-डॉ. प्रेमपाल सिंह वाल्यान

युगों से नर-नारी समानता का एक मूल तथ्य परिचालित किया जाता रहा है कि पुरुष स्त्री की अपेक्षा साधारणतया ज़्यादा बड़े और शक्‍ति‍शाली होते हैं और सामान्यत: भौतिक हिंसा में जीत उन्हीं की होती है। मानव सभ्यता के शुरू से ही, स्त्रियों को पुरुषों के भौतिक हमलों से स्वयं की रक्षा करनी पड़ी है। यहां तक कि जब वह क्रोधित नर के सामने अपने आप को असहाय महसूस करती है तो वह अपने शरीर को नर के सामने लैंगिक रूप से प्रस्तुत कर देती है और इस प्रकार वह नर के क्रोध से अपनी रक्षा करती है क्योंकि मानव मादा अन्य स्तनपायी जन्तुओं में सर्वक्षेष्‍ठ है तथा लैंगिक रूप से अन्य की अपेक्षा ज़्यादा आकर्षक व यौन संबंधों के लिए हर समय तैयार रहने वाली है तथा कभी भी गर्भधारण कर सकती है। प्राचीनकाल से ही स्त्री की यौन सक्रियता उसके उत्तर जीविता के अवसर बढ़ाती रही है।

यद्यपि प्राणि शास्त्र की दृष्‍ट‍ि से पुरुष एकल विवाह के अनुपयुक्‍त होते हैं। लेकिन पुरुषों ने अपनी श्रेष्‍ठ शारीरिक शक्‍त‍ि के बल पर सदियों से स्त्रियों को एकल विवाह के लिए मजबूर किया है। क्योंकि वास्तव में पितृ सत्तात्मक समाज के विकास का यही मूल आधार था। इसके पूर्व प्रजनन शक्‍त‍ि के कारण स्त्री की पूजा होती थी लेकिन जब पुरुष यह जान गया कि इस प्रजनन में उसकी भी भूमिका है तो वह यह निश्‍च‍ित कर लेना चाहता था कि स्त्री विशेष से उत्पन्न सन्तान उसकी अपनी है तथा उस युग में शक्‍ति‍शाली पुरुष किसी भी स्त्री को अपने अधिकार में कर लेता था। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए विवाह नामक संस्था की नींव पड़ी, जिसमें पुरुष स्त्री से शक्‍ति‍शाली व उम्र में बड़ा होता था। यही क्रम काफ़ी हद तक आज भी बरकरार है। लेकिन अब इस क्रम पर सवालिया निशान लगता नज़र आ रहा है क्योंकि अब ऐसे जोड़े भी नज़र आने लगे हैं जिनमें स्त्री की उम्र पुरुष से ज़्यादा होती है।

टूटता मिथक:-

वैसे तो आज के इस तथाकथित आधुनिक युग में भी जिसमें उन्मुक्‍त यौन संबंधों की बिना शादी के साथ-साथ रहने की तथा जो जी चाहे वैसा करने की स्वतंत्रता दी गई है वहां भी पत्‍नी की बड़ी उम्र को समाज पचा नहीं पाता। वैसे भी भारत में अन्य जगहों की तुलना में पुराने रीति-रिवाज़ बहुत अधिक देरी से टूटते हैं। मगर आजकल यह मिथक टूटने लगा है कि पति, पत्‍नी से बड़ा होना चाह‍िए। आज के युवा इस बंधन को तोड़ते हुए अपने से बड़ी उम्र की युवतियों से विवाह बन्धन में बन्धने लगे हैं। संतोष की बात तो यह है कि ऐसे विवाह अन्य विवाहों की तुलना में सफलता की कसौटी पर खरे उतरे हैं। जिन लोगों ने प्रारम्भ में इन जोड़ों के लिए नाक भौं सिकोड़े थे कालान्तर में उन्होंने ही इनकी सराहना की।

विवाह की सफलता:-

इस संबंध में 40 वर्षीय पुष्पलता गोयल का कहना है, “मैंने बाल विधवा होने के बाद 24 वर्ष की उम्र में एक 20 वर्षीय कुंवारे युवक से शादी की थी जो पूरी तरह सफल रही इसलिए मेरा तो यही कहना है कि अगर व्यक्‍त‍ि सही है तो कम उम्र के युवक से शादी करने में कोई बुराई नहीं है। विवाह की सफलता आपसी सूझ-बूझ, विचारों की समानता और परिपक्वता, आपसी विश्‍वास, एक दूसरे की भावनाओं के सम्मान आदि बातों पर टिकी होती है और इन सब के ऊपर होता है प्यार। प्यार से उम्र का कोई संबंध नहीं होता आज शादी के 16 वर्षों के बाद भी हमारी ज़िन्दगी प्यार से भरपूर है और मुझे ऐसा लगता है कि दिन-ब-दिन मुहब्बत बढ़ती जाएगी।”

