-गोपाल शर्मा फिरोजपुरी

 

एम.ए पास करने के उपरान्त उसने कैसे-कैसे सपने संजोए थे। उसे अच्छी-सी नौकरी मिलेगी। वह आलीशान घर बनवाएगा। उसकी संंभ्रांत घराने में शादी होगी। वह हनीमून के लिये किसी मुम्बई या गोआ के रेस्टोरैंट में ठहरेगा। उसके नन्हे-मुन्हे बच्चे होंगे। वह सवप्नों के उड़न खटोले में उड़ा जा रहा था। अचानक बाहर बरसात होने लगी थी। और उसकी कच्ची छत स्थान-स्थान पर टपकने लगी थी। पानी की बूंदेंं उसके शरीर पर पड़ने से वह वास्तविक संसार में लौटा था।

 उसके सारे ख़ाब हवा हवाई हो गये थे, उसके अरमान धरती में ज़़मींदोज़ हो गये थे। बड़ी-सी नौकरी तो क्या उसे चपड़ासी या माली की छोटी से छोटी नौकरी भी नहीं मिली थी। अनिल का दिल चूर-चूर हो गया था।

 अचानक एक दिन एक पंडित उसके घर आया था। उसके हाथ में पंचांग था। वह पंडित लोगों को उनकी क़िस्मत के बारे में बताता था। अनिल ने अपना भविष्य पूछने के लिए अपनी हथेली उसके सन्मुख कर दी थी। पंडित बड़े गौर से कभी अनिल के चेहरे की ओर देख रहा था और कभी उसके हाथ की रेखाओं का अवलोकन कर रहा था। वह क्या कहे क्या न कहे, वह कोई प्रकाण्ड ज्योतिषी नहीं था। उसकी वाणी से लग रहा था कि वह ज़्यादा शिक्षित नहीं था।

 फिर भी वह वाक्पटुता में निपुण था। कुछ पल रुकने के पश्चात् उसने अपना मुंह खोला था। उसने जो कहा था अनिल को कोरा झूठ लगा था फिर भी वह बड़ी शालीनता से सुन रहा था।

 पंडित ने कहा था यजमान आपके भाग्य का सितारा चमकने वाला है कुछ ही देर के बाद आपकी अपनी कोठी होगी और आपके पास अमुल्य धन सम्पदा होगी।

 अनिल ने सोचा यह पंडित सब्ज बाग दिखा रहा है, बेवकूफ़ बना रहा है। उसका पेशा है लोगों को उल्लू बनाना। धंधा अच्छा है उसने मन ही मन सोचा और पांच रुपये का सिक्का देकर पंडित को विदा किया।

 पंडित के जाने के बाद अनिल के दिमाग़ में विचार कौंधा, क्यूं न वह भी लोगों को इस धन्धे से मूर्ख बनाए। ज़्यादातर लोग समाज में अंधविश्वासी होते हैं। अनपढ़ लोग इस धन्धे से अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं तो वह क्यूं नहीं कर सकता। वह तो पढ़ा लिखा है। इस धन्धे में कौन-सा अधिक धन लगना है। उसे समरण हो आया। उसने दसवीं जमात में एक कहानी एस्ट्रोलोजर्ज़ डे पढ़ी थी। शायद यह आर.के. नारायण की कहानी थी। कहानी का नायक एक मर्डर करके दूर शहर में भाग जाता है और ज्योतिषी का धन्धा अपना कर लोगों के हाथ की लकीरें पढ़ता है। इस प्रकार वह लोगों में काफी प्रतिष्ठा पा रहा था।

 अनिल को यह कार्य खूब भाया था। उसने ज्योतिष की ढेर सारी किताबें ख़रीद डाली थी। प्रारम्भिक ज्योतिष, कुंडली दर्पण फलित ज्योतिष, अंक गणित यानि numerology तथा हस्त रेखा शास्त्र।

