-डॉ. शशिकांत कपूर
आज का मनुष्य कई कारणों से अशांत है। इस लेख में जीवन के कई पहलुओं को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं। जीवन में दो उक्तियां बहुत सार्थक हैं:- 1. जो है सो है, 2. यह भी बीत जाएगा। जो भी परिस्थिति है वह सुनिश्चित है और अक्सर मनुष्य उसे बदल नहीं सकता। एक ही मार्ग रह जाता है परिस्थिति से समझौता कर लो। जो है उसे स्वीकार कर लो। ऐसी सोच से मन की व्याकुलता, चंचलता और तनाव काफ़ी हद तक नष्ट हो जाते हैं।
आशावादी बनें:- इस क्षण में जो आप के साथ हो रहा है, वह भी निरन्तर बदल रहा है। दिन-रात, सुख-दुःख, आशा-निराशा एक दूसरे से विपरीत हो कर भी एक साथ लगे हुए है। वर्तमान जीवन में संतुलन लाने के लिए यही दृष्टिकोण ठीक है कि सुख के पल बीत जाते हैं तो दुःख के पल भी साहसपूर्ण तरीक़े से बिताए जा सकते हैं। समय का महरम बड़े से बड़ा दुःख व चुनौती को सहन करने की क्षमता प्रदान करता है।
अपने-अपने दृष्टिकोणः- एक भवन का निर्माण कार्य चल रहा था। एक राहगीर ने एक मज़दूर से पूछा, “क्या कर रहे हो?” मज़दूर ने झल्ला कर कहा, “दिखाई नहीं पड़ता तुम्हें, मैं पत्थर तोड़ रहा हूं।” उसी राहगीर ने दूसरे मज़दूर से वही प्रश्न किया। उसने उत्तर दिया, “बाल-बच्चे हैं, परिवार है, उनके लिए रोज़ी-रोटी कमा रहा हूं।” थोड़ी दूरी पर उसी राहगीर ने एक और मज़दूर से यही प्रश्न किया। वह मज़दूर मस्ती से गीत गाते हुए काम कर रहा था। उसने उत्तर दिया यह जो भवन तुम देख रहे हो, उसे मैं ही बना रहा हूं। बड़ा आनंद आ रहा है।
हमेशा अच्छा दृष्टिकोण अपनाइए।
संतुलन बनाए रखें:- गौतम बुद्ध ने अपने एक संगीतकार शिष्य से पूछा, यदि तुम्हारे सितार के सभी तार ढीले पड़े हों तो क्या तुम अच्छा संगीत बजा सकते हो? शिष्य का उत्तर था “नहीं” फिर उन्होंने प्रश्न किया, “यदि तार बहुत खींच कर बंधे हो तो क्या अच्छा संगीत बज सकता है।” उत्तर था, “नहीं” तार संतुलित तरीक़े से सधे और बंधे हों तभी संगीत बज सकता है। यही स्थिति जीवन की भी है। ‘अति सर्वत्र वर्जियेत’ अति का त्याग करना चाहिए। जीवन में संतुलन हो तो सुख हासिल किया जा सकता है।
जब कोई बात बिगड़ जाएः- मनुष्य की संरचना ऐसी ही है कि वह विपरीत स्थितियों में ग़ुस्सा व्यक्त करे। मनोवैज्ञानिक स्वीटन स्टॉस्नी एक पुस्तक ‘यू डोंट हैव टू टेक एनी मोर’ के लेखक हैं। उनके अनुसार ‘जब कोई व्यक्ति क्रोध में हो तो उस पर चिल्लाना या उसे समझाना ठीक नहीं है। ऐसा करने से वह अपना ग़ुस्सा आप पर निकालेगा। उस से तर्क करने में भी कोई फ़ायदा नहीं होता क्योंकि वह सही दृष्टिकोण से देख पाने में अक्षम होता है। ऐसे समय में आप सही बर्ताव और उसके सुधार के लिए अपना संतुलन बनाएं और धैर्यपूर्वक काम करें। ऐसा करने से वह खुद-ब-खुद अपने ग़ुस्से को नियन्त्रित करने के प्रयास में लग जाएगा।’
