काव्य

इस बार दीवाली पर

इस बार दीवाली पर हसरतों की ख़ाक आंसुओं में गूंथ मन के चाक पर चढ़ा आहों की भट्टी में तपा दिल के दिये बनाएंगे विश्वास के तेल में भिगो कर प्रेम की बाती

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बंटवारा

धरती बांटी अंबर बांटा बांट दिया जग सारा मानव तेरी चाल के आगे ईश्वर भी है हारा ईश्वर ने तुुझको बनाया

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बाल स्नेह

आ मेरे मुन्ने मैं तूझे प्यार कर लूं दुलार कर लूं बार-बार कर लूं संसार की उपेक्षा- अपेक्षा से नादान है तू

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ओ बटोही

ओ बटोही कविता पथ के कहां चला शब्दों का रथ ले भाव प्रवण कविताएं तेरी चपल-चपल ललनाएं तेरी गोरी के नूपुर-सी गुञ्जित भोर सुहानी जैसी सुरभित

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कभी-कभी मन करता है

कभी-कभी मन करता है सोई हुई रात के तन से तारों की चादर उतार दें दिन भर के डलते सूरत को शाम ढले किसी दरिया में डुुबो दें

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कवि और क़लम

बारुद के ढेर पर बैठी दुनियां इनको समझा कवि नफ़रतें सब धुल जाएं प्रेम गीत सुना कवि जंग की तैयारी में बन रहे हथियार नये-नये जंग से हथियार छुड़ा, सौहार्द पकड़ा कवि क्यूं अधीर हुए बैठी है युद्ध के लिए दुनियां दास्तां बर्बादियों की इसको सुना कवि

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नये दौर की कहानी

ज़हरीली हवा घुटती ज़िंदगानी दोस्तो यही है नये दौर की कहानी दोस्तो पर्वतों पे देखो कितने बांध बन गए जवां नदी की गुम हुई रवानी दोस्तो

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पहचान

जगाधरी के बस स्टॉप पर खड़ा था एक हिप्पी-टाइप लड़का उसकी रहस्यमयी वेश भूषा को देखकर एक्सप्रैस गति से मेरा दिल धड़का

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