 उसने आधी-आधी रात तक इन पुस्तकों का अध्ययन किया था। जीवन रेखा, आयु रेखा, मस्तिष्क रेखा, सूर्य रेखा, भाग्य रेखा, स्वास्थ्य रेखा के साथ उनकी सहायक रेखाएं जैसे कि त्रिशूल, तिल, हाथ पर बने द्वीप और नाखुनों पर काले पीले धब्बों का परिणाम उसने सब ज्ञान प्राप्त कर लिया था। कुंडली दर्पण से नक्षत्र, राशि, योग मुहूर्त का उद्देश्य उसने ज्ञात कर लिया था। जन्म कुण्डली, चन्द्र कुण्डली का निर्माण, दिन मान, रात्रिमान और इष्ट निकाल कर कुण्डली में 12 भावों का ग्रहों की स्थिति के अनुसार उनका फलादेश उसने दिमाग़ में बिठा लिया था। कुण्डली में मांगलिक दोष, गंडमूल नक्षत्रों का प्रभाव उसने भलि भांति जान लिया था। स्वराशि, मित्रराशि, और शत्रुराशि का क्या प्रभाव पड़ता है। अमृत सिद्धयोग, स्वार्थ सिद्ध योग रवि पुष्य योग क्या है यह अनुमान उसने लगा लिया था। कुण्डली में ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा प्रत्यंतर दशा, विवाह मिलान में नाड़ी दोष, शनि साढ़सति का भी अध्ययन कर लिया था। राहु काल राहु केतू का शुभाशुभ गोचर फल भी अपने अध्ययन का केन्द्र बिन्दु बना लिया था। ग्रहों के गुण, वर्ण स्वभाव, ऊंच नीच, ग्रहों का चक्र और कुुचक्र सब प्रकार का उसने विश्लेषण करना जान लिया था। केन्द्र और त्रिकोण में बैठे सूर्य, चन्द्र, मंगल, राहु, बृहस्पति शुक्र, केतू आदि का क्या लाभ या हानि होगी सब उसने सीख लिया था।

 इसके अतिरिक्त जन्म तिथि के अनुसार कौन-सा नग पहनना है, कब पहनना है, मोती, पुखराज, मानक, ऐमराल्ड या कोरल या मूंगा पहनना है या शनि के लिये नीलम चाहिये राघव ने खूब मत्था पच्ची की थी।

 इस अध्ययन के लिए उसे दो वर्ष, कड़ी मेहनत करनी पड़ी था। जब उसे आश्वासन हो गया कि वह अपने पास आने वाले व्यक्ति पर अपना प्रभुत्व जमा सकता है तब उसने बड़ा सा साईन बोर्ड बनवा कर कमरे की दीवार के साथ लटका दिया था जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा था। एस्ट्रोलोजर अनिल।

 शुरू-शुरू में इक्का दुक्का ग्राहक ही उसे अपना भाग्य पूछने आये थे। परन्तु जिस दिन से उसेे मदन त्रिपाठी लोकसभा के चुनाव के लिये जन्म कुण्डली दिखाने आया अनिल के भाग्य ने करवट बदली थी। उसने कुण्डली का अवलोकन करते हुये कहा कि जनाब आपकी कुण्डली में केन्द्र स्थान चतुर्थभाव में गुरु बैठा है, शुक्र भाग्य स्थान पर स्वराशि का है इसलिए आपका मंत्री बनना तय है। शुक्र स्वराशि का होने से अपार धन सम्पदा के मालिक होंंगे। तुकबन्दी सही निकली, और चुनाव में मदन त्रिपाठी विजयी रहा।

अब तो उसके इर्द गिर्द लोगों की भीड़ जमा है। शहर में उसकी मान प्रतिष्ठा है। कार कोठी और वह सुखदायी जीवन का भोग कर रहा है।

 

One comment

  1. Really informative blog.Thanks Again.

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