– दीप ज़ीरवी

मोहन दास कर्मचन्द गांधी व गुजरात, गुजरात व भारत एक दूसरे से भिन्न नहीं है यह शाश्वत सत्य है, जैसे यह सत्य है वैसे ही यह भी सत्य है कि बापू की हत्या 30 जनवरी 1948 को नहीं हुई थी।

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आश्चर्य मत कीजिए।

किसी भी व्यक्ति को मारने के लिए केवल उसका देहांत ही आवश्यक नहीं है। व्यक्ति विशेष की सोच को मारना आवश्यक है अन्यथा व्यक्ति देहांत के बाद भी जीवित रहता है। उदाहरणतः ‘भगत सिंह’।

यह विडम्बना की पराकाष्ठा है कि गांधी जी पर गोली चलाने वाले नत्थू राम गोडसे को हम उनका हत्यारा मान कर मृत्युदण्ड दे डालते हैं किन्तु ‘गांधीवाद’ यानी गांधी जी की विचारधारा पर तोप से आघात करने वाले कथित गांधीवादियों को देश का नेतृत्व सौंपते हैं।

गांधी जी का दर्शन समग्र भारत का दर्शन था। जितनी गंभीरता से उन्हें देश-दशा का भान था कदाचित् नेहरू जी को भी न रहा होगा।

गांधी जी के ‘दर्शन’ को विस्मृत कर भारतियों ने केवल दुःख ही पाया है।

गांधी जी के ‘दर्शन’ से भारत का दर्शन गांवों में होता है।

गांधी जी सुविज्ञ थे गांव देश की दशा से। उन्हें ज्ञान था कि मां भारती के पास कर्मशील हाथों की कमी नहीं इसीलिए वह हस्त-शिल्प के पक्षधर थे। वह वंदन करते थे उस भारत मां का जिसके लाल हलधर हैं।

वह समग्र रूप से ग्रामोत्थान चाहते थे। वह ग्राम जन्य उद्योग चाहते थे, वह कुटीर उद्योगों की प्रगति चाहते थे, वह खादी के पक्षधर थे। उनको पर्यावरण की चिन्ता थी।

निःसंदेह वह भविष्य दृष्टा थे वह देख सकते थे कि हस्त-शिल्प के विनाश का परिणाम बेरोज़गार हाथों की संख्या में बढ़ौतरी से निकलेगा।

बापू की विचारधारा के कैलाश से निर्मल धारा निकलती तो भारत के धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को पावन करती। किन्तु हुआ क्या केवल नाम मात्र को बापू को थाली में सजा लिया गया। उनकी देह की हत्या हुई 1948 की 30 जनवरी को किन्तु उनकी विचारधारा से वह तब भी जीवित रहे।

उनके नाम लेवाओं ने धड़ाधड़ गांवों का शहरीकरण कर दिया। अपने आराध्य ‘दरिद्र नारायण’ को मात्र मतपत्र समझ लिया गया। उनकी धारणा के उल्ट स्वदेशी का गला रेत डाला गया ताकि विदेशी बहुदेशीय कम्पनियों का माया जाल फैलाने के लिए मार्गप्रशस्त हो सके।

उन के दर्शन को तोड़-मरोड़ कर अपने हित साधन का अस्त्र-शस्त्र बना लिया गया।

आज सोचिए तो आप भी यही कहेंगे कि बापू की हत्या 30 जनवरी 1948 को नत्थूराम गोडसे ने नहीं की थी वर्ना उनकी हत्या तो उनकी विचारधारा के ख़िलाफ़ भारत को विदेशी आकाओं के रहमोकर्म पर छोड़ने वाले उनके कथित नाम लेवाओं ने की है उनकी विचारधारा की हत्या करके।

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