-डॉ. गुरू प्रसाद शर्मा 

वर्तमान युग रफ़्तार का युग है। हर तरफ़ हर किसी को आगे बढ़ने की होड़ लगी हुई है। दौलत और शोहरत की इस चाह में इंसान शारीरिक और मानसिक रूप से बीमारियों से ग्रस्त हो गया है। इस रफ़्तार भरी ज़िंदगी में उसने सब कुछ तो पा लिया है लेकिन उसको इसकी क़ीमत चुकानी पड़ी है शारीरिक बल और मानसिक शान्ति गंवाकर। वर्तमान युग का इंसान इसी कारण उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी बीमारियों की लपेट में आ चुका है और पूर्ण रूप से अपने जीवन-यापन और दौड़-धूप के लिए दवाइयों पर निर्भर हो चुका है। सभी बीमारियों का एक मूल कारण है- मानसिक अशान्ति और इस अशान्ति से छुटकारा पाने की एक ही विद्या है।

वह है- योग।

योग का महत्त्व हमारे वर्तमान युग में क्या है? इस सवाल का उत्तर जानने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि योग क्या है?

योग क्या है?

योग की उत्पत्ति मूल रूप से संस्कृत शब्द ‘युज्’ से हुई है जिसका अर्थ है जोड़ना।

युज्यते अनेन इति योगः।

योग वह विद्या है जो जीवात्मा का मिलन परमात्मा से कराती है। योग आत्म ज्ञान है अपने आप को जानना ही योग है।

पतञ्जिल योग भारतीय संस्कृति के छः प्रमुख अंगों अर्थात् षट् दर्शन का एक अंग है। महान ऋषि पतञ्जिल ने योग जो योग उपनिषद् में उपलब्ध था को योग सूत्र रूप में लिखकर योग क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

योग परिभाषाः-

महर्षि परञ्जिलः- योगः चित्तवृत्ति निरोधः। 

                            योग अपने मन को अधीन करने की विद्या का नाम है।

महर्षि वशिष्ठः- मनः प्रशमनोपायो योग इत्यभिधीयते। 

                         मन को शान्त करने का हुनर योग है।

भगवद् गीताः- समत्वं योग उच्यते।

                        समानता प्रदान करने का नाम योग है।

                        योगः कर्मसु कौशलम्।

                        कार्य करने की कुशलता का ज्ञान योग है।

चार अंगः- योग प्रमुख रूप से चार अंगों में विभाजित हैः-

1.कर्म योगः- किसी फल की इच्छा किए बिना कर्म करना कर्म योग है। कर्म योग वर्तमान इंसान को मोह, माया और लालच जैसी कुरीतियों से दूर ले जाता है और मानसिक शान्ति और स्थिरता पैदा करता है।

2. भक्ति योगः- आधुनिक व्यक्ति भावनाओं के प्रवाह में ज़िंदगी का सुख-चैन खो चुका है। भावनात्मक रूप से वह बहुत कमज़ोर हो गया है। इन्हीं भावनाओं को क़ाबू करने का हुनर भक्ति योग है। भावनात्मक रूप से बलशाली व्यक्ति इस मार्ग के ज़रिए शारीरिक और मानसिक बीमारियों से मुक्त हो सकता है और शान्तचित्त ज़िंदगी जी सकता है।

3. ज्ञान योगः- सुख का असली ज्ञान ही ज्ञान योग है। ज्ञान योग वर्तमान युग में मानसिक दबाव से ग्रस्त व्यक्ति को इससे मुक्ति पाने और स्मृति बढ़ाने में मदद प्रदान करता है।

4. राज योगः- मानसिक संतुलन और स्थिरता प्रदान करने का साधन राज योग है। राज योग इस तनावग्रस्त ज़िंदगी में व्यक्ति को शान्ति प्रदान करता है और आत्म-चिंतन से व्यक्ति मानसिक और शारीरिक सुख प्राप्त करता है।

महर्षि पतञ्जिल का प्रमुख योगदान पतञ्जिल योग सूत्रों में अष्टांग योग हैः-

1. यमः-

अहिंसा

सत्य

ब्रह्मचर्य

अस्तेय

अपरिग्रह

वर्तमान समय में इन सभी मूल असूलों का जीवन में बहुत महत्त्व है। सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के लिए इनको अपनाना और शान्तचित्त आनन्दमय जीवन व्यतीत करना अति आवश्यक है।

2. नियमः-

शौच

संतोष

तप

स्वाध्याय

ईश्वर प्रणिधान

शारीरिक सफ़ाई, मानसिक संतोष, कठोर तप, आत्म ज्ञान और ईश्वर के प्रति निष्ठा व्यक्ति के पूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास के लिए मूल चीज़ें हैं।

