सुमन

बच्चों के कपड़े कैसे हों?

ख़रीदारी करते समय अक्सर लोग इस बात को अनदेखा कर देते हैं कि क्या ये पोशाकें सुरक्षित हैं भी या नहीं? छोटे बच्चों के लिए तो इस बात पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी होता है। छोटे बच्चे अक्सर मुंह में कपड़ा डालते हैं।

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   मज़दूरी करने को मजबूर मासूम

सिर्फ़ क़ाग़जों तक ही सीमित है बाल मज़दूरी ख़त्म करने का प्रयास। बाल म़जदूरी ख़त्म करने का सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। सरकारी विज्ञापनों द्वारा बाल म़जदूरी को रोकने व बच्चों को उच्च शिक्षा देने की बात बार-बार दोहराई जाती है।

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समय पर काम करें

काम टालना आपको आलस्य की ओर ले जाता है। कपड़े धोने के बाद ही इस्तरी कर लें। यदि मूड पर डिपेेेेन्ड करेंगे तो ये काम कई दिनों तक लटकता रह सकता है।

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ऑफ़िस में आपका व्यवहार

ऑफ़िस में काम करते समय बैठने का ढंग अच्छा होना चाहिए। वस्तुओं को खींचना जिससे शोर उत्पन्न हो, शांत वातावरण में अनुचित लगता है। दूसरों की बात सुनने के बाद अपना पक्ष कहना चाहिए। बातचीत करते समय हाथ पैर हिलाना उचित नहीं

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योग्य बेटी के पांव की बेड़ियां न बनें

वो समाज में जितनी भी पहचान स्थापित कर ले फिर भी वो औरत है, बेटी है इसका उसको कर्ज़ चुकाना पड़ता है और न जाने कितनी प्रतिभाएं इस मानसिक प्रताड़ना के चलते, अपने सफ़र को अधूरा छोड़ देती हैं।

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फ़ैशन का असर

-सुमन अपने पसंदीदा हीरो, हीरोइनों व कलाकारों की भांति दिखने की प्रवृत्ति ने बच्चों में फ़जूल ख़र्च को बढ़ावा दिया है। अधिकांश लोगों व युवाओं के पास मनोरंजन का साधन टेलीविज़न है। लेकिन इन दिनों प्रसारित कार्यक्रमों में प्रचलित फ़ैशन के चलते लोगों की जेब ढीली हो रही है। बात सिर्फ़ पहरावे की ही नहीं हो रही, घरेलू साज-सज्जा से ...

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ज़िंदगी में दु:ख भी आते हैं

  -सुमन कुमारी इंसान की ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। ज़रूरत है इस समय खुद पर संयम रखा जाए। वक्‍़त बुरे से बुरे घाव भी देता है परंतु ज़िंदगी से मुख मोड़ना अनुचित है। दु:ख में भी मानसिक संतुलन बनाए रखें। ऐसे अनुभव जीवन को और सुदृढ़ बनाते हैं। ज़िंदगी सुख व दु:ख का सुमेल है। दु:ख ...

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पारिवारिक रिश्तों में मधुरता लाए

  -सुमन भारत में रीति-रिवाज़ों और संस्कारों को महत्ता दी जाती है। इन रीति-रिवाज़ों और संस्कारों से परिवार जुड़े हैं। परिवार टूटने से संयुक्त परिवारों में जितना प्यार अपनापन होता है एकल परिवारों में देखने को नहीं मिलता। मगर आधुनिकता की नई दौड़ में जहां परिवार टूट रहे हैं वहीं उनमें प्यार व स्नेह की कमी भी नज़र आने लगी ...

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