जीवन दर्शन

मत हो ए दिल उदास

ग़ुुस्से में उठाया गया हर क़दम अधिकतर ग़लत ही साबित होता है। वो कहते है न ‘एक ग़लत क़दम उठा था राहे शौक़ में, मंज़िल तमाम उम्र हमें ढूंढती रही।’

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श्ब्द की शक्ति

शब्दों के बग़ैर मनुष्य की ज़िंदगी गूंगे की ज़ुबान की तरह है। आध्यात्मिक लोग शब्दों की शक्ति समझने में समर्थ होते हैं। शब्द कभी मरते नहीं। इन के अर्थों का संदेश दिमाग़ में कीटाणुओं की तरह प्रवेश करके असर करता है।

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राष्ट्र निर्माण या चरित्र निर्माण

हम अपनी जड़ से कोसों दूर जा निकले हैं। आज नैतिक मूल्यों को बुद्धू बक्सा (टी.वी.) ही चबा निगल रहा है। क्या ड्रामे और क्या धारावाहिक सब में विवाहेत्तर संबंधों में उन्मुक्तता रखने, बरतने वाले बोल्ड एवं ब्यूटीफुल चरित्रों का बोल-बाला दिखाया जा रहा है।

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बहता पानी

समाज का बहुत बड़ा हिस्सा इस तरह के मॉडल की प्रतीक्षा में होता है, और ऐसे आदर्श को वह अपने इष्ट के बराबर मानने को तैयार भी हो सकता हैं, पर ऐसा मॉडल उनको कोई दिखाई देता ही नहीं और वो दुःखी होकर प्रचलित रिवायत पर ज़िंदगी जीने के इन्कारी हो जाते हैं।

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भरपूर जीएं सही दृष्टिकोण अपनाकर

महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस के अनुसार ‘किसी के द्वारा धोखा दिया जाना, ठगा जाना, अपमानित होना उतना पीड़ादायक नहीं होता जितना उस घटना को मन में बराबर घोटते रहना।’

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हिस्टीरियाः कमज़ोरी का दमन

एक महिला को मेरे पास लाया गया। युनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर है। पति की मृत्यु हो गई तो वह रोई नहीं। लोगों ने कहा बड़ी सबल है। सुशिक्षित है, सुसंस्कृत है। जैसे-जैसे लोगों ने उसकी तारीफ़ की वैसे-वैसे वह अकड़ कर पत्थर हो गई। आँसुओं को उसने रोक लिया। जो बिलकुल स्वाभाविक था, आँसू बहने चाहिएं। जब प्रेम किया है और ...

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ये मन, क्यों बने कुंठाओं का मालगोदाम?

-दीप ज़ीरवी श्रीमती ‘क’ जहां कहीं भी जाती हैं अपने उन की नौकरी, बंगले, कम्पनी वग़ैरह की तारीफ़ों के पुल बांधती नहीं थकती। श्रीमती ‘ख’ हर समय अपने आप को कोसती मिलती हैं। श्रीमती ‘ग’ को अपने स्टेटॅस को दिखाने का कोई मौक़ा मिलना चाहिए वो चूकती नहीं। इसी तरह की एक नहीं अनेक उदाहरणें हमें हमारे आस-पास देखने को ...

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ज़िन्दगी जीने के लिए है बेशक़

–दीप ज़ीरवी जब बात ज़िंदगी की आती है तो ज़िन्दगी से जुड़े अनेक ‘दर्शन’ अपना दर्शन देते हैं। दार्शनिकों के ‘दर्शन’ का दर्शन करें तो पाएंगे कि ज़िन्दगी को अनेक सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया गया है। ज़िन्दगी को जिसने जिस दृष्टिकोण से देखा ज़िन्दगी का वैसा रंग उसने पाया। नेत्रहीन मित्रों के हाथी-दर्शन करने के सदृश्य ज़िंदगी रूपी विशाल ...

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ज़िंदगी में दु:ख भी आते हैं

  -सुमन कुमारी इंसान की ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। ज़रूरत है इस समय खुद पर संयम रखा जाए। वक्‍़त बुरे से बुरे घाव भी देता है परंतु ज़िंदगी से मुख मोड़ना अनुचित है। दु:ख में भी मानसिक संतुलन बनाए रखें। ऐसे अनुभव जीवन को और सुदृढ़ बनाते हैं। ज़िंदगी सुख व दु:ख का सुमेल है। दु:ख ...

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