-मनोहर चमोली मनु

नई सदी का मानव हूं। एक अच्छा पड़ोसी। पता नहीं लोग क्यों कहते हैं कि अच्छा पड़ोसी भाग्य से मिलता है। जो भी हो, यह तो सौ टका सच है कि मैं हमेशा पड़ोसियों के सुख-दुःख में बराबर सहयोगी रहता हूं। जब-जब मेरा पड़ोसी संकटग्रस्त हुआ, मैं लपक कर पहुंचा। मेरे किसी भी पड़ोसी का जब आत्मविश्वास डिगा, मैंने तुरंत कठोर होकर उसे वस्तुस्थिति से अवगत कराया। मैं हमेशा गरम लोहे पर चोट करता हूं।

जब भी मेरा पड़ोसी संकट के दौर से गुज़रा है, उसने सदैव मुझे अपने नज़दीक पाया है। मैं यह एहसास उस पड़ोसी को यह कहकर कराता हूं कि ‘ये तो होना ही था।’ परेशान व्यथित उस पड़ोसी को मैं सतर्क करता हूं कि भविषय में अन्य अनिष्ट का सामना करने के लिए तैयार रहें।

मेरे एक पड़ोसी करोड़पति हैं। उनके घर में चोरी हो गई। लगभग एक लाख रुपये की नक़दी चोर उड़ा के ले गए। मैंने पड़ोसी को अागाह किया कि आगे से अपनी हैसियत के अनुसार नक़दी घर में रखें। एक अन्य पड़ोसी की सास का देहांत हो गया। वह उन्हीं के साथ रहती थी। मैंने पड़ोसी का ढाढ़स बंधाया। उन्हें सलाह दी। कुछ ज़रूरी टिप्स भी दिये। बताया कि कैसे भविष्य में घर के अन्य सदस्यों के मरने पर कौन-सी सामाजिक मान्यताओं को निभाना।

मेरे तीसरे पड़ोसी हैं। उनके यहां मेहमानों का तांता लगा रहता है। मैं सब पर नज़र रखता हूं। छानबीन और पूछताछ करना मेरा दायित्व है। बेहिचक मेहमानों से पूछ लेता हूं कि ‘क्या करते हैं, क्यों आये हैं, कब तक रहेंगे?’ वग़ैरह-वग़ैरह। क्या पता कहीं कोई अपने घरवालों से लड़ कर आ गया हो। कुछ अनिष्ट हो गया, तो सबसे पहले पड़ोसी फंसता है।

अपनी तो आदत है कि पड़ोसियों को नेक सलाह देता रहूं। उन्हें भटकने न दूं। मैं अक्सर पड़ोसियों को कहता रहता हूं कि आदमी वही है जो दूसरों से धन की लालसा न करे। अपनी समस्याओं से खुद निजात पाये। मेरी मान्यता है कि पड़ोसी से अात्मीयता बनी रहनी चाहिए। आत्मीयता वहीं हो सकती है जहां संकोच न हो। यही कारण है कि मैं बेधड़क किसी भी पड़ोसी के घर में जा धमकता हूं। व्रत त्योहारों में तो मैं रोज़ाना दो-तीन चक्कर लगाता हूं। मैं मिलनसार हूं। संकोच की छाया तो मैंने कभी अपने व्यक्तित्व पर पड़ने ही नहीं दी। पड़ोसियों के घर की चीज़ें मेरी ही हैं। पड़ोसी का अख़बार मैं पहले पढ़ता हूं। उनका हैंड पम्प हमारा ही है। उनका रेडियो, खुरपा, कुदाल, हथौड़ी बाल्टी आदि मेरे घर में हैं। कई कटोरियां, गिलास, थालियों और चम्मचों में पड़ोसियों के नाम खुदे हैं।

दुनियां हाई-टैक हो गई है। हुआ करे। मेरा पड़ोस हाई-टैक है तो हम भी हो गए समझो। मेरे तीनों बच्चों ने कम्पयूटर पड़ोसी के घर जाकर सीखा। मेरे सारे फ़ोन पड़ोसी के फ़ोन पर आते हैं। अक्सर फ़ोन करने पड़ोसियों के घर ही चला जाता हूं।

मेरे एक पड़ोसी काश्तकारी का शौक़ रखते हैं। उन्होंने अपने आंगन में तरकारियां लगाई हुई हैं। मुझे याद नहीं कि मैंने कब बाज़ार से हरी-पत्तेदार सब्ज़ियां ख़रीदी। उनके घर के पिछवाड़े में दो आम के पेड़ हैं। मुझे आज तक नहीं पता कि आम का बाज़ारी भाव क्या है।

पड़ोसियों की तरक्क़ी में मेरी तरक्क़ी है। उनकी आमदनी पर मुझे नज़र रखनी पड़ती है। उनका बोनस, मुनाफ़ा और महंगाई भत्ते का मुझे हिसाब रखना पड़ता है। उनकी प्रगति जानकर उनकी खुशी में शामिल होना मेरा दायित्व है।

मेरी धारणा है कि पड़ोसी अच्छे नहीं होते बल्कि उन्हें अच्छा बनाया जाता है। एक अच्छे पड़ोसी में यह सब गुण तो होने ही चाहिए जो मुझ में हैं। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप भी मेरी तरह एक अच्छे पड़ोसी बनने की शुरूआत करेंगे। आज से ही शुरू करें। मेरी शुभकामनायें स्वीकार करें।

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