-बलदेव राज भारतीय

देश के राष्ट्रपिता महात्मा-गांधी जी को उनकी सत्यवादिता और अहिंसा की नीतियों से प्रभावित होकर ईश्वर ने उनसे उनके किसी मनपसंद स्थान की यात्रा का टिकट उपहार में दिया। बापू ने सोचा कि क्यों न उस देश की यात्रा कर ली जाए, जिसको स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने अपना समस्त जीवन लगा दिया था। उन्होंने अपनी इच्छा ईश्वर के समक्ष रख दी। उनकी यात्रा के लिए विशेष प्रबंध कर दिया गया। उनके साथ एक देवदूत को भेजा गया जो वर्तमान भारत देश की समस्त जानकारी रखता था। दोनों एक पुष्पक चरखायान में सवार होकर भारत-यात्रा पर निकले। अनेक गहरे काले एवं सफ़ेद बादलों से होता हुआ चरखायान भारत के आकाश पर आ पहुंचा। ऊंचा सा हिमालय देखने में बहुत सुंदर लग रहा था।

‘कश्मीर के ऊपर से गुज़रते हुए बापू गांधी चिल्ला उठे, ‘यह कश्मीर है। भारत का स्वर्ग। बहुत ही प्यारी धरती है।’

‘ठीक कहा आपने। यह स्वर्ग बहुतों को स्वर्गीय कर चुका है। इस धरती के साथ लोगों का कितना गहरा प्रेम है, इसका अनुमान तो इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस धरती को छीनने के लिए दो पड़ोसी देश पिछले सत्तर साल से आपस में लड़े ही जा रहे हैं। यहां के लोग इसे केसर की क्यारी बुलाते थे, परंतु अब……..? अब तो इस केसर की क्यारी से सिवाय बारूद की दुर्गंध के कुछ नहीं आता।’ देवदूत ने गांधी जी को कश्मीर की वर्तमान स्थिति से अवगत कराते हुए कहा।

‘बारूद की दुर्गंध………यानि हिंसा? क्या ये लोग हिंसा करते हैं?’

तो बारूद की दुर्गंध क्या आतिशबाजी से आएगी।

अभी चरखायान पंजाब के ऊपर से गुज़र रहा था। गांधी जी ने देखा कि लोग नशे में चूर हैं। कोई गलियों में गिरता-पड़ता तो कोई नालियों में लुढ़कता। उन्हें लगा कि उस समय तो इतनी भीड़ नज़र नहीं आती थी। अब तो सड़कों पर चींटियों की भांति गाड़ियां रेंग रही हैं। कहां से आ गए इतने लोग? उन्होंने दूत से पूछा कि इतनी भीड़भाड़ क्यों नज़र आ रही है? तो दूत ने कहा, ‘जिस समय आप यह  देश छोड़कर गए थे तब से अब तक इस देश की आबादी कई गुना बढ़ चुकी है। भीड़भाड़ तो लगेगी ही आपको।’

अभी चरखायान हरियाणा राज्य के ऊपर से गुज़र रहा था तो बापू गांधी ने देखा कि कुछ लोग झंडे उठाए सरकार विरोधी नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। गांधी जी ने दूत से पूछा कि क्या इस देश पर दोबारा अंग्रेज़ों का क़ब्ज़ा हो गया है? ‘नहीं, नहीं बिल्कुल नहीं। ये तो सरकारी कर्मचारी हैं जो अपने वेतन-भत्तों को बढ़ाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।’

‘अगर ये इस समय आंदोलन कर रहे हैं तो अपनी ड्यूटी किस समय करते होंगे?’

‘यह सब तो मैं भी नहीं जानता, और आप को जानने की अनुमति भी नहीं दे सकता।’

‘…..और ये कौन हैं जो पानी पी-पीकर सरकार को कोस रहे हैं?’

‘ये वो लोग है जिनका मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक सभी प्रकार का शोषण सत्तासीन लोगों ने किया है। इन्हें अतिथि शिक्षक कहा जाता है। ये सभी घटिया राजनीति के शिकार लोग हैं। पहले एक दल, जिस दल से कभी आप भी संबद्ध थे, ने इनका खूब शोषण किया और अब दूसरे दल की सरकार भी इनका खूब शोषण कर रही है।’

‘इनकी मुख्य समस्या क्या है?’

‘इन्हें कच्चे कर्मचारी की श्रेणी में रखा गया है। इनकी नौकरी कभी भी जा सकती है। पूरा काम लेकर इन्हें आधे से भी कम वेतन दिया जाता है।’

‘तो इन्हें न्यायालय की शरण में जाना चाहिए।’

‘न्यायालय……? कौन सुनता है वहां भी इन बेचारों की। …..फिर आप जैसा कोई नेता या वकील भी तो नहीं इनके पास, जो इनकी सुनवाई करवा सके।’

‘ये कुछ लोग रेल की पटरियों पर क्या कर रहे हैं?’

‘ये शायद किसी जाति विशेष के लोग है जो अपनी जाति को नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।’

‘सुनो, चरखायान को वापस मोड़ लो मैं आगे नहीं जाना चाहता। जिस सत्याग्रह को मैंने अपना हथियार बनाया था। उसी सत्याग्रह को अपनी उचित-अनुचित मांगों को मनवाने का हथियार बना लिया लोगों ने।’

‘अभी तो हमने प्रवेश ही किया था, आप अभी से वापस जाने की बात कर रहे हो। दिल्ली तो देखते जाइए।’

‘नहीं, नहीं। बस अब और नहीं। ……… मैं तो हैरान हूं कि मुझे इस देश की सैर के रूप में उपहार मिला या सज़ा।’

‘यात्रा का चुनाव आप का था। आपकी इच्छाओं का सम्मान करना ही मेरा कार्य था, जो मुझे सौंपा गया था। अब आप वापस जाने को कह रहे हैं तो मैं आपको वापस ले चलूंगा।’

इतना कहते ही देवदूत ने चरखायान को पीछे मोड़ लिया ओर गांधी जी अपनी भारत-यात्रा अधूरी छोड़ वापस परमधाम चले गए।

2 comments

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