हंसी-मज़ाक के बिना ज़िंदगी का कोई मोल नहीं। ये हंसी ही ज़िंदगी के सभी पलों को सच्चा जीवन प्रदान करती है और बड़े से बड़े मुश्किल लम्हों को सहन करने की शक्ति देती है। जहां हंसना बेहद आसान है वहीं किसी को हंसाना उतना ही कठिन। पर भारतीय सिनेमा में हास्य अभिनेताओं की कोई कमी नहीं है जो इस तरह की कठिन चुनौती को भी अपना लेते हैं और लोगों को हंसा-हंसा कर उनके दिलों पर छा जाते हैं क्योंकि हास्य तो भारतीय सिनेमा का एक अभिन्न अंग है। इस तरह बॉलीवुड में ऐसे कॉमेडियन्ज़ की भरमार है जिन्होंने न केवल इस इंडस्ट्री को अपना समय ही दिया बल्कि लोगों के दिलों में भी अपना एक अलग ही स्थान बना लिया। ये न केवल एक कॉमेडियन बल्कि बतौर स्पोर्टिव एक्टर भी जाने जाते हैं।
महान बॉलीवुड कॉमेडियन्ज़ में से एक नाम जो विशेषतया उल्लेखनीय है वो है जॉनी वॉकर। बलराज साहनी की सिफ़ारिश पर गुरू दत्त ने जॉनी वॉकर का परिचय फ़िल्म इंडस्ट्री से करवाया और बाद में गुरू दत्त की ज़्यादातर फ़िल्मों में जॉनी वॉकर ही दिखाई दिए। गुरू दत्त के साथ कुछ यादगार और बढ़िया फ़िल्में हैं:- आर-पार, मि.एंड मिसिज़ 55 और काग़ज़ के फूल जिनमें जॉनी वॉकर का काम अत्यन्त आनंददायक था। जॉनी वॉकर ने अपनी कॉमेडी से यह साबित किया है कि वलगर व गंवार हुए बिना भी लोगों को अपनी बातों के साथ ही हंसी से लोट-पोट किया जा सकता है। जॉनी वॉकर के कई गाने बॉक्स ऑफ़िस पर बहुत हिट हुए। उनका एक गाना ‘सर जो तेरा चकराए’ आज भी लोगों की ज़ुबां पर है। जॉनी वॉकर में एक अलग ही प्रतिभा थी और इसी प्रतिभा और कड़ी मेहनत ने ही उन्हें एक बस कंडक्टर से इतना बड़ा कॉमेडियन बनाया। जॉनी वॉकर अपने काम के कारण अपने पारिवारिक कर्त्तव्यों से कभी विमुख नहीं हुए। उनके लिए उनका घर ईंटों से बना मकान नहीं था बल्कि रिश्तों से बना एक आशियाना था। जॉनी वाकर अपने काम को लेकर किसी तरह के तनाव को कभी भी घर नहीं लाते थे। यहां तक कि उन्होंने किसी भी तरह का कोई फ़िल्मी पोस्टर, तस्वीर और तो और कोई फ़िल्मी अवॉर्ड भी घर में नहीं रखा था। ये सब एक आरामदायक घर की कामना के लिए था। इसके साथ-साथ एक और बात जॉनी-वॉकर के बारे में जानना ज़रूरी है कि जॉनी वाकर हमेशा अपना खाना समय पर खाते हैं। जो व्यक्ति उन्हें अच्छी तरह से जानता है वह उनकी इस आदत को भी अच्छी तरह से जानता है। जॉनी वॉकर को भारतीय संस्कृति से बेहद प्यार है और इनकी हमेशा से ही यही कोशिश रही है कि उनके परिवार का कोई सदस्य भी अपने नैतिक मूल्यों को कभी न भूले, चाहे वो भारत में रहे या अमेरिका में। यही कारण था कि उन्होंने अपने ग्रैण्ड चिल्ड्रन को भी भारतीय संस्कृति के बारे में पूरी-पूरी सीख दी। उन्होंने हास्य जगत् में अपना एक नया ही इतिहास रचा जिसके कारण उनकी गणना बहुत ही यादगार कॉमेडियन्ज़ में की जाती है।
