-माधवी रंजना

रोनित के पिता अपने बच्चे को सबकुछ देना चाहते हैं। उसके लिए अच्छा स्कूल, प्राइवेट ट्यूशन, तैयारी व क्रिकेट के लिए कोचिंग जैसी व्यवस्था की। यही नहीं उसने जब जिस खिलौने की ज़िद्द की उसे लाकर दिया गया। इन सब के बावजूद उनका बच्चा ज़िद्दी होता जा रहा है। उसकी हर ज़िद्द को पूरी करना अब घर वालों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। आख़िर अब वे कैसे निबटें। दरअसल बच्चों की हर इच्छा पूरी करते जाना कालांतर में आपके बच्चे को ज़िद्दी बना सकता है। जब बच्चा बहुत छोटा हो तभी से उसे समझाने की आदत डालें।

उसकी हर ज़िद्द को पूरा करना बाद में आपके लिए घातक हो सकता है। ज़िद्दी बच्चे समझदार नहीं हो पाते। साथ ही ऐसे बच्चे समाज में अन्य लोगों के साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं कर पाते। उनका स्वभाव दोस्तों की सर्किल में भी ज़िद्दी हो जाता है। जिस तरह वे अपने घर में ज़िद्द पूरी करना चाहते हैं उसी तरह स्कूल में व अपने दोस्तों के बीच भी चाहते हैं। ऐसे बच्चों की रिपोर्ट कार्ड में उनके स्कूल की ओर से शिकायत भी आती रहती है।

आख़िर इन ज़िद्दी बच्चों को कैसे सुधारा जा सकता है। जब बच्चे ज़्यादा ज़िद्दी हो जाते हैं तो उनकी पिटाई करना भी ठीक नहीं होता। इससे उनके मन में माता-पिता के प्रति विद्रोह की भावना पैदा होती है। कई बार ऐसे बच्चे घर से भागने जैसे ग़लत क़दम भी उठा सकते हैं। ज़रूरत तो इस बात की है कि जब आपका बच्चा दो से तीन साल का हो तभी से उसे ज़िद्दी बनने से बचाएं। इसी उम्र में उसे समझाने की आदत डालें। जब-जब बच्चा कोई ज़िद्द करे तो बजाए उसकी हर ज़िद्द पूरी कर देने के आप इसे प्यार से समझाने की कोशिश करें। नहीं तो बाद में आपके बच्चे ऐसी-ऐसी ज़िद्द करना शुरू कर देंगे जिन्हें पूरा कर पाना आपके लिए मुश्किल बात हो सकती है। एक पुरानी कहावत है कि एक बार एक बच्चे ने गुल्लक ख़रीदने की ज़िद्द की। पिता ने गुल्लक ला दिया। तब उसने हाथी मांगा। पिता ने हाथी ला दिया तब उसने कहा कि हाथी को इस गुल्लक में डाल दो। अब यह पिता के लिए मुश्किल काम था। ठीक इसी तरह जब बच्चे ज़िद्दी हो जाते हैं तो माता-पिता के लिए मुश्किलें पैदा कर देते हैं वहीं घर आने वाले मेहमानों के सामने भी मज़ाक का पात्र बना देते हैं।

अगर अपका बच्चा ज़िद्दी हो गया हो तो उसे किसी बाल मनोवैज्ञानिक के पास ले जा सकते हैं। साथ ही उसे घर में भी लगातार समझाने की कोशिश करें। ज़िद्दी बच्चों को एक भावनात्मक वातावरण देने की ज़रूरत होती है। आप बच्चे के दोस्त बन जाएं। उसे समझने की कोशिश करें। उसके दोस्तों में रुचि दिखाएं। उसके विचारों का सम्मान करें साथ ही अपने विचारों से भी अवगत कराएं। उनकी आंखों से भी दुनियां देखने की कोशिश करें। सभी बच्चे चाहते हैं कि मां-बाप उन्हें महत्त्व दें। अगर आपने कोई ग़लती कर दी है तो उसके लिए खेद व्यक्त करें। जहां भावनात्मक वातावरण अच्छा मिले वहां आम तौर पर बच्चे ज़िद्दी नहीं बनते।  

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