-शैलेन्द्र सहगल
ऑनर किलिंग की अख़बारी सुर्ख़ियों ने आज समाज को जिस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है वहां हर मानव आज चिन्तन और मंथन से इस दुविधा में घिर गया है कि क्या प्रेम में संलिप्त जिगर के टुकड़ों, जान से प्यारी बेटियों का बेरहमी से खून बहा देने में सिवाय क्रूरता और अमानवीयता और आपराधिक कुकर्मों के इलावा भी कुछ और उजागर हो सकता है? ऑनर किलिंग के नाम पर ईश्वरीय वरदान माने जाने वाले पितृत्व को, भ्रातृत्व को कलंकित करने की निरन्तर चल रही कड़ी आज यह सोचने को विवश कर रही है कि जन्म देने वाले जन्मदाता का हत्यारा बन जाने में कौन सम्मान महसूस कर सकता है? दूसरा यक्ष प्रश्न आज बदले समाज के समक्ष यह भी आन खड़ा हुआ है कि क्या हमारी संतान को स्वाभिमान और स्वतंत्रता से जीवन जीने का कोई अधिकार है या नहीं? 21 वीं सदी के अत्याधुनिक समाज के नए क्लेवर में भी क्या मां-बाप की सोच में कोई परिवर्तन नहीं आया? चलती गाड़ियों में, चलती कारों में, सार्वजनिक एकान्त कोनों में किसी की बहन, बेटी अथवा बीवी से गैंग रेप जैसा दुष्कर्म भी चुपचाप सह जाने वाले संवेदनहीन समाज का मानवता की नज़र में अब कौन सा सम्मान बचा है जिसको बनाए रखने के लिए युवा बच्चों का खून पानी के समान बहा दिया जाए। पिता और भाइयों की अवज्ञा क्या गैंग रेप से भी बड़ा जघन्य अपराध है कि उसे क्रूर हत्या द्वारा मौत की सज़ा दे दी जाए? बलात्कार, सामूहिक बलात्कार की शर्मनाक वारदातों को अंजाम देने वाले विक्षिप्त मानसिकता वाले जघन्य अपराधी बेटों के घिनौने अपराध को न्यायालयों में झूठा प्रमाणित करने के लिए दंभी परिवारजन पूरी ताक़त झोंक देते हैं मगर उनकी इच्छाओं के विपरीत किसी से प्रेम कर बैठने वाली पुत्री का लहू बहाकर ऑनर किलिंग के बदनुमा दाग़ भी दामन पर लेकर गर्व महसूस करते हैं।
यह ऑनर किलिंग की दर्दनाक दास्तां सदियों से बेटियों के लहू से लिखी जाती रही है। सन् 47 के देश के हुए बंटवारे के दौरान दानव बन कर पाशविकता का नंगा नाच करने वाले अधर्मियों ने साम्प्रदायिक नफ़रत शांत करने के लिए दूसरे धर्म की बहू-बेटियों को बड़ी ही बेशर्मी से अपनी हवस का निशाना बनाना शुरू कर दिया तो दूसरी तरफ़ अपनी अस्मिता को प्राणों से ऊपर मानने वाली भारत की बेटियों ने जहां अपने सम्मान की रक्षा के लिए मृत्यु को मर्ज़ी से गले लगाया वहीं पिता ने पुत्रियों, भाइयों ने अपनी बहनों व पतियों ने अपनी अर्द्धांगिनियों के अपने हाथों सिर धड़ से अलग कर दिए। बंटवारे की त्रासदी के यह दोनों पहलू औरत की अस्मत पर भारी पड़े। पुरुषों के बनाए हुए नियमों में बंधी नारी जाति पर हुए अत्याचारों को दुनियां की किसी भी भाषा के लफ़्ज़ों में बांधा नहीं जा सकता। भ्रूण हत्या से लेकर सती प्रथा का मोल अपनी जान देकर चुकाने वाली औरत आज भी ऑनर किलिंग का जानलेवा दंश झेलने को बाध्य है। मासूम कन्याओं की इज़्ज़त की सामूहिक हत्या में शामिल यह पूरे का पूरा समाज ही अबला की अदालत के कटघरे में खड़ा नज़र आता है। प्राचीन काल में राजा-महाराजा अपने हरम में तो सैंकड़ों रानियां अपनी ऐयाशी के लिए रखते थे मगर उनकी अपनी राजकुमारियों को अपना जीवन साथी तक चुनने की आज्ञा नहीं होती थी। पड़ोसी प्रान्त हरियाणा में ऑनर किलिंग की कई वारदातों ने मानवता के कान खड़े कर दिए। पुरुष वर्ग स्वयं तो यौन सुख का कोई भी नाजायज़ मौक़ा छोड़ना नहीं चाहता मगर घर की महिलाओं की रोज़ अग्नि परीक्षा लेने पर उतारू रहता है। अनेकों कलयुगी पिताओं द्वारा बरसों बेटियों के यौन शोषण करने के मामले रह-रह कर उजागर होते हैं क्या तब उनका ऑनर दांव पर नहीं लगता? पुरुष वर्ग द्वारा रचा जा रहा ऑनर किलिंग का पाखंड हर हाल में रोका जाना चाहिए क्योंकि यह ऑनर किलिंग नहीं किलिंग ऑनर है ।