महमूद जोकि 1960 की कॉमेडी के राजा कहलाते हैं इस क्षेत्र में उन्होंने अपने आपको पूरी तरह साबित किया। उनका एक अलग ही अंदाज़ था जोकि उन्हें औरों से अलग दिखाता है। महमूद ने फ़िल्म इंडस्ट्री में अपने कैरियर की शुरूआत बाल कलाकार के रूप में की। उनकी विलक्षण प्रतिभा, कॉमेडी में विभिन्नता का होना और प्रस्तुतीकरण में एक अनूठी योग्यता ने उन्हें लोगों में बहुत ही लोकप्रिय कर दिया। महमूद ने बहुत सी फ़िल्में कीं जिनमें उन्होंने अपनी कॉमेडी से भरपूर अभिनय से लोगों का खूब मनोरंजन किया। परन्तु उनकी फ़िल्म पड़ोसन जिसे शायद ही कोई भुला सकता है, एक सदाबहार आकर्षण लिए हुए है। ये एक ऐसी फ़िल्म है जिसे सुनहरी याद के तौर पर हमेशा अपनी यादों में रखा जाएगा। काफ़ी ख्याति हासिल करने के बाद महमूद ने अपना प्रोडक्शन हाउस चलाया इसमें भी उन्हें सफलता मिली। उनके जीवन की एक यादगार घटना है अपने फ़िल्मी सफर के दौरान उन्हें एक ऐसा नवयुवक मिला जोकि बहुत संघर्ष कर के फ़िल्म इंडस्ट्री में ही अपना कैरियर बनाना चाहता था पर उसके पास तो बॉम्बे में अपना सिर छुपाने की भी जगह नहीं थी तो महमूद ने उसे अपने घर में रखा। उस समय महमूद एक कॉमेडी फ़िल्म बॉम्बे टू गोआ बना रहे थे जिसमें कि वे एक बस कंडक्टर का अभिनय कर रहे थे। उन्होंने उस फ़िल्म में नायक का रोल उस नवयुवक को दिया जिसने कड़ी मेहनत के साथ उस रोल को खूब निभाया। उस नवयुवक का नाम था- अमिताभ बच्चन और बॉम्बे टू गोआ अमिताभ बच्चन की पहली फ़िल्म थी। महमूद ने जहां अपनी अदाकारी से लोगों को खुश किया, वहीं इस इंडस्ट्री में अपना एक अलग ही स्थान बना गए।
कादर खान में एक अपूर्व योग्यता है जोकि शायद ही किसी और में हो क्योंकि वे एक अच्छे अभिनेता, एक मोहक कॉमेडियन, एक सुलझे हुए स्क्रिप्ट और डायलॉग लेखक, एक निर्माता और निर्देशक भी हैं। इतनी सारी खूबियां किसी एक इंसान में होना कोई आम बात नहीं है। उन्होंने क़रीबन 1000 फ़िल्मों के लिए डायलॉग लिखे हैं। उनकी परवरिश एक बहुत ही बिगड़े से माहौल में हुई पर फिर वे इन सब चीज़ों से ऊपर उठे और फ़िल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करने का निर्णय किया जोकि एक सही निर्णय था। कादर खान के लेखन कैरियर की शुरूआत जवानी दीवानी फ़िल्म से हुई पर उन्होंने अधिकतर अमिताभ बच्चन की फ़िल्मों के डायलॉग्ज़ लिखे जैसे लावारिस, मुक़द्दर का सिकन्दर, अमर अकबर एन्थनी और शराबी आदि। उनका एक्टिंग कैरियर ‘खून पसीना’ फ़िल्म से शुरू हुआ। फिर कॉमेडी पर भी अपने पैर जमाने की कोशिश की जिसमें वे सफल भी रहे। कादर खान की कॉमेडी भी चर्चा में आ गई। शायरी और उर्दू की पंक्तियों से युक्त उनकी कॉमेडी एक विशेष ही महत्त्व लिए है। अपने फ़िल्मी सफ़र के दौरान प्रसिद्ध अभिनेत्री अरूणा ईरानी के साथ उन्होंने बहुत सारी फ़िल्मों में काम किया। डायरेक्टर डेविड धवन की कॉमेडी फ़िल्मों में गोविन्दा के साथ कादर खान द्वारा किए गए काम को बहुत ही सराहा गया है। उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री के जाने-माने कॉमेडियन जैसे शक्ति कपूर व असरानी के साथ भी कई कॉमेडी फ़िल्मों में एक साथ काम किया। स्टार प्लॅस पर प्रसारित अपने एक टी.