महिला प्रकरण

आत्मसम्मान ही सम्मान का पर्याय है

–संजीव चौहान आज की नारी के सामने पुरुष से बराबरी का अधिकार, पुरुष प्रधान समाज द्वारा दमनकारी नीतियों का कार्यान्वयन, सम्मान आदि प्रश्न मुंह उठाए खड़े हैं। क्या समाधान है इनका? क्या नारी बिना किसी वाद-विवाद के अपना उचित स्थान क़ायम कर सकती है? यदि इन प्रश्नों का उत्तर ‘हां’ है तो ……. आज के युग में नारी को स्वयं ...

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नारी पुरुष का पूरक रुप है

-रमेश सोबती इस देश में स्त्रियों के प्रति हिंसा गर्भ से ही आरम्भ होती रही है, जो जीवन भर रहती है। जन्म से पहले ही लिंग चयन और इस के परिणाम स्वरूप बालिका-शिशु भ्रूण की हत्या हिंसात्मक हद तक बढ़ जाती थी, जिस से महिलाओं की स्थिति दिन-ब-दिन दूभर होती गई। लैंगिक आधार पर हिंसा का कोई कृत्य जिस से ...

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कुदरत का अदभुत करिश्मा है औरत

-धर्मपाल साहिल दुनिया भर में औरत शब्द में आज भी उतना ही जादू क़ायम है, जितना सदियों पूर्व था। हज़ारों वर्ष बीत गये। समाज बदले, व्यवस्थाएं बदली, सभ्यताएं बदलीं। धार्मिक जनून हावी हुआ। विज्ञान ने प्रगति के शिखर छुए। राजनैतिक उथल-पुथल हुई। धरती पर आए बड़े-बड़े परिवर्तनों के बावजूद औरत शब्द एक ऐसा अद्भुत करिश्मा बना हुआ है, जो दिन ...

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नारी के हाथ में मोबाइल

-अनू जसरोटिया आज की युवा नारी यानी कॉलेज जाने वाली छात्राएं और ऑफ़िस में कार्यरत महिलाओं के हाथों में मोबाइल फ़ोन होना कहां तक उचित है। क्या ये उनकी आवश्यकता है? या फिर महज़ एक शौक़ या फिर स्टेटस सिम्बल? “नारी तेरी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में पानी” इस बात को पूरी तरह ग़लत साबित कर ...

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कार्यकारी महिलाओं के लिए सुझाव

    -दीपक कुमार गर्ग  सुबह का समय एक सामान्य घरेलू महिला के लिए काफ़ी व्यस्तता भरा होता है। चाय बनाना, नाश्ता तैयार करना, बच्चों को तैयार करना, उन्हें स्कूल भेजना, पति एवं बच्चों के लिए दोपहर के भोजन का टिफ़िन पैक करना आदि। परंतु वह महिला जो जॉब करती है उनके लिए सुबह के समय की यह भागदौड़ एक ...

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शादी के बाद क्यों महत्त्व देती हैं महिलाएं नौकरी को

-आकाश पाठक आधुनिक समाज में क़दम-दर-क़दम हो रही प्रगति से जहां महिलाओं को विचारों में, घूमने-फिरने में आज़ादी मिली है, वहीं यह तथ्य भी स्पष्‍ट होता जा रहा है कि महिलाएं शादी के बाद भी नौकरी को प्राथमिकता देती हैं या दे रही हैं। भले ही उनके पतियों की मासिक आय एवं पारिवारिक परिस्थितियां सुदृढ़ क्यों न हों। मगर आधुनिक ...

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अकेले हैं तो क्या गम है

-माधवी रंजना बदलते समाज में कई तरह की पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं। किसी ज़माने में औरत को हमेशा किसी पुरुष के साथ ही संरक्षण की ज़रूरत होती थी। अब वह ज़माना नहीं रहा। इक्कीसवीं सदी में नारी की छवि मज़बूत होकर उभरी है। रोज़गार के कई नए क्षेत्रों में प्रवेश ने उसके आत्मसम्मान को बढ़ाया है। ऐसे में समाज ...

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जगाया है नारी को विदेशी संस्कृति ने

– मुनीष भाटिया भारतीय संस्कृति की विशालता की दुहाई देकर, आज बुद्धिजीवी वर्ग चिंतित है। उनकी दृष्‍ट‍ि में भारतीय संस्कृति मज़बूत व विशाल तो है पर फिर भी विदेशी प्रचार माध्यमों के हमले का डर उन्हें हिलाए हुए है। कैसी विडम्बना है, एक तरफ़ तो यह वर्ग भारतीय संस्कृति को विशाल व महान की संज्ञा देता है व दूसरी तरफ़ इसके ...

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