वहीं इसी प्रकार से संबंध बनाने वाली 42 वर्षीय रोहिणी अभी से कुछ दुविधा में है। वह अपने पति से उम्र में 10 वर्ष बड़ी है वह कहती है, “शादी के समय मैं युवा थी और उम्र का अंतर उतना दृष्‍ट‍व्य नहीं होता था। हर्ष अपनी उम्र के लिए काफ़ी परिपक्व था और उसका आयु में कम होना मुझे कभी भी अपने संबंधों में बाधक महसूस नहीं हुआ। ऐसा भी नहीं है कि अब मुझे कोई बाधा महसूस होती है किन्तु अब मैं युवा नहीं रही। कार्य, विवाह, बच्चों को पालने व स्वाभाविक बढ़ती उम्र की ज़िम्मेदारियों ने मुझ पर अपना असर अवश्य डाला है।

दो वर्षों बाद मैं 44 वर्ष की हो जाऊंगी और इस उम्र में स्त्रियों में वो बात नहीं रह जाती (कोई विशेष आकर्षण नहीं रह जाता) मैं इस बारे में सोचे बिना नहीं रह पाती हूं।

यह सही है कि अभी तो हर्ष (पति) को किसी भी अन्य स्त्री की कोई परवाह नहीं है किन्तु तब क्या होगा जब मैं बूढ़ी हो जाऊंगी, मेरे शरीर पर झुर्रियां पड़ जायेंगी और मैं मोटी व मजबूर हो जाऊंगी। उस वक़्त तब हर्ष के लिए अति स्वाभाविक हो जायेगा कि वो किसी युवा व अधिक आकर्षक महिला की तरफ़ झुक जाये। मैं नहीं समझती कि मैं उस तरह की औरत हूं जो अपने पति के अन्य स्त्री से संबंधों को स्वीकार कर पाऊं, किन्तु इसके सिवा मेरे पास और चारा भी क्या होगा?”

लेकिन 58 वर्षीय मौ. सैफुद्दीन का अनुभव कुछ अलग प्रकार का है वे बी.एस.सी. करने के बाद 26 वर्ष की उम्र में अपने से 5 वर्ष बड़ी उम्र की युवती के साथ परिवार की रज़ामन्दी से ही विवाह बन्धन में बंधे थे। उस समय उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही सुदृढ़ थी। कृषि फ़ार्म व ट्रान्सपोर्ट का अच्छा कारोबार था। शादी के बाद उनके दो लड़के भी पैदा हुए और उनका दाम्पत्य जीवन ठीक-ठाक चल रहा था। लेकिन शादी के 12 साल बाद उनके उदर में एक ट्यूमर हो गया था। जिसके कारण वे अस्वस्थ हो गये तथा उनके इलाज में अच्छी खासी धनराशि ख़र्च हुई तथा पूरी तरह स्वस्थ होने में एक वर्ष का समय लगा। इससे उनका कारोबार पूरी तरह से गड़बड़ा गया और वह आर्थिक तंगी के शिकार हो गये। मौ. सैफुद्दीन ने आगे बताया कि जैसे ही घर में ग़रीबी ने पैर पसारे वैसे ही मेरी पत्‍नी ने मुझ में रूचि लेनी कम कर दी और फिर शादी के बीस साल बाद ही पत्‍नी की रजोनिवृत्ति हो गयी थी। उसके बाद उसकी यौन संबंधों में कोई रूचि नहीं रही थी, जबकि मुझे यौन संबंधों की सख़्त आवश्यकता महसूस होती। इस बात को लेकर हममें तकरार बढ़ती गई और आख़िर में उसने मेरी आर्थिक तंगी व मेरी यौन आवश्यकता को नकारते हुए अलग रहने का फै़सला किया। इसलिए मेरा तो यही अनुभव है कि अपने से कम उम्र की युवती के साथ ही शादी की जाये साथ ही सफल दाम्पत्य के लिये आर्थिक सुदृढ़ता अति आवश्यक है। इस तरह के जितने भी संबंध मैंने देखे हैं उन सब का आधार आर्थिक ही है या जैसा कि एक लोकोक्‍त‍ि में कहा गया है कि, “तुख़्म, तासीर, सोहबत का असर” इन्सान की ज़िन्दगी में मुख्य भूमिका निभाते हैं। तो यह लोकोक्‍त‍ि हमारे पारिवारिक संबंधों में भी सटीक बैठती है।