वी. सीरियल ‘हंसना मत’ के ज़रिये भी लोगों के दिलों में अपना एक अलग स्थान बनाया है। कादर खान ने फ़िल्म इंडस्ट्री में अभिनय के दौरान बहुत सारे किरदार अदा किए हैं जैसे एक पिता का, अंकल का, भाई का, रिश्तेदार का, खलनायक और कॉमेडियन आदि । इन सभी किरदारों को इन्होंने बखूबी निभाया। कहीं भी इनकी मौजूदगी किसी प्रकार से अखरती नहीं है। अमेरिकन फेडरेशन ऑफ मुस्लिम्ज़ फ्रॉम इंडिया से कादर खान को उनकी प्राप्तियों और भारत में मुस्लिम सम्प्रदाय के प्रति दी गई सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। 1990 ई. में फ़िल्म बाप एक नंबरी बेटा दस नंबरी के लिए कादर खान को बैस्ट कॉमेडियन का अवॉर्ड दिया गया।
परेश रावल बॉलीवुड के एक ऐसे कलाकार हैं जो कॉमेडी के क्षेत्र में कभी किसी से पीछे नहीं रहे। इनकी कॉमेडी तो दर्शकों का मन मोह लेती है। वो अपनी बातों व अदाकारी से किसी भी रोते हुए या दु:खी व्यक्ति को हंसने पर मजबूर कर देते हैं। जहां ये बतौर कॉमेडियन नज़र आते हैं वहीं ये अच्छे को-स्टार और ख़तरनाक खलनायक भी हैं। इस प्रकार यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि परेश रावल एक संपूर्ण कलाकार हैं। हेरा-फेरी से लेकर बागबान तक इनके हर किरदार में इनका एक अलग ही अंदाज़ है। फ़िल्म तमन्ना में आपने एक हिजड़े का बहुत ही चुनौतीपूर्ण किरदार बखूबी अदा किया और इसी किरदार ने इनके कैरियर को एक नया मुक़ाम दिलवाया। वे हिन्दी के इलावा पंजाबी और तेलगू भाषाएं भी अच्छी तरह जानते हैं। इन्होंने कई तेलगू फ़िल्में भी कीं। इन्होंने मुन्ना भाई एम. बी. बी. एस. फ़िल्म का तेलगू अनुवाद किया जिसका नाम शंकर दादा एम. बी. बी. एस है। इनकी फ़िल्में हेरा-फेरी और दूसरी फ़िल्म फिर हेरा-फेरी में तो इनकी एक्टिंग एकदम धमाल ही थी। दोनों ही फ़िल्में बहुत ही सफल रहीं। इसके साथ ही उन्होंने आवारा पागल दीवाना, गर्म मसाला, मालामाल वीकली, गोलमाल, चुप-चुप के और भागम-भाग आदि कॅामेडी फ़िल्में भी बहुत ही अच्छी तरह निभाई और दर्शकों के दिलों में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। ये सिनेमा की एक बहुत ही जानी-मानी हस्ती हैं जहां उनके द्वारा किए गए रंग-मंचीय नाटक बहुत ही मशहूर हैं। परेश रावल को बेहतरीन कलाकार साबित करने वाली बात यह है कि उन्हें बैस्ट कॉमेडियन अवॉर्ड और बैस्ट विलेन् अवॉर्ड दोनों ही मिले हैं। परेश रावल को अपनी फ़िल्में सरदार और तमन्ना के लिए भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नैशनल अवॉर्ड दिया गया। इस तरह परेश रावल ने फ़िल्म इंडस्ट्री में अपने आपको पूरी तरह साबित किया ।
