-आकाश पाठक

बात बेशक पुरानी हो गई है। मगर उसकी मनहूसियत आज भी मेरे दिलो-दिमाग़ पर हावी है। हालांकि ज़िक्र करते हुए सुखद अनुभूति तो नहीं हो रही है लेकिन पुरानी धारणा है कि बांटने से दुःख कम ही होता है, इसलिए…..।

उस मनहूस दिन मैं सुबह-सुबह एक हाथ में अख़बार और दूसरे हाथ में चाय की प्याली पकड़े, धीरे-धीरे गर्म-गर्म चुस्कियों का आनन्द ले रहा था। अचानक एक ख़बर पढ़ते ही मेरा हलक चाय की अधिकता के कारण जल उठा। चाय लगभग मेज़ पर पटक कर मैं उस समाचार को पढ़ रहा था, जैसे-जैसे पढ़ता चला जा रहा था मेरी आंखों के सामने अंधेरा गहरा होता जा रहा था।

काजोल ने अजय के साथ….. शादी कर ली थी। मैं गुमसुम की अवस्था में बैठा हुआ सोच रहा था कि आख़िर काजोल की ऐसी कौन सी मजबूरी थी, जिसके कारण उसे अजय के साथ शादी करनी पड़ी। मैंने अपने दिल को बहुत ही मज़बूती के साथ संभाल रखा था। दिल के किसी कोने से आवाज़ आई कि शायद अजय ने उसके साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती की होगी। पुरानी फ़िल्मों में जैसे प्राण खलनायक कर लेता था।

बेवफ़ा। नहीं-नहीं। वह मजबूर होगी। मैंने स्वयं को समझाया। हम दोनों ने कई फ़िल्मों में साथ-साथ गाने गाए थे। उसने मेरे साथ वायदा किया था कि हर फ़िल्म वह मेरे साथ बनाएगी। मैं नायक बनूंगा और वह नायिका। मुझे अच्छी तरह से याद है कि हम दोनों पार्क में घूम-घूम कर फ़िल्मी गीत गुनगुना रहे थे। तभी अजय के साथ आया इलाके का गुण्डा गरज कर बोला।

‘पानी गर्म हो गया है। ऑफ़िस नहीं जाना?’ कमरे में खलनायिका यानी कि मेरी धर्म पत्नी की एन्ट्री हुई। उसकी दहाड़ से मेरे सपने कोसों दूर भाग गए। हाथ से छूटा अख़बार और मैं भागा बाथरूम की ओर। यह सही है कि मेरे सिर पर सपने अभी तक बोझ बने हुए थे, मगर जैसे-जैसे शरीर पर पानी गिरता जा रहा था मैं अपने आप को व्यस्त करता जा रहा था। लेकिन एक प्रश्न मेरे दिमाग़ पर फिर हावी था कि आख़िर काजोल की ऐसी कौन-सी मजबूरी थी। मैं अभी उस मजबूरी को खोज नहीं पाया था कि मेरे कानों में मेरी बीवी का कर्कश रुदन आकर टकराया।

‘मैं बर्बाद हो गई। हाय! मैं लुट गई।’

मैं आनन-फानन में गुसलख़ाने से निकला। बीवी के पास पहुंचा तो देखता हूं कि वह दहाड़ें मार-मार के छाती पीट-पीट कर रो रही है। मेरी समझ में नहीं आ रहा था। घर के सामान की तरफ़ देखा सब ज्यों का त्यों था। माजरा क्या था यह पूछ भी लेता मगर उसकी दहाड़ों में मेरी आवाज़ दब कर रह जाती।

‘क्या हुआ?’ मैं पूरे ज़ोर के साथ चीखा।

प्रत्युत्तर में उसने मेरी तरफ़ देखा फिर अपना मुंह आसामान की तरफ़ किया फिर श्लोक निकला- ‘हे भगवान! यह तूने क्या किया?’

‘मुझे भी तो पता चले कि माजरा क्या है?’ मैं अपने क्रोध को दबा नहीं पाया। उसने साड़ी का एक छोर मुंह में दबाया और समीप पड़े अख़बार को मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली- ‘तुम्हें पता है कुछ, अजय देवगन ने शादी कर ली है।’

यह सुनते ही मैं गुसलख़ाने की तरफ़ बढ़ गया।

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