-इंदरजीत कौर, नीलम गरेवाल

यूं भारत में बहुत से क़िस्मों के शॉलों का उत्पादन किया जाता है। यह आमतौर पर ऊन के बने होते हैं परन्तु ये सूती, रेशमी और रेयन आदि के बने भी हो सकते हैं। इन सभी तरह के शॉलों में से सबसे ज़्यादा पशमीना शॉलों को पसंद किया जाता है। इसकी बाक़ी सभी से ज़्यादा मांग की जाती है। यह अपनी अच्छी क़िस्म, आकर्षण, गर्म और हलके होने के कारण जाने जाते हैं। अपनी प्रसिद्धि के बावजूद पशमीना शॉल ज़्यादा महंगे होने के कारण अधिकतर खपतकारों की पहुंच से दूर हैं। फिर भी समाज के हर वर्ग का मन पशमीना शॉलों के लिए ललचाता है और कभी-कभी दुकानदार ग्राहक के साथ धोखा करते हैं और उनको पशमीना शॉलों के नाम पर घटिया क़िस्म के शॉल बेच देते हैं।

शॉलों के संबंध में कश्मीर संसार प्रसिद्ध है। यहां अच्छी क़िस्म के पशमीना शॉलों का उत्पादन किया जाता है। पशमीना शॉलों का उत्पादन हिमाचल प्रदेश और पंजाब में भी किया जाता है परन्तु इन जगहों के उत्पादित शॉल कश्मीर में उत्पादित शॉलों का मुक़ाबला नहीं कर सकते।

पशमीना जानवरों से प्राप्त होने वाला सबसे बढ़िया धागा (ऊन) है। धागों की औसतन ऊंचाई तीन से बारह सें. मी. होती है। ऊन छूने में बहुत कोमल और हलकी होती है। अन्य बढ़िया क़िस्मों के ऊनी कपड़ों की अपेक्षा पशमीना शॉल 10 से 40 प्रतिशत कमज़ोर होते हैं। पशमीना ऊन के प्रति इन्च 70 से 80 मोड़े होते हैं जबकि कुछ बढ़िया क़िस्म की ऊन के प्रति इन्च 110 मुड़ाव होते है। पशमीना शॉल अन्य ऊनी कपड़ों की अपेक्षा कम टिकाऊ होते हैं परन्तु यह ज़्यादा गर्मी देते हैं। कच्चे माल की ज़्यादा कमी होने के कारण पशमीना धागों को रेशमी, सूती इत्यादि धागों के साथ अलग-अलग अनुपात में मिश्रित किया जाता है। कभी-कभी निम्न स्तर के पशमीना शॉल तैयार करने के लिए पशमीना धागों को आम ऊनी धागों के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है। इससे शॉल की उत्तमता और क़ीमत में वृद्धि होती है। इन विधियों द्वारा पशमीना शॉलों की क़ीमत और गर्माहट प्रभावित होती है।

पशमीना शॉल ज़्यादातर प्राकृतिक रंगों में उपलब्ध होती है जैसे स्लेटी रंग और हलका भूरा रंग। कश्मीर में इसको सुंदर बनाने के लिए बहुत बढ़िया क़िस्म की कशीदाकारी का प्रयोग किया जाता है। बढ़िया फूलों के डिज़ाइन, रंगों का बढ़िया मिश्रण और बढ़िया कारीगरी पशमीना शॉलों की सुन्दरता में बढ़ोतरी करते हैं। शॉल के ऊपर की गई कढ़ाई की मात्रा के हिसाब मुताबिक़ शॉलों की क़ीमत बढ़ती जाती है। खुरदरी ऊन से बने हुए शॉल जिनको कुल्लू पशमीना कहा जाता है मुक़ाबलतन सस्ते होते हैं।

ख़रीदते समय

पशमीना और शुद्ध ऊन में अन्तर समझना मुश्किल काम है। कोई भी व्यक्ति अनुभव द्वारा शुद्ध पशमीना की बढ़िया, हलकी और कोमल बनावट को पहचान सकता है। पशमीना का ज़्यादातर क्रय-विक्रय ख़रीदार और दुकानदार के आपसी विश्वास के आधार पर होती है। फिर भी अनजान ग्राहक को याद रखना चाहिए कि पशमीना एक क़ीमती कपड़ा होता है। यदि दुकानदार बाज़ार की क़ीमत से कम या ज़्यादा सस्ता बेचते हैं तो उस को शक के घेरे से बाहर नहीं रखना चाहिए। अधिकतर बेचने वाले ख़ासकर कश्मीरी आम ग्राहकों को ललचाने के लिए बहुत कम क़ीमत पर पशमीना शॉल बेचते हैं। इसके अलावा ज़्यादातर बेचने वाले हलकी ऊन के शॉल अमृतसर या लुधियाना से ख़रीदते हैं और उन को पशमीना शॉलों के रूप में बेच देते हैं। इसलिए यह मशविरा दिया जाता है कि ऐसे शॉल थोक विक्रेता दुकानों से ही ख़रीदने चाहिएं।

इस्तेमाल करते वक़्त

पशमीना शॉलों का प्रयोग करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। उनका ध्यान पूर्वक प्रयोग करना चाहिए। यदि कोई दाग़-धब्बा लग जाए तो एकदम उचित प्रतिकारक द्वारा इनको साफ़ करना चाहिए। यदि संभव हो तो पशमीना शॉलों को किसी योग्य ड्राईक्लीनर से ड्राईक्लीन करवाना चाहिए या घर में ही धोना चाहिए परन्तु घर में धोने के लिए घर में बनाए हुए रीठे का घोल या बाज़ार में मिलने वाले क्षार के गुणों वाले डिटर्जेंट का प्रयोग करना चाहिए। धोने के लिए ठीक विधि का प्रयोग करें जैसे धुलाई के वक़्त गुनगुने पानी का प्रयोग करें, साबुन के घोल में भी शॉल को ज़्यादातर भिगोकर न रखें। इसको ज़्यादा न रगड़ें, मैल या ग्रीस को अलग करने के लिए हलके हाथों से दबाएं, शेष मैल को दूर करने के लिए अंत में सिरके के साथ धोएं। हाथों के साथ फ़ालतू पानी निकाल दें और छाया में सुखाएं। भाप वाली इस्तिरी से प्रैस करें या शॉल पर गीला या सूती कपड़ा रख कर प्रैस करें। पशमीना शॉल धोने के लिए कभी बाज़ारी रीठा पाउडर का प्रयोग न करें। फिर भी जब घर में धोया जाता है तो यह कुछ सिकुड़ सकता है। इनकी देखभाल के समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उनको पुराने मलमल के कपड़े या अख़बार में लपेटें और कीटाणु रहित ट्रंक या अलमारी में रखें। देखभाल करते समय कीड़ों-मकोड़ों के आक्रमण को रोकने के लिए किसी बदबू रोधक का प्रयोग करना चाहिए। इससे क़ीमती पशमीना शॉल ज़्यादा देर तक चलेगा।

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