यम और नियम का पालन व्यक्ति को इस रफ़्तार भरी ज़िंदगी में शारीरिक सुख और मानसिक शान्ति व स्थिरता प्रदान करता है।

3. आसनः- 

स्थिरं सुखम् आसनम्।

वह मुद्रा जो स्थिरता और सुख का अनुभव प्रदान करे, आसन है। आसन कई प्रकार के हैं और इनकी महत्ता जीवन के हर पल में उजागर होती है। भगवान के प्रति श्रद्धा और निष्ठा से एक सुखमय और स्थिर मुद्रा में चितमय बैठना भी आसन है। वर्तमान युग में व्यक्ति विभिन्न शारीरिक रोगों जैसे वातरोग, सन्धिगतवात, आमवात, अपाचन आदि से ग्रस्त है। इन सब रोगों के इलाज के लिए विभिन्न आसनों का लगातार और सुचारू ढंग से उपयोग करना व्यक्ति के लिए हितकर है।

4. प्राणायामः- प्राण अर्थात् सांसों की गति को अपने वश में करना प्राणायाम है। प्राणायाम का प्रयोग आयु वृद्धि प्रदान करता है। प्राणायाम की तीन अवस्थाएं होती हैंः-

पूरकः- सांस को अंदर लेने की प्रक्रिया पूरक है।

कुम्भकः- सांस को पल भर के लिए रोकने की अवस्था कुम्भक है।

रेचकः- सांस छोड़ने की प्रक्रिया रेचक है।अच्छे स्वास्थय और निरोग अवस्था के लिए रेचक की समय अवधि पूरक से अधिक होनी आवश्यक है। प्राणायाम आन्तरिक और बाह्य शान्ति प्रदान करता है और विभिन्न रोगों को दूर करने की औषधि का भी कार्य करता है।

5. प्रत्याहारः- इन्द्रियों को अपने अधीन कर मनोरंजन के दुष्प्रभावी पदार्थों से दूरी रखना ही प्रत्याहार है। प्रत्याहार इस नवीन युग में मनोरंजन के पल भर के सुख के लिए अपनाई गई कुरीतियों से रक्षा करता है और सामाजिक बुराइयों से व्यक्ति को दूर रखता है। इससे व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास सही ढंग से और उच्च स्तर का होता है।

6. धारणाः- मन को किसी एक केन्द्र पर, एक बिन्दु पर केन्द्रित करना धारण है। यह आधुनिक जीवन में विद्यार्थियों और रोज़गार व्यक्तियों की सोचने की और कार्य करने की क्षमता में वृद्धि करता है। शान्तचित्त से और स्थिर मानसिकता से किए कार्य में सफलता प्रदान होती है।

7. ध्यानः- मन को लगातार एक ही बिन्दु पर काफ़ी देर केन्द्रित करना ध्यान है। ध्यान धारण की अगली कड़ी है। मानसिक विकास और मानसिक दृढ़ता प्राप्त करना और कार्य को प्रभावशाली ढंग से करना ध्यान के माध्यम से अत्यंत सरल है।

8. समाधिः- उत्तम अवस्था का बोध होना ही समाधि है। समाधि वह अवस्था है जहां शरीर और इन्द्रियां आराम की अवस्था में जैसे निद्रावस्था में और मन हमेशा जाग्रत अवस्था में रहता है। समाधि का सही उपयोग करना अत्यंत कठिन है क्योंकि व्यक्ति जीवन की तमाम परेशानियों में एकाग्रचित्त नहीं हो सकता परन्तु समाधि अवस्था प्राप्त करने पर शारीरिक सुख और मानसिक शान्ति का लाभ होना और अपार प्रसन्नता मिलना स्वाभाविक है।

इन अष्टांग योग को जीवन में ढालना जीवन सुधारने और जीवन उबारने जैसा है।

वर्तमान युग में योग की प्रसिद्धि विश्व विख्यात है। असंतुष्ट मन के लिए यह संतुष्टता प्रदान करता है, रोगी के लिए स्वास्थ्य प्रदान करता है, साधारण व्यक्ति के लिए अपने आप को चुस्त-दुरुस्त और सुंदर लगने का साधन है, मन्दबुद्धि विद्यार्थियों और व्यक्तियों के लिए बुद्धि विकास और ज्ञान प्राप्त करने की विद्या है।

अतः योग पूर्ण रूप से विद्या का एक हिस्सा बन चुका है। सिद्ध और ज्ञानी पुरुष वर्तमान युग में योग का प्रयोग आत्मचिंतन, आत्मशुद्धि, निरोग, शारीरिक और मानसिक दृढ़ता, शान्ति और स्थिरता के लिए करते हैं। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*