-धर्मपाल साहिल

प्यार के बारे में जितना मुंह उतनी बातें जितना कहा उतना थोड़ा। कोई कहे प्यार अंधा होता है, कोई माने यह किसी से भी, कहीं भी, कभी भी हो सकता है। न उम्र की सीमा, न जन्म का बंधन। किसी का विश्‍वास है प्यार किया नहीं जाता है। कोई इसे क़िस्मत का खेल तो कोई दिलों का मेल समझता है। कहीं यह आकर्षण है तो कहीं समर्पण है। किसी के लिए प्यार पूजा है तो कहीं अपराध माना जाता है। कहीं विपरीत लिंगी तो कहीं समलिंगी इस के बंधन में जकड़े जाते है। कोई प्रेम में दीवाना हो कर पागल हो जाता है तो कोई जान पर खेल जाता है। कभी प्यार वफ़ा है तो कभी बेवफ़ा। कोई प्‍यार में कलाकार बन जाता है तो कोई गीतकार, किसी को प्यार हक़ीक़ी भाता है तो किसी को मजाज़ी।

प्यार सिर्फ़ जज़बातों का खेल, भावनाओं का असीम प्रयोग या संवेदनाओं की सुनामी ही नहीं, इस का सम्बन्ध मानव शरीर के जीव विज्ञान तथा इसमें मौजूद रासायनिक पदार्थों की क्रियाओं प्रतिक्रियाओं से भी है। विश्‍व एवं स्तरीय रसायन वैज्ञानिकों एवं जीव विज्ञानियों ने मनोवैज्ञानिकों द्वारा सुझाए प्यार सिद्धान्त या प्यार प्रक्रिया को स्पष्‍ट एवं प्रमाणित करने की कोशिश की है जिसे प्यार का रसायन शास्त्र अथवा कैमिस्ट्री ऑफ़ लव कहा जाता है।

द बायलोजी ऑफ़ लव के लेखक डॉ.जेकब के अनुसार प्यार की आवश्यकता, प्यार की कमी से, विकास की क्षमता का कम होना, तनाव, दु:ख तथा हार्मोन्स में होने वाले परिवर्तनों के कारण महसूस होती है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफ़ेसर बार्तेल तथा सैमिट ने खुद को प्रेम में पागल कहने वाले डेढ़ दर्जन के लगभग मर्द-औरतों के दिमाग़ का स्कैन द्वारा परीक्षण करके बताया कि दिमाग़ के तीन भाग प्यार प्रक्रिया में शामिल होते हैं। सिंथेटिक ड्रग के प्रति प्रतिक्रिया दर्शाने वाला दिमाग़ का हिस्सा एंटीरीयर सिंगुलेट कहलाता है। इन दवाइयों से सुख का आभास होता है। यही भाग प्यार के समय सक्रिय रहता है। दिमाग़ का दूसरा हिस्सा मीडियल इंसुला विभिन्न प्रकार की भावनात्मक क्रियाओं के लिए ज़िम्मेदार होता है। तीसरा और भीतरी भाग प्यूटामैन और कार्डेट न्यूक्लियस है, यह नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों प्रकार की भावनाओं में सक्रिय रहता है।

वाय वी लव की लेखिका हेलन फिशर के अनुसार प्यार के तीन रूप हैं पहला वासना दूसरा चाहत तीसरा आसक्‍ति। जब चाहत आसक्‍ति में तबदील होती है तो जन्म-जन्म का बन्धन हो जाता है दार्शनिक नीत्श प्यार में पागलपन की अवस्था बताता है प्यार को अंधा भी कहता है। प्यार में अपने प्रेमी या प्रेमिका में कोई कमी नज़र नहीं आती इस अवस्था के लिए वैज्ञानिक राबर्ट फेयर ने मनुष्य के शरीर में उपस्थित न्यूरोकैमिकल को ज़िम्मेदार ठहराया है यह फीनायल ईथाइल एसीन नाम का ऑर्गेनिक रसायन होता है, जिस के कारण ही प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे को दुनियां के सबसे खूबसूरत इन्सान दिखाई देते हैं उन के अवगुण भी गुण लगते हैं। वे ग़लत होते हुए भी ठीक लगते हैं। जैसे-जैसे मनुष्य प्यार में डूबता जाता है वैसे-वैसे उस के शरीर में उस रसायन की मात्रा बढ़ती जाती है लेकिन इस के उत्पन्न होने तथा बढ़ने की भी एक सीमा होती है। यह क्रिया अधिक-से अधिक चार-पांच साल के लिए चल सकती है। इस के बाद इस का शरीर पर प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जाता है।

आर्थर ऐरान मानते हैं कि प्यार में आंखों का आंखों में देखने से शरीर में रसायनिक परिवर्तन फलस्वरूप उपरोक्‍त न्यूरोकैमिकल में तो होता ही है बल्कि उन की त्वचा से निकलने वाली गंध भी मस्तिष्क में पहुंच कर प्रेम में सक्रिय मस्तिष्क के हिस्से को प्रभावित करती है और साथी के चयन का निर्णय लेने में सहायक होती है। हेलन शिर ने प्यार को केवल और केवल जीव रसायनिक हॉरमोनस के हाथ का खेल बताया है। उन के अनुसार नर और मादा में ही पाए जाने वाले टेस्टी स्टीशन तथा आस्ट्रोजन समान रूप से सक्रिय होते हैं। मोनो एमीनस ग्रुप ऑफ़ न्यूरोट्रांस्मीटर के कारण प्यार में भूख न लगना, रातों की नींद और दिन का चैन उड़ जाना, एक दूसरे के बिना कुछ न सूझना और हर वक्‍़त सोचना इसी कारण होता है। कोकीन और निकोटिन जैसा प्रेम में नशा डोपामाइन के कारण होता है। प्यार के अंतरंग क्षणों में पसीना आ जाना तथा दिल की धड़कन बढ़ना एड्रीतन के सक्रिय होने के कारण होता है।

प्यार में पागलों जैसी अवस्था सेरोलेनिन रसायन के कारण होती है। प्यार में आसक्‍ति वाली हालत हाइपोथैलमस ग्रंथी उत्‍पन्‍न आक्‍सटसिन हारमोन के कारण होती है। प्रेमियों में शारीरिक सम्‍पर्क की अवस्‍था में हार्मोन तेज़ी से उत्‍पन्‍न होते हैं इससे उन में भावनात्मक सम्बन्ध मज़बूत होते हैं हालांकि वैसोप्रैसिन हार्मोन गुर्दे को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक होता है लेकिन खोज से पता चला है कि यह प्यार के बंधन को मज़बूत और लम्बे समय तक क़ायम रखने के लिए भी ज़रूरी होता है इसी की वजह से ही प्रेमी अपनी प्रेमिका के प्रति कुछ भी सुनने पर बर्दाश्त नहीं कर पाता। वह अपनी प्रेमिका की रक्षा के लिए आक्रामक तक हो उठता है।

बेशक वैज्ञानिकों ने प्यार में होने वाली कई क्रियाओं मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले रासायनिक पदार्थों का पता लगा लिया है लेकिन एक उल्लेखनीय बात यह है कि यह सभी शोध कार्य, परीक्षण एवं विश्‍लेषण प्यार शुरू होने के बाद ही शुरू किए गए। प्यार के शुरू होने के लिए कौन से रसायन ज़िम्मेदार हैं। पहली ही नज़र में किसी से प्यार हो जाना और कई बार वर्षों तक साथ रहकर भी प्रेम पैदा न होना या एक के बाद अचानक दूसरे से प्रभावित होकर उसके प्यार में पड़ जाना, किसी से अचानक नफ़रत पैदा हो जाना इन सबके लिए कौन से रसायन भूमिका निभाते हैं। रंग, रूप, सुंदरता, एक टक देखना, मुस्कुराना, इशारे, उपहार देना, स्‍पर्श आदि का रासायनिक क्रियाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है। इन पर शोध जारी है।

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