कॉमेडियन्ज़ की चर्चा हो और जॉनी लीवर का नाम न लिया जाए ये तो हो ही नहीं सकता। कॉमेडियन्ज़ की दुनिया का वो एक बहुत ही जाना-पहचाना चेहरा हैं। यह वो हस्ती है जिसे यह मुक़ाम हासिल करने के लिए बाक़ी कलाकारों की तरह ज़्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा। इनका उपनाम लल्लू है। उनमें एक अजीब सी योग्यता है कि वो किसी भी भाषा को जाने बिना उसे अच्छी तरह सीख ही नहीं लेते बल्कि उसके अर्थ को भी भली-भांति समझ लेते हैं। जॉनी अपने वास्तविक जीवन में भी एक कॉमेडियन ही हैं। बचपन में स्कूल के बच्चे और अध्यापक जहां उनकी हंसी से भरपूर बातों को पसन्द करते थे, वहीं उनके मुहल्ले वाले भी उनकी हंसी-ठिठोली में झूमते हुए नज़र आते। बाद में हिन्दुस्तान लीवर में अपनी नौकरी के दौरान भी वह अपने सहकर्मियों को अपनी बातों और अदाओं से खूब हंसाते। पत्नी सुजाता और दोनों बच्चे भी जॉनी की अदाकारी को बहुत पसन्द करते हैं। यहां तक कि छोटे लड़के में तो एक अच्छा कॉमेडियन बनने के सारे लक्षण नज़र आते हैं। इस तरह जॉनी अपने निजी जीवन में भी एक खुशमिज़ाज इंसान हैं। इनका फ़िल्म इंडस्ट्री में आगमन फ़िल्म दर्द का रिश्ता से हुआ जिसके लिए वे हमेशा स्व.सुनील दत्त के शुक्रगुज़ार हैं। जब स्व.सुनील दत्त ने इन्हें एक चैरिटि शो में अभिनय करते देखा तो उन्होंने ही जॉनी को फ़िल्मों में आने का प्रस्ताव दिया। जॉनी सभी स्टारज़ की नक़ल अपने एक अलग ही अंदाज़ में करते थे। इसी कला ने इन्हें शेष कॉमेडियन्ज़ में एक अद्वितीव स्थान दिया है। बाक़ी कलाकारों की नक़ल करते वक्त वे हू-बहू उनके क्लोन की तरह अभिनय करते हैं- पर फिर भी कभी भी इन्होंने अपनी व्यक्तिगत पहचान, अपना अंदाज़ नहीं खोया, उसे हमेशा बरक़रार रखा। छोटे परदे पर भी ज़ी टी.वी पर टेलिकास्ट होने वाले उनके ही शो जॉनी आला रे से भी इन्होंने खूब नाम कमाया। वे अपने डायलॉग्ज़ खुद लिखते हैं जिसे किसी भी एक्टर ने बोला नहीं होता पर जब ये स्टेज पर इन्हीं डायलॉग्ज़ के साथ अभिनय करते हैं, तो देखने वाला यह कह ही नहीं सकता कि ये उस एक्टर द्वारा नहीं बोले गए। इसे कहते हैं- एकदम शुद्ध प्रतिभा। लव के लिए कुछ भी करेगा और बाज़ीगर में किए गए जॉनी के अभिनय की बहुत प्रशंसा हुई। ये हमेशा कुछ अच्छा और अलग करने की कोशिश करते हैं। जब लगातार चार फ़िल्मों में इन्हें शराबी का ही किरदार मिला तो हर किरदार करते वक्त इनकी यही कोशिश थी कि वो बाक़ी तीनों किरदारों से अलग हो। इनके अभिनय में विभिन्नता है, जो इन्हें बाक़ी कॉमेडियन्ज़ से अलग दिखाती है। उन्हें परेश रावल, अनुपम खेर, शाहरुख खान और गोविन्दा आदि कॉमिक कलाकारों के साथ काम करना बहुत अच्छा लगता है। ऐसे कलाकारों के साथ काम करके एक मौक़ा मिलता है कि ये कुछ और अच्छा, और नया दिखा सकें। इनके चाहने वालों की हमेशा यही ख़्वाहिश रहती है कि जॉनी हमेशा इसी तरह से उन्हें हंसाते रहें। जैसा स्थान जॉनी लीवर ने अपने चाहने वालों के दिलों में बनाया है वो निस्संदेह प्रशंसा के योग्य है।
