उनकी इच्छाओं व रुचियों को पहले महत्त्व देते हुए उन्हें इस क्षेत्र के प्रति उत्साहित कर उनका साथ दें। ऐसा करने से आप में और बच्चों में तनाव की स्थिति को उत्पन्न होने से पहले ही विराम मिल जाएगा। प्यार व आदर भाव में वृद्धि होगी।

अपने पास भी कुछ जायदाद का हिस्सा बचा कर रखें: आज के दौर को देखा जाए तो स्वार्थ भाव की सीमा नहीं रह गई है। आदर-सम्मान भी दो तरह का हो चुका है। एक वह जो दिल से किया जाता है। जिसकी संख्या थोड़ी कही जाए तो ग़लत न होगा। दूसरा आदर भाव वह जो धन के लालचवश दिखाया होता है। जब तक व्यक्‍ति के पास धन-दौलत है तब तक उसकी क़द्र है। जो धन-दौलत के ख़त्म होते ही समाप्‍त हो जाती है। इसलिए अपने पास जायदाद या धन का कुछ हिस्सा अपने लिए संजोकर रखें। यह आड़े वक्‍़त में आपके काम आता है। साथ ही साथ चाहे लालचवश ही सही कम से कम आपके बच्चे, आपके रिश्तेदार आपकी खोज-ख़बर तो रखेंगे।

और अंत में: इन सबसे परे मां-बाप और बच्चों दोनों को अपने विचारों में तालमेल बिठाने की विशेष आवश्यकता है। आधुनिक विचारों के साथ अतीत के सुनहरे, अनुभवों को साथ लेकर चलने की ज़रूरत है। जन्म देने वाले का उपकार कई जन्म लेकर भी नहीं चुकाया जा सकता है। इसलिए जितना हो सके इस अमूल्य जीवन को मां-बाप या बुज़ुर्गों की सेवा, आदर-सत्कार कर उन्हें खुश रखने के लिए समर्पित करें। जैसा व्यवहार आज आप अपने मां-बाप के साथ करते हैं। उसी देखा-देखी में आपके बच्चे भी आपके साथ कल को वही व्यवहार करेंगे। इसलिए लाख टके की एक ही बात है। ऐसा बोओ कि काटने पर खुशी व सुकून मिले।

 

 

 

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