काव्य

तुम्हीं तो हो

तुम्हीं तो हो जिसे मिल कर लगा मिलना चाहता था जिसे मैं पिछले कई जन्मों से तुम्हीं तो हो जिसे देख कर आंखों में जगमगाये असंख्य तारे लगा बिना देखे ही देख ली सारी दुनियां

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साथी चलो

साथी चलो हम वहां चलें जहां प्यार ही प्यार हो दुलार हो सहयोग हो नफ़रत का न साया हो झगड़े का न नाम हो साथी चलो

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आओ दीप जलाएं

माना रफ़तार-ए-जिंदगी में नहीं तुमको हमको फुरसत मगर कब छिपी है किसी से इन्सानियत की फ़ितरत

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मेरा कुछ भी नहीं

मेरे पिता का अब "मेरा" कुछ भी नहीं है क्योंकि मैं उसका बेटा नहीं हूं उसके तथाकथित 'कुलीन कुल' का दीपक भी नहीं हूं न ही उसके वंश साम्राज्य का प्रतीक ही हूं

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आ जाओ

मैंने हवाओं, घटाओं खुश्बुओं, शुआओं आंसुओं, दुआओं के हाथ कितने ही ख़त भेजे हैं तुम्हें शाम ढले भी दमों की दहलीज़ पर बैठा समय के डाकिए के हाथों तेरे जवाब का इन्तज़ार कर रहा हूं।

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मैं सृष्टि हूं

मैं सृष्टि हूं यह जानते हुए भी मेरे अस्तित्त्व को झुठलाया गया महारथियों की अर्धांगिनी होते हुए भी भरी सभा में मुझे लज्जित करवाया गया।

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क़तार

दिन-प्रतिदिन लंबी होती जा रही यह क़तार... क़तार-यह बेरोज़गारी की क़तार-यह लाचारी की हर दिन एक संख्या जुड़ती जा रही है इसमें

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वृक्ष

हवा के झोंके से उसकी ज़ुल्फ़-सी लहराई तपती दोपहरी में मुझे राहत-सी आई सबके दिलों पर वो करते हैं राज़ पंछी भी करते हैं उन पर नाज़

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हर बार नहीं

तुम तो चाहते हो कि तुम मेरे जज़बातों से बलात्कार करो और मैं हर बार अपने वजूद के टुकड़ों को समेट कर पुनः तुम्हारे कदमों में फूलों की तरह विछ जाऊं

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