-तेजप्रीत कंग
अनुशासन हमारे जीवन का अटूट अंग है। अनुशासन के बिना हमारा जीवन एक बेलगाम घोड़े की तरह है जो किसी भी समय किसी भी तरफ़ जा सकता है। इस लिए ज़रूरी है कि छोटी आयु से ही बच्चों को यह मालूम हो कि अनुशासन क्या है। उसने अनुशासन तथा अपने समाज के रीति रिवाज़ों की पालना किस तरह करनी है। उसने दूसरों के अनुसार व्यवहार किस प्रकार करना है। बच्चों को अपनी आज़ादी की सीमा का ज्ञान होना भी आवश्यक है। उनको यह भी मालूम होना चाहिए कि क्या ग़लत