-एसः मोहन

वैसे तो हमारे समाज में लड़की पैदा होना ही मां-बाप को एक बोझ का अहसास कराता है। लड़की पैदा करने की हीन भावना शनैःशनैः लड़की के साथ-साथ बढ़ती जाती है। लड़की के जवान होते ही मां-बाप की आपाधापी चरम सीमा पर पहुंच जाती है। फलतः मां-बाप बिना सोचे समझे ऐसे धोखे का शिकार हो जाते हैं जिसका प्रायश्‍च‍ित इस जीवन में चाह कर भी नहीं कर सकते। उधर लड़के की आज़ादी, आवारागर्दी, निकम्मेपन से तंग आकर लड़के के मां-बाप अपने लड़के का जीवन सुधारने, उसे खुशहाल देखने, घर गृहस्थी वाला बनाने के लिए बिना ये सोचे कि आने वाली पर क्या गुज़रेगी, उसे अपने जान पहचान वाले के पास नौकरी या ठेकेदारी के छोटे-मोटे काम काज में लगा देते हैं ताकि लड़की वालों पर झूठ का आवरण डाल कि लड़का खूब कमाता है, अपना प्रभाव डाल सकें। यही नहीं वह अपने मकान का रंग रोगन कर उसे नया स्वरूप तो देते ही हैं लड़के का कमरा भी पूरी तरह से सजा संवार कर यह जताते हैं कि आने वाली को उनके घर में कोई कमी महसूस नहीं होगी।

रामप्रकाश के पुत्र का विवाह हुआ तब वह रेलवे में एक ठेकेदार के पास मैठ था। सारा दिन जुटे रहने के बाद पांच सौ ही मिलते थे उसे। जब वह मज़दूरों से काम ले रहा होता तो स्वयं को यूं दर्शाता जैसे वह स्वयं ही ठेकेदार हो। फिर खुशामदियों की इस दुनियां में वैसे भी कमी नहीं। जानते हैं सिपाही है पर हवलदार कहेंगे, जानते हैं कम्पाउन्डर है परन्तु डॉक्टर कहेंगे, जानते हैं मैठ है पर कहेंगे ठेकेदार ही। रामप्रकाश का बेटा भी ठेकेदार कहलाने लगा। ठेकेदार है तो रिश्तों की कमी का प्रश्‍न ही नहीं उठता, लड़की वाले चक्कर लगाने लगे, ढेरों लड़कियों के रिश्ते और लड़का बेचारा एक। लड़की वालों को बताया जाता है कि लड़का खूब कमाता है। अपने पैसे खुद रखता है।

लड़के से ज़्यादा लड़की वालों की नज़र लड़के के बाप की पोस्ट पर ज़्यादा रहती है, सो रामप्रकाश के पुत्र के केस में भी वही हुआ। लड़की पसंद आई तो रामप्रकाश जी अपनी उदारता दिखाते हुए स्नेह भरे स्वर में कहते “हमें पढ़ी लिखी, समझदार, घर गृहस्थी को समझने वाली लड़की चाहिए, नौकरी करती हो या डिप्लोमा होल्डर तो हो ही ताकि भविष्य में कभी ज़रूरत पड़े तो कोई परेशानी न हो, वैसे हमारा बेटा यह सब पसंद नहीं करता।”

अब आप ही बताइये कौन-से मां-बाप ऐसा घर बार पसंद न करेंगे। लड़के की पूरी खोज किये बिना विवाह हो जाता है। आने वाली को हफ़्ते दो हफ़्ते में ही पता लग जाता है कि पति महोदय क्या हैं। अब बेचारी करे तो करे क्या। जीवन भर रोए या फिर डिप्लोमे का सदुपयोग कर पतिव्रता का धर्म निभाये। पति को खिलाये और खुद कमाये।

मां-बाप को चाहिए लड़के के कपड़े, खूबसूरती और ठाठ-बाट पर न जायें, लड़के के बाप की पोस्ट और कमाई देखकर इस बात का फ़ैसला न करें कि अपनी लड़की के लिए यही योग्य घर है। लड़के का पिता अच्छे पद पर हो, घर अच्छा खाता-पीता हो परन्तु साथ-साथ लड़का भी सुयोग्य हो, अपना और अपने परिवार का ख़र्चा अच्छी तरह से चलाने में सक्षम हो, ये सब बातें देखना अधिक ज़रूरी है।

लड़के वालों का कर्त्तव्य भी बनता है कि वे अपना बोझ हल्का करने के लिए अच्छी भली लड़की का जीवन बर्बाद न करें। उनकी यह सोच एक दम ग़लत है कि आने वाली आकर उनके लड़के को सम्भाल लेगी अथवा शादी के बाद खुद संभल जाएगा। लड़की ऐसा कोई जादू का डंडा नहीं लायेगी जो लड़के को आते ही ठीक कर दे।

लड़का जब तक पूरी तरह से आत्मनिर्भर न हो जाये, कमाने योग्य न हो जाये, मां-बाप को उसका विवाह हरगिज़ नहीं करना चाहिए।

संजय को उसके माता-पिता ने उसकी आदतों से परेशान होकर एक दुकान खुलवा दी। दुकान जमे न जमे, चले न चले संजय के पिता को इस बात की चिंता नहीं थी। उन्हें चिन्ता थी दुकान देख कर कोई अच्छा-सा घर मिल जाएगा। घर भी मिल गया, लड़की का बाप इंजीनियर था सो यह सोचकर कि अपनी दो नम्बर की कमाई में से वह लड़के को अच्छी नगदी दे देगा उसने विवाह कर दिया। उनके मन मुताबिक पैसा नहीं मिला तो पहले ही दिन से घर में मन मुटाव शुरू।

सो इन सब बातों का ध्यान रखते हुए माता-पिता को रिश्ता करने से पहले सभी बातें परख लेनी चाहिए ताकि नई ज़िन्दगी शुरू करने वाले जीवन की प्रथम सीढ़ी से ही फिसल न जाएं।

 

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