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में घर हो या दफ़्तर, बाज़ार हो या बस का सफ़र, अक्सर अप्रिय बातों और कड़वे बोलों का आदान-प्रदान हो ही जाता है। यह समस्या विशेष रूप से कामकाजी पुरुष और महिलाओं के सामने आती है। ऐसी बातों को मन में न रखें। अत्यधिक उत्तेजना और बेचैनी द्वारा अपने आप को हानि मत पहुंचाए। इन बातों को नज़र अंदाज़ करें।
महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस के अनुसार ‘किसी के द्वारा धोखा दिया जाना, ठगा जाना, अपमानित होना उतना पीड़ादायक नहीं होता जितना उस घटना को मन में बराबर घोटते रहना।’
कोई भी निर्णय लेते समय उस विषय पर भली भांति सोचें, जल्दबाज़ी और संकोच में कोई ऐसा निर्णय न लो जिस पर बाद में पछताना पड़े।
तनावरहित रहें:- तनावरहित जीवन के लिए पर्याप्त विश्राम लें। वाद-विवाद के समय निष्पक्ष ढंग से फ़ैसला लें ताकि लोग आपके विचारों को ध्यान से सुनें। अपने मनोभावों को दूसरों के सामने सही ढंग से प्रकट करने की कला को निखारिए। ऐसा करने से मन शान्त रहता है और तनाव से मुक्ति मिलती है। हमेशा अपनी अच्छाइयों को सामने रखिए। दूसरों को खुश करने के चक्कर में अपनी खुशियों का हनन न करें।
सकारात्मक रवैया अपनाएं:- डैन रॉब प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक का कहना है कि सकारात्मक आदतों में अनोखी शक्ति होती है जो आप में निरन्तर सुधार और बदलाव लाती है। लक्ष्य बनाने की आदत डालें।
1. पहला क़दम है अपने लक्ष्य को परिभाषित करें, उन्हें लिख लें। अपने लक्ष्यों को काग़ज़ पर उतार लें।
2. दूसरा क़दम है अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समय बना लें।
3. तीसरा क़दम है लक्ष्य के बीच आने वाली रुकावटों को पहचानें। उन की लिस्ट तैयार करें। हर छोटे-छोटे लक्ष्य को सीमा के अन्दर पूरा करें।
4. चौथा क़दम है ऐसे लोगों की सूची तैयार करें जो आप को लक्ष्य प्राप्ति में मददगार सिद्ध हो सकते हैं, उन की सहायता लें।
समय और परिस्थिति को पहचाने:- परिस्थिति बदलती रहती है। बदलाव क़ुदरत का नियम है। स्वयं को लचीला बनाएं, परिस्थिति को समझें। उसके अनुरूप अपने को ढालने की कोशिश करें। नई परिस्थिति हमें कुछ न कुछ सिखा कर जाती है।
सपने हैं तो जीवन है:- अज़ीम प्रेम जी जो विप्रो के चेयरमैन व देश के एक बड़े उद्योगपति हैं, उन्होंने इस विषय में अपने विचार व्यक्त किए हैं ‘सपने बहुत प्रेरक होते हैं बड़ी-बड़ी उपलब्धियां दो बार रची जाती हैं। पहली बार सपने में और दूसरी बार हक़ीक़त में।’ अपने अनुभव का इस्तेमाल कर सपनों को नया मोड़, नया रूप व आकार देना चाहिए, सपने देखना कभी बंद नहीं करना चाहिए। सपनों को हक़ीक़त में बदलने के लिए लगातार कोशिश करते रहना चाहिए, तभी हम लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम हो सकते हैं।