शुरूआत कहां से:-

इस सन्दर्भ में जब हम दृष्‍ट‍िपात करते हैं तो हम पाते हैं कि इंग्लैंड के इतिहास में एक राजमाता ने भरे दरबार में अपने राजा पुत्र से शादी का प्रस्ताव रखा था। क्योंकि राजा उस लड़की से शादी करना चाहता था जो उसकी मां के समान गुण, धर्म व सौन्दर्य वाली हो। राजमाता ने भरे दरबार में कहा अगर मेरे समान यूरोप में कोई राजकुमारी तुझे नहीं दिखती तो तू मुझसे शादी कर। राजा किसी से भी शादी कर सकता है। उसे उत्तराधिकारी जन्मना है। हालांकि यह शादी नहीं हुई थी लेकिन हम इस उदाहरण को इसकी शुरूआत तो मान ही सकते हैं। पति-पत्‍नी की उम्र के बड़े अन्तर की कई घटनाएं साहित्य की अमर रचनाएं बनकर विश्‍व प्रसिद्ध हो गई हैं। जिनमें “लोलिता” व “लेडी चटर्लि का प्रेमी” प्रमुख उदाहरण हैं। मध्ययुगीन महान् साहित्यकार सैम्युअल जॉनसन की पत्‍नी उन से 20 साल बड़ी थी लेकिन दोनों में प्रगाढ़ प्रेम था। भारतीय इतिहास में राधा उम्र में कृष्ण से बड़ी थी और हमारा तमाम साहित्य इस बात की पुष्‍ट‍ि करता है कि राधा बाल कृष्ण से रास लीला में खूब रस लेती थी। इस तरह गौतम बुद्ध की पत्‍नी भी उम्र में उनसे बड़ी थी तथा महात्मा गांधी की पत्‍नी की उम्र भी उनसे अधिक थी।

वर्तमान में भी फ़िल्मी कलाकार अशोक कुमार स्वयं भागलपुर के अपने बचपन की एक लगभग अधेड़ ‘राधा’ को कभी नहीं भूल पाये जो उन्हें ‘कृष्ण’ बनाकर उन पर अपना प्यार लुटा देती थी। इसका ज़िक्र अनेक बार वह स्वयं अपने संस्‍मरणों में कर चुके हैं।

इसी प्रकार सुनीलदत्त की पत्‍नी नर्गिस उम्र में इन से बड़ी थी। खेल जगत् के चमकते सितारे सचिन तेंदुलकर की पत्‍नी अंजली मेहता उम्र में सचिन से 5 साल बड़ी है लेकिन दोनों की शादीशुदा ज़िन्दगी अच्छी तरह चल रही है।

उम्र का आदर्श अन्तर क्या हो?:-

अब सवाल यह पैदा होता है कि पति-पत्‍नी की उम्र में आदर्श अन्तर क्या होना चाहिए जो कि उन्हें शारीरिक व मानसिक दृष्‍ट‍ि से स्वस्थ रख सके। इस संबंध में वैज्ञानिकों का कहना है कि “सामान्यतया पुरुष का टेस्टोस्टेरोन स्तर उम्र बढ़ने के साथ घटता चला जाता है और तदानुसार उसकी यौन शक्‍त‍ि भी घटती चली जाती है यहां तक कि प्रजनन की दृष्‍ट‍ि 45 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों के शुक्राणुओं का निर्माण मद्धिम पड़ जाता हैं और वे प्रजनन की दृष्‍ट‍ि से अधिक योग्य नहीं रह जाते हैं। इसमें आधुनिक जीवन शैली भी अपनी भूमिका निभाती है वहीं स्त्री की यौन शक्‍त‍ि धीरे-धीरे बढ़ती है तथा उसका उच्चतम स्तर 36-38 वर्ष की उम्र में होता है। यही कारण है कि 19-20 वर्ष की उम्र के पुरुष की यौन क्षमता 50 वर्ष की उम्र की अपेक्षा से कहीं अधिक होती है, जबकि 18-19 वर्ष की उम्र में किसी लड़की की सेक्स के लिए इच्छा कम होती है तथा 28-30 वर्ष में सेक्स के लिए इच्छा सर्वाधिक होती है इसलिए पति से पत्‍नी की उम्र 8-10 वर्ष अधिक हो तो यह उम्र का आदर्श अन्तर कहा जा सकता है लेकिन समाज की दृष्‍ट‍ि से पति से पत्‍नी की उम्र 5-8 वर्ष कम हो तो इस अन्तर को उम्र का आदर्श अन्तर कहा जाता है।”

