-राजिन्द्र कौर ‘कालड़ा’

आज इन्सान के लिए शिक्षा की अहमियत बहुत बढ़ गई है। शिक्षा के बिना तो इन्सान का अस्तित्त्व ही कोई मायने नहीं रखता। इसके बिना उसे सम्पूर्ण नहीं माना जाता। अधिक न मानें तो वास्तविकता यही है कि शिक्षा मनुष्य के तीसरे नेत्र समान है। शिक्षा एक कभी न ख़त्म होने वाली क्रिया है पर यहां हम जिस बात की चर्चा करना चाहते हैं वह यह है कि बच्चों को शिक्षा देने का ढंग क्या हो? सामान्य तौर पर एक ढंग बच्चों को किताबों द्वारा पढ़ाने का है जिसे सभी जानते हैं लेकिन एक अन्य ढंग जिस की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है वह है बच्चों को खेलों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का ढंग। खेल-खेल में बच्चे अधिक सीख पाते हैं इसीलिए इस ढंग को अपनाया जा रहा है। इस के महत्त्व को जानना सभी के लिए ज़रूरी है।

ग्रीक वैज्ञानिकों के अनुसार खेलें शिक्षा के लिए एक आवश्यक साधन का कार्य करती हैं। खेलें बच्चों को ऐसे कार्य करने की सीख देती हैं जो उस के सुरक्षित और आर्थिक बचाव के लिए आवश्यक है। खेलों के द्वारा सीखते समय बच्चा खुशी एवं आज़ादी का अनुभव करता है। बिना किसी तनाव के बच्चों को शिक्षा प्राप्त हो जाती है और उनको इसका अभाव भी नहीं हो पाता। यही नहीं खेलों के द्वारा ज़िन्दगी के दुश्वार रास्तों को हिम्मत के साथ पार करने की सीख भी मिलती है जो केवल किताबों की शिक्षा से नहीं मिल पाती।

बैंगलोर में एक ऐसी संस्था है जहां खेलों द्वारा ही पढ़ाया जाता है। इसके संचालक गाथा नारायण के अनुसार वे बच्चों के दिमाग़ के दोनों हिस्सों का संतुलन बनाए रखने में सहायता देते हैं। दिमाग़ का एक भाग तर्क के आधार पर सब कुछ समझाता है और दूसरा भाग कार्य करने में सहायता करता है। इस प्रकार बच्चे प्रत्येक चीज़ को पूरी तरह से समझ जाते हैं। खेलों द्वारा हिसाब सिखाया जाता है। इससे उनके दिमाग़ की कसरत होती है और खेलों से जो भी सीखते हैं वह अपनी ज़िन्दगी में उतार लेते हैं। खेलों द्वारा ग्रहण की हुई शिक्षा भूलते नहीं। नई प्रणाली के मुताबिक़ बच्चों में लचक पैदा करने पर ज़ोर दिया जाता है। बच्चों के मुताबिक़ सिलेबस देर से भी ख़त्म किया जा सकता है। शिक्षा को खेल जैसी चीज़ बनाने पर ज़ोर दिया जाता है। इस तरफ़ रुझान बढ़ता ही जा रहा है। ऐसा ही एक स्कूल नई दिल्ली में है जिस का नाम ‘लिटल पर्ल्ज़’ है। यहां पर बच्चे पक्षियों के साथ खेलते हैं और मछलियां देखते हैं। इनको प्रकृति में उपस्थित जीवों के बारे में जानकारी दी जाती है। इस स्कूल में डर रहित और बिन मुक़ाबले का माहौल पैदा किया जाता है। अलग-अलग तरह की खेलें खेलते हुए बच्चों के दिमाग़ में कई तरह के प्रश्न कौंधने लगते हैं और इन प्रश्नों के उत्तर मां-बाप या अध्यापकों से मिलने पर उनकी शिक्षा में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार की शिक्षा दूसरी शिक्षा की तरह मन पर बोझ नहीं डालती बल्कि बच्चे पढ़ाई को पढ़ाई न मान कर खेल ही मानते हैं और इस प्रकार खेल-खेल में ही वे कुछ न कुछ सीख जाते हैं। जबकि दूसरी तरफ़ किताबों द्वारा पढ़ाने पर अलग-अलग विषयों को याद करने को और परीक्षा देने को बोझ मानते हैं और इसी कारण उनकी पढ़ाई में दिलचस्पी कम होती है। इसी प्रकार तनाव रहित होने के कारण बच्चों में सीखने की क्षमता अधिक होती है और खेलों के द्वारा वे जल्दी सीख पाते हैं।

कक्षा में उनके ऊपर समय की पाबंदी भी होती है। उनका मन चाहे या न चाहे इतना समय तो उन्होंने पढ़ना ही होता है। यही वजह है कि इस प्रकार वे कम सीख पाते हैं जबकि खेलों द्वारा जल्दी सीख पाते हैं और आनंदित भी महसूस करते हैं। इस प्रकार यह जानना और मानना अत्यावश्यक है कि बच्चों को खेलने के लिए अच्छे साथी, अच्छा वातावरण मिलना चाहिए ताकि बच्चे खेलों द्वारा अच्छी आदतें सीख पाएं।

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