-राजेश कुमार

जैसे ही देश आज़ाद हुआ भ्रष्टाचार ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए। स्वतन्त्रता के लिए लम्बी लड़ाई लड़ने के पश्चात् एक नई लड़ाई लड़ने को मजबूर हो गया है हिन्दुस्तान। आज भारतवादी राष्ट्रवादियों की तलाश है और इस खोज में सिसक रहा है हिन्दुस्तान। भ्रष्टाचार की नींव आज इतनी गहरा गई है कि जीवन भर घूस देने को मजबूर दिखाई देता है आम आदमी। बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करने से लेकर अंतिम संस्कार के लिए शमशान घाट में जगह प्राप्त करने तक घूसख़ोरों से निबटना पड़ता है।

आज हर व्यक्ति एक दूसरे से ऊपर उठने के लिए बेईमानी भरे अोछे हथकण्डे अपनाता है और फिर खुद भी कहीं न कहीं उन्हीं हथकण्डों का शिकार होता है। आज भ्रष्टाचार इतना भयंकर रूप धारण कर चुका है कि इस से कोई घर, बच्चा, बूढ़ा, जवान कोई भी अछूता नहीं रहा। यही है आज के हिन्दुस्तान की तसवीर। आज का भारतीय समाज भ्रष्टाचार तथा रिश्वतख़ोरी में पूरी तरह से जकड़ा हुआ है। जिसमें आम आदमी का जीवन बहुत ही संकटमयी अवस्था से गुज़र रहा है। समाज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं जो इस भयंकर महामारी का शिकार न हो। आम आदमी को सरकारी दफ़्तरों में छोटे-छोटे काम करवाने के लिए भी अधिकारियों या दफ़्तरी कर्मचारियों की मुट्ठी गर्म करनी पड़ती है। नहीं तो उसको इनके झूठे वायदों का शिकार होना पड़ता है और यह बेईमान कर्मचारी किसी भी साधारण व्यक्ति के दस्तावेज़ों में कोई मामूली सी कमी निकाल कर उसे इधर-उधर भटकने के लिए मजबूर कर देते हैं।

हमारा भारतीय समाज भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी, लूट-खसोट की जिस अवस्था से गुज़र रहा है, उस के सबसे बड़े दो कारण हैं। तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या और आज के आदमी की जीवन शैली का तेज़ होना।

भारत में इस जनसंख्या विस्फोट ने अनेक कठिनाइओं को जन्म दिया है और इस अथाह भीड़ में हर व्यक्ति एक दूसरे से आगे निकलने का यत्न कर रहा है। सबसे पहले यह विशाल जनसंख्या बेरोज़गारी को जन्म देती है क्योंकि रोज़गार के साधन सीमित हैं और जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इसलिए हर व्यक्ति दूसरे को पछाड़ कर आगे निकलने के लिए रिश्वत का सहारा लेता है और अधिकारी उसकी मजबूरी का पूरा फ़ायदा उठाते हैं। आज किसी भी क्षेत्र में नौकरी प्राप्त करने के लिए ‘चुनाव मापदण्ड’ उम्मीदवार योग्यता नहीं है बल्कि उसके द्वारा पेश की गई रिश्वत या किसी मंत्री की सिफ़ारिश होती है। आज छोटी से छोटी नौकरी प्राप्त करने के लिए भी रिश्वत और सिफ़ारिश दोनों ही ज़रूरी योग्यताएं हैं। हर कोई व्यक्ति चाहता है कि उसका काम पहले हो जाए इसलिए वह रिश्वत और सिफ़ारिश का सहारा लेने के लिए मजबूर है और आम आदमी जिस के पास इन दोनों की कमी होती है वह समाज में पिछड़ कर रह जाता है।

यहां तो सिर्फ़ रोज़गार प्राप्त करते वक़्त आने वाली कठिनाइयों के बारे में बताया गया है। वैसे आम व्यक्ति जीवनभर रिश्वत देने के लिए मजबूर है। यदि किसी व्यक्ति ने अपने बच्चे को किसी अच्छे स्कूल में दाख़िल करवाना हो तो डोनेशन के रूप में शोषित होना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति ने पटवारी से अपनी ज़मीन की फ़रद निकलवानी हो तो उस को कम से कम एक हज़ार रुपए रिश्वत देनी पड़ती है। ज़मीन की रजिस्ट्री करवानी हो तो तहसीलदार सरेआम ख़रीदार से रिश्वत ले रहे हैं। बात ये कि व्यक्ति को जीवन में किसी न किसी से कोई न कोई काम तो पड़ता ही रहता है और उसे रिश्वत देने की मजबूरी को सहन करना ही पड़ता है।