मनोवैज्ञानिक कारण:-

वैवाहिक जीवन में पति से बड़ी उम्र की पत्‍नी होने पर विवाह अधिक सफल होने के पीछे कुछ नैसर्गिक एवं मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। यह सत्य है कि किशोरवय से युवावस्था में पदार्पण के समय युवक-युवतियों में अल्हड़पन समान रूप से प्रतिबिम्बित होता है, पर इसके बाद उनमें भिन्न-भिन्न लक्षण दृष्‍ट‍व्य होते हैं। लड़कों में जहां उतावलापन, दुस्साहस और गैरज़िम्मेदारी का भाव अधिक आता है, वहीं लड़कियों में लज्जा, ज़िम्मेदारी और संवेदनशीलता दृष्‍ट‍िगत होने लगती है। वे अपने प्रत्येक कार्य को जनप्रतिक्रियाओं के आईने में देखती हैं। वे प्रत्येक कार्य को अच्छे और बुरे के आधार पर अधिक समझ व ज़िम्मेदारी से संपादित करती हैं। इसी आयु वर्ग में युवकों की तुलना में सृजक की भूमिका गंभीरता से निभाती प्रतीत होती हैं। यही भाव उनमें जीवन पर्यन्त बना रहता है और उसी के कारण दाम्पत्य जीवन में वे पुरुषों की दुस्साहसिकता पर रोक लगाये रखने में सफल होती हैं। बड़ी उम्र की महिलाएं अपने व्यक्‍ति‍त्‍व व सूझ-बूझ के कारण से भी कम उम्र के युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहती हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह आकर्षण शारीरिक एवं बौद्धिक दोनों स्तरों पर हो सकता है और इसी कारण युवा अपने से बड़ी उम्र की महिला को अपनी जीवन-संगिनी बना लेने को तत्पर हो जाते हैं।

क्या कहते हैं सर्वे:-

ब्रिटेन में भी ऐसी लड़कियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जो अपने से काफ़ी कम उम्र के पुरुषों को जीवनसाथी बनाना चाहती हैं। कैरियर को प्राथमिकता देने वाली ये लड़कियां खुद भले ही 30 वर्ष की उम्र पार कर जाती हैं, लेकिन उन्हें 21-22 वर्ष के लड़कों के साथ घर बसाना पसंद है। इसका खुलासा एक सरकारी सर्वे में हुआ।

जिसके अनुसार ब्रिटेन की लड़कियां अपने कैरियर को विशेष प्राथमिकता देने लगी हैं। अपनी आर्थिक स्थिति मज़बूत करने के बाद वे कम उम्र के पति की तलाश में जुट जाती हैं। राष्‍ट‍्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक़ इंग्लैंड और वेल्ज इलाके में कम उम्र के पुरुषों के साथ शादी रचाने का रुझान ज़ोर पकड़ता जा रहा है। अब अधिकांश लड़कियां ज़िन्दगी का 28वां तथा 30वां बसंत देखने के बाद ही शादी का फ़ैसला लेती हैं, जबकि 1963 तक अधिकांश लड़कियां 20 से 26 वर्ष की उम्र में दुलहन बन जाती थी।

गला काट प्रतियोगिता के इस युग में ब्रिटिश लड़कियां सबसे अधिक प्राथमिकता कैरियर को देती हैं। 1963 तक ऐसी दुलहनों की प्रतिशतता 15 थी जो अपने वरों से उम्र में बड़ी थी। 1998 में वरों की तुलना में उम्रदराज दुलहनों की प्रतिशतता बढ़कर 26 हो गयी। उनमें से एक चौथाई लड़कियां ऐसी थीं जिन्होंने अपने से कम-से-कम 6 वर्ष कम उम्र के लड़कों से शादी की थी। 1998 में ऐसी बेमेल शादियों की संख्या 18700 थी। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि लड़कियों की यौन रूचि में क्रान्तिकारी बदलाव आया है। पहले पुरुष कम उम्र की लड़कियां पसंद करते थे, लेकिन अब लड़कियां मासूम और कम उम्र के युवक को पसंद करने लगी हैं। उनका कहना है कि आर्थिक रूप से संपन्न लड़कियों के लिए अपने से कम उम्र के लड़कों से शादी रचाना स्टेटॅस सिंबल बन गया है। अधिकांश लड़कियों ने सर्वेक्षणकर्ताओं को बताया कि कम उम्र के लड़कों से शादी रचाना बदलते माहौल की ज़रूरत है वे ऐसे लड़कों के साथ खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं। शोधकर्ताओं के प्रमुख रूथ हैनकोक ने बताया कि उम्रदराज़ लड़कियां कम उम्र के लड़कों से शादी रचाना इसलिए भी ज़रूरी समझती हैं क्योंकि इससे उन्हें अधिक यौन संतुष्‍ट‍ि मिलती है। यहां तक कि 50 प्रतिशत से अधिक विधवायें और तलाक़शुदा महिलायें भी अपने से कम-से-कम 5 वर्ष कम उम्र का पति ढूंढ़ती हैं।


 

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