चित्रेश

होली

श्री कृष्ण राधा जी से हार मान लेते हैं, इसके बाद उनका मधुर मिलन होता है। इसी आख्यान की कड़ी है लट्ठमार होली!

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मूल्यांकन

उसके अन्दर लड़की के प्रति बेपनाह दया उमड़ने लगी- बेचारी किसी ठीक-ठाक घर परिवार में जन्मती तो स्कूल जाती। हंसती-खेलती...

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आलोचना

दोनों का इंतज़ाम एकदम भिन्न था, जिस भाई के यहां हमारी बारात गई थी, उसकी सारी व्यवस्था एकदम सादी थी जैसा कि देहात का सामान्य आदमी रखता है। इसके विपरीत दूसरे भाई के इंतज़ाम का क्या कहना!

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दीपावली सप्‍त दीपों का प्रकाश पुंज है।

                             –चित्रेश दीपावली अपने आदि रूप में सात अनुषंगिक पर्वों का प्रकाश-पुंज था। समय के साथ जीवन में आई व्यस्तता ने हमें अपने पर्वों और उत्सवों को लघु आकार देने के लिए विवश किया, जिसके फलस्वरूप विभिन्न पर्वों से जुड़े कई कर्मकांड और अनुष्ठान लोक-जीवन में अपनी ...

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होली के रंग और रंगों की दुनियां

-चित्रेश सैंकड़ों साल पहले आदमी का जीवन पूरी तरह प्रकृति से जुड़़ा था। कृत्रिमता का हल्का-सा स्पर्श भी नहीं था उसके कार्य-व्यापार में यही वह वक्‍़त था, जब उसने ऋतु परिवर्तनों का धूमधाम से स्वागत करने की परम्परा क़ायम की और इसी की एक पुरातन कड़़ी है-होली ! यह ऋतु संधि का-सर्दी के जाने और गर्मी के आने का पर्व ...

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