यदि बाड़ ही खेत को खाने लगेगी तो उसकी हिफ़ाज़त कौन करेगा। आज देश के सारे छोटे बड़े राजनीतिज्ञ, एम. एल. ए., एम. पी. सब अलग-अलग क़िस्म के भ्रष्टाचार, घोटालों में फंसे नज़र आते हैं। नेता आम आदमी का आदर्श होते हैं। उनमें आम आदमी अपने देवता को खोजता है। पुराने समय में जो नेता हुए थे उन्हें पूज्य माना जाता है। अब इनमें से यह ढूंढ़ना मुश्किल है कि कौन ज़्यादा अच्छा है। अब तो यह ही देखने को मिलता है कि कौन बुरा है, कौन उससे बुरा और कौन उससे भी बुरा है। यह लोग खुद भी स्वयं को अच्छा बनाने की बजाए एक दूसरे की बुराइयां ढूंढ़ते नज़र आते हैं। शुरू-शुरू में तो कोई-कोई दोषी रहे होंगे। अब तो पूरे का पूरा कुनबा ही इस दलदल में धंसा नज़र आता है। आम जनता ऐसे नेताओं से क्या सेध लेगी। चुनाव लड़ने के लिए ये नेता बड़े-बड़े उद्योगपतियों से ‘पार्टी फ़न्ड’ के रूप में बड़ी-बड़ी रक़में लेते हैं और सत्ता में आने पर वे अपनी नीतियों को इन उद्योगपतियों के हितों के अनुसार परिवर्तित करते हैं और इनको कई तरह के नाजायज़ लाभ पहुंचाने के लिए मजबूर होते हैं जो कि किसी भी तरह से देश के हित में नहीं होता। इन देश के नेताओं के लालच और बेईमानी की हद यहां तक बढ़ गई है कि ये देश की सुरक्षा की भी परवाह नहीं करते जिसका उदाहरण, बोफ़ोर्ज़ तोप दलाली मामला और तहलका डॉट कॉम कांड हैं जो इन भ्रष्टाचारियों के चेहरे नंगे करते हैं।

सरकारी कर्मचारी जब रिश्वत लेते हैं तब कोई ऐसा व्यक्ति जोकि रिश्वत नहीं देना चाहता हो तो वह शिकायत किसके पास करे क्योंकि उच्च अधिकारी भी रिश्वतख़ोर ही तो हैं। यदि कोई व्यक्ति रिश्वत लेता रंगे हाथों पकड़ा भी जाए और उसको अदालत तक पहुंचाया भी जाए तो वह सरकारी वकील को रिश्वत दे कर दोष मुक्त हो जाता है जोकि उसके ख़िलाफ़ तथ्य भी पेश नहीं करता। यह सरकारी अधिकारी जब किसी व्यक्ति से रिश्वत लेते हैं तो ये बिलकुल भूल जाते हैं कि उनको संबंधित व्यक्ति का काम करने के बदले में तनख़ाह मिलती है जबकि वह संबंधित व्यक्ति का काम करना उस पर एहसान करना समझता है और इस एहसान का वह पूरा मूल्य लेता है।

आज हर सरकारी और अर्द्धसरकारी दफ़्तरों में कर्मचारी ‘काम के बदले दाम’ की नीति अख़्तियार किए हुए हैं। यह रिश्वतख़ोरी भारतीय समाज के खून में रच चुकी है जिस का इलाज बहुत मुश्किल है। इसलिए जब भी कोई आम व्यक्ति सरकारी दफ़्तर में कोई काम करवाने जाता है तो वह यह सोच कर जाता है कि संबंधित काम करवाने के लिए रिश्वत देनी ही पड़ेगी और इसका इंतज़ाम करके ही जाता है।

इसलिए आम व्यक्ति को सरकारी दफ़्तरों से काम करवाने के लिए जीवन भर रिश्वत देनी पड़ती है पर फिर भी वह ये कह कर सब्र का घूंट पी जाता है कि चलो काम तो हो गया।

परन्तु रोज़गार प्राप्त करने के लिए रिश्वत और सिफ़ारिश, आम आदमी के लिए ऐसी मुश्किलें हैं जो असहनीय हैं। एक लायक़ व्यक्ति को उस वक़्त बेहद दुःख होता है जब कोई नालायक व्यक्ति रिश्वत और सिफ़ारिश के ज़ोर पर नौकरी प्राप्त कर लेता है और लायक़ व्यक्ति देखता रह जाता है।

आज हमारे देश के आम आदमी का पूरा जीवन भ्रष्टाचार की गोद में ही दम-तोड़ता दिखाई पड़ रहा है। लेकिन इस का बीज कहीं न कहीं हमारे ही द्वारा बोया जाता है। क्या आज हम ऐसे परिवार, ऐसे मां-बाप कहीं ढूंढ़ सकते है जहां बच्चों को सत्य, निष्ठा, सेवा और त्याग का पाठ राष्ट्र या समाज के संदर्भ में पढ़ाया जाता है? क्या कोई अपने बच्चों को समाज के हित में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है? सत्य तो यह है कि आज सभी सत्य का रास्ता छोड़ इस भेड़ चाल में शामिल हो चुके हैं। आज आवश्यकता है अपने-अपने गिरेबान में झांकने की।

अंत में यह कहा जा सकता है कि रिश्वतख़ोरी एक ऐसी बीमारी है जिस का हम खुद अपने यत्नों से इलाज कर सकते हैं। हम अपने अंदर नैतिक गुण भरें। सिर्फ़ अपने स्वार्थ को ही सामने न रखें। यह समझें कि काम करने के बदले हमें सरकार तनख़ाह देती है। काम की पूजा की जाए, अपना काम ईमानदारी से करके समाज की भलाई में योगदान देने के बारे में सोचें। गुरुओं-पीरों के बताए हुए ‘कर्म सिद्धांत’ पर चलें कि हर एक को अपने कर्मों के अनुसार फल मिलता है। ऐसे गुणों को धारण करके यदि सामूहिक रूप में प्रयत्न करें तो इस रिश्वतख़ोरी की बीमारी से हम निजात पा सकते हैं।

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