-सुमन

अपने पसंदीदा हीरो, हीरोइनों व कलाकारों की भांति दिखने की प्रवृत्ति ने बच्चों में फ़जूल ख़र्च को बढ़ावा दिया है। अधिकांश लोगों व युवाओं के पास मनोरंजन का साधन टेलीविज़न है। लेकिन इन दिनों प्रसारित कार्यक्रमों में प्रचलित फ़ैशन के चलते लोगों की जेब ढीली हो रही है।

बात सिर्फ़ पहरावे की ही नहीं हो रही, घरेलू साज-सज्जा से लेकर मोबाइल सेट तक अब शान बढ़ाने के लिए ख़रीदे जा रहे हैं। आलम यह है कि युवा वर्ग पढ़ाई की ओर कम मोबाइल पर एस.एम.एस. भेजने और मोबाइल सेट अपने सहयोगियों में पैठ दिखाने में अपनी शान समझता है। घर से निकलें तो हर गली की नुक्कड़, वाहन पर सवार लोग कान पर मोबाइल चिपकाए नज़र आएंगे। मोबाइल कैमरे से फ़ोटो खींचना तो आम बात हो गई है। कुछ प्राइवेट इन्स्टीट्यूट में बैठे विद्यार्थी या तो आपको फ़ोन पर घंटों बातें करते नज़र आएंगे या किसी को एस.एम.एस. भेजते।

ऐसे ही कुछ विद्यार्थियों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ये हमारी शान है दोस्तों में ‘रौब’ बनता है। बचपन छूटा नहीं कि अभिभावकों के आगे रखी जाती है एक लंबी डिमांड, ‘पापा मुझे बाइक चाहिए, मोबाइल भी, ड्रेस वैसी जैसी मैंने आपको सीरियल में दिखाई थी’ यही संवाद आम घरों में सुनने को मिलते हैं।

लड़कियों की तो पूछिए ही मत, ये सूट, ये साड़ी, ये ज्वैलरी उनकी डिमांड तो जैसे प्रतिदिन सीरियल की कड़ी के साथ बदलती है।

किसी को ‘कसम से’ में ‘बानी’ की भांति दिखना भा रहा है तो किसी को ‘सात फेरे’ की ‘सलोनी’ की भांति। बाज़ार में आए दिन फ़ैशन बदल रहा है जिस प्रकार लोगों की डिमांड बदल रही है। सभी की रुचि को देखते हुए प्रतिदिन फ़ैशन में बदलाव आ रहा है।

जेब पर भारी पड़ रहा फ़ैशनः- एक-दूसरे से अच्छा व आकर्षक दिखने की होड़ में हज़ारों रुपए ख़र्च किए जा रहे हैं। फ़ैशन के साथ चलना मानों लोगों की मजबूरी हो गई है और यही मजबूरी उनकी जेब पर भारी पड़ रही है। डिमांड को देखते हुए चीज़ों के रेट भी बढ़ा दिए गए हैं। महंगी चीज़ों की ख़रीदारी कुछ पल की खुशी ज़रूर देती है पर उसके लिए बजट में भारी कटौती का सामना करना पड़ रहा है। ज़रूरत है अपनी ज़रूरतों को सीमित रखने की और फ़ैशन के साथ चलते हुए फ़जूल ख़र्ची से बचने की ताकि फ़जूल ख़र्ची का असर आपकी जेब पर न पड़े।

जी नहीं हमारा कहना यह बिल्कुल नहीं कि आप फ़ैशन का ध्यान न रखें या बदलते ज़माने के साथ न चलें। लेकिन यदि थोड़ी-सी भी समझदारी बरती जाए तो अपने बजट के मुताबिक़ फ़ैशन अनुसार चला जा सकता है। आपको सोचना है तो बस इतना कि कम ख़र्च में क्या बढ़िया से बढ़िया हो सकता है। हर बात में दूसरों का मुक़ाबला करने की भी ज़रूरत नहीं। यह न हो कि फ़ैशनेबल दिखने की कोशिश में आप बेवकूफ़ नज़र आने लगें। फ़ैशन करें अपनी जेब देखकर।

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