1980 के कॉमिक स्टार में से एक नाम गोवर्धन असरानी का भी है जोकि अभी भी अपनी कुशल व चुस्त-दुरुस्त कॉमेडी से सब का दिल बहलाते हैं। इनकी शादी मंजू बंसल से हुई जोकि खुद एक फ़िल्म अभिनेत्री हैं। उनकी कुछ नई प्रसिद्ध फ़िल्में मालामाल वीकली, भूल भुलैया, गरम मसाला और धमाल आदि हैं। वे न केवल एक अच्छे कॉमेडियन हैं बल्कि बतौर सहायक कलाकार उन्होंने अभिमान, चुपके-चुपके, खुशबू और मुसाफ़िर आदि फ़िल्मों में काम किया है। उनके द्वारा शोले में किया गया जेलर का एक छोटा सा किरदार आज भी तमाम लोगों के दिलों में अपनी एक जगह बनाए है। उन्हें उनकी दो फ़िल्मों आज की ताज़ा ख़बर और बालिका वधू में बैस्ट कॉमेडियन के तौर पर फ़िल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। कॉमेडियन के साथ-साथ असरानी एक अच्छे गायक भी हैं। फ़िल्म अलाप में इन्होंने दो गाने गाए जो कि उन पर ही चित्राये गए थे। फिर इन्होंने प्रसिद्ध गायक व नायक किशोर कुमार के साथ फूल खिले गुलशन-गुलशन फ़िल्म में एक युगल गान भी गाया। फ़िल्मों के साथ-साथ असरानी ने राजनीति में भी प्रवेश किया है। वे कांग्रेस के साथ रहते हुए लोकसभा के चुनावों में अपने सहयोगियों को जीत दिलाने के लिए एक प्रवक्ता की भूमिका निभाते रहे।
इसके अतिरिक्त कई ऐसे नायक भी हैं जिन्होनें एक नायक के साथ-साथ एक कॉमेडियन की भूमिका को भी बखूबी अदा किया। सबसे पहले तो सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने कई फ़िल्मों में बेहद खूबसूरत कॉमेडी की है जिनमें से सत्ते पे सत्ता, शोले, याराना और छोटे मियां बड़े मियां विशेषत: उल्लेखनीय हैं। अमिताभ की फ़िल्मों में उनके द्वारा किए गए कॉमेडी किरदार आज भी ठहाके लगाने पर मजबूर कर देते हैं। इसके इलावा गोविन्दा, संजय दत्त, अक्षय कुमार और सलमान खान आदि कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने जहां एक नायक के किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है, वहीं ये अच्छे कॉमेडियन भी साबित हुए हैं। जहां गोविन्दा की संजय दत्त के साथ जोड़ी को बेमिसाल क़रार दिया जाता है वहीं गोविन्दा की अमिताभ के साथ छोटे मियां बड़े मियां और सलमान के साथ पार्टनर को भी उच्च दर्जे की कॉमेडी फ़िल्मोंं का दर्जा दिया गया। अक्षय कुमार ने भी तरह-तरह के किरदार अदा किए हैं और कॉमेडी के क्षेत्र में भी उनका प्रयास अचूक रहा। हेरा-फेरी, भागम भाग और सिंग इज़ किंग की बात हो तो कोई और बात करने को रह ही नहीं जाती क्योंकि बतौर कॉमेडी ये फ़िल्में इतने अव्वल नम्बर की हैं कि चाहे जितनी भी बार देख लो हर बार पहले जितना ही मज़ा आएगा।
इस तरह कॉमेडी अब फ़िल्मों का एक अहम हिस्सा बन चुकी है और शायद बिना कॉमेडी के फ़िल्म अब हमें ज़्यादा अच्छी भी नहीं लगेगी। चाहे कोई रोमांन्टिक फ़िल्म हो या एक्शन विशेषत: कॉमेडी हर तरह की फ़िल्म का एक अभिन्न अंग बन चुकी है।