-डॉ. अशोक गौतम

कल बड़े दिनों बाद पंडित जी हमारे घर पधारे, दुर्भाग्य हमारे!

पंडित जी पेट सेट कर कुर्सी पर बिराजे तो फरमाया… यजमान! सोम, बुध, मंगल, शुक्र, वृहस्पति, शनि, राहु, केतु सभी ने है तेरे घर में धमाल मचाया तो… यजमान… यह सुन बहुत घबराया… बोला- पंडित जी! बताएं जितनी जल्दी हो सकता है उपाय… य.. ा…  सोम, मंगल, बुध, वीर, शुक्र, शनि, राहु, केतु जब से हैं मेरे घर आए… तभी से पत्नी रूलाय… पड़ोसन सताए… अतः हे श्रीमान! आप बहुत बलवान!! इन सभी को विपक्ष की तरह देओ भगाय… चाहे इनको भगाने के लिए मेरे कपड़े भी बिक जाएं!

देख… यजमान की दरियादिली… पंडित जी! ऊपर से नीचे तक मुस्काए, उनकी वीभत्स मुस्कुराहट देखकर नौ के नौ ग्रह घबराए… पंडित जी ने आव देखा न ताव… झोले से काग़ज़ पेन निकाला… ठीक की गले की मायावी माला… चौकड़ी मार… अपनी कंगाली झाड़… सामग्री लिखने लगे… सामग्री लिखते-लिखते बारह से चार बजे।

तब दांत किटकिटाते हुए पंडित जी ने, सामग्री की लिस्ट यजमान की जेब में घुसाई… मुस्कुराते हुए, बलखाते हुए, ईश्वर को झुठलाते हुए तब बोले पांडे जी भाई! ये सामान… शुद्ध और सही मात्रा में जो लाओगे तो… बिना गऊदान के वैतरणी पार हो जाओगे… वह भी सपरिवार… मेरे यजमान यार! इसलिए सामग्री लाने में कंजूसी नहीं, पंडितों के खाने में कंजूसी नहीं, पंडितों को खिलाया… सीधा भगवान् को लगता है… भगवान् का पेट तभी भरता है जब… जब… जब… पंडित का पेट भरता है। तो जाओ… ये सामग्री शीघ्र लाओ… सामग्री आते ही ऐसा चक्कर चलाऊंगा, सभी ग्रहों को तुम्हारे शत्रुओं के घर शर्तिया पहुंचाउंगा। बस, बदले में यजमान पांच सौ रुपये दिहाड़ी लूंगा… साथ में चार लुटेरे… सॉरी, शिष्य मेरे और आएंगे… वे पूजा कम करेंगे… बस खाएंगे, खाएंगे, खाएंगे!

उनकी दिहाड़ी क्या होगी पांडे जी? पूछे हाथ जोड़े यजमान! अब सिकुड़ने लगा था उसका सीना… जो चंद घंटेे पहले खड़ा था सीना तान।

वे शिष्य! भगवान् के यमदूत! दूर से आएंगे, अतः उनका टी.ए., डी.ए. भी देना होगा… उनके फलहार में… बेमौसमी से बेमौसमी फल जहां भी मिले लेना होगा… वे खुश तो भगवान् खुश! शैतान खुश तो भगवान् खुश! तब तेरे ही नहीं, तेरे पुरखों के भी हे यजमान, तमाम पाप धुल जाएंगे… और तेरे लिए… हां… हां रे तेरे लिए… घरवाली के लिए… तेरे बच्चों के लिए… तेरी पड़ोसन के लिए विकास के द्वार ही द्वार खुल जाएंगे।

यह सुन… यजमान कुछ खुश हुआ… देने लगा भगवान् को दुआ!

हे भगवान्! तुमने पंडित जी… किस अशुभ मुहुर्त्त में मेरे घर लाए… हाय! धर्म संकट में हूं… बैठाया भी न जाए… भेजा भी न जाए।

देख यजमान की दुविधा… बोले श्रीमान! दुविधा में मत रहो यजमान जो दुविधा में रहे… वे घर के रहे न घाट के… प्रभु ने बनाया है उन्हें फुटपाथ के… अफ़सर से, पानी वालों से, बिजली वालों से, नेता से, पटवारी से भी। बुरे ये ग्रह हैं भाई ये पहाड़ हैं, वे हैं राई। ये शोला है, वह आग है… वे पानी हैं, ये झाग है… अतः जो चाहते हो घर का भला तो दबाने दो मुझे राहु, केतु के माध्यम से अपना गला।

तब यजमान ने अपना गला खुद ही दबाते कहा- पंडित जी बोलो, सामग्री में क्या-क्या रहा?

पांडे जी ने खांस कर गला साफ़ किया… नव ग्रहों के नाम से पूरी मुस्तैदी से… एक और पाप किया… बोले- यजमान! सामग्री नोट कर। बाद में आते-जाते चैक भी करूंगा… कोई भी चीज़ कम लाया या छूट गई तो समझना क़िस्मत तेरी फूट गई! मैंने बड़ों-बड़ों के घरों से… ख़तरनाक से ख़तरनाक ग्रह हैं भगाए… तेरे ग्रहों को भी तेरे घर से हंडरड परसेंट भगा दूंगा… तेरे भंडारे का रास्ता दिखा दूंगा।

तो?

मौली दो ग्राम, गरी बीस गोले, सिंदूर दस ग्राम, जनेऊ आधा, लौंग दो सौ ग्राम, केसर पचास ग्राम, कपूर दो ग्राम, पंचमेवा दो किलो, धोतियां सात, लेविस की पैंट सात, विदेशी कपड़ों के कुरते सात, तौलिए अच्छे से अच्छे आठ लाना, एडिडास के जूते, स्वागत बनियान आठ, डिक्सी के कॉटनी कच्छे आठ, बाल्टी तांबे की, स्टील के चार पतीले, एक राजस्थानी रजाई, नौ ग्रहों की नौ प्रतिमाएं 23 कैरेट सोने की, खैनी के आठ पैकेट, जरदे की आठ लड़ियां, शुद्ध घी चार किलो, हवन सामग्री पचास ग्राम, शक्कर चार किलो, बर्फ़ी, गुलाब-जामुन, रस-गुल्ले, चमचम, पतीसा सब दो-दो किलो, पंडितों को शुद्ध मांसाहारी खाने की व्यवस्था, पददान धोती, कांसे की थाली, दक्षिणा रोज़ एक सौ एक, पूजा पर एक सौ एक रोज़ चढ़ाने होंगे… मेरे प्रिय यजमान! मेरे डरपोक यजमान! मेरे कायर यजमान! मेरे धर्म भीरु यजमान! पंडित खुश तो तय मानना नौ के नौ ग्रह खुश हो जाएंगे… अच्छा तो अब दूध पिला, कुछ मेवा खिला… पंडित जी अगले शुक्रवार को तेरे घर भगवान् रूप में आएं.. गे… गे। तो नोट कर ली न सामग्री की लिस्ट… हम चले औरों का कल्याण करने… भगवान् के नाम पर घर अपना… भ… र… ने… पर? ये सारी सामग्री बिना हेराफेरी के ज़रूर लाना… क्योंकि… क्योंकि भगवान् श्रद्धा के नहीं, सामग्री के भूखे हैं…

तो?

सामग्री की लिस्ट ले यजमान नाचा रे… नाचा रे… और हम नाचे बिन लिस्ट के… ए… ए… ए… वो पंडित भला किस काम का जो यजमान को न निचोड़े रे… ए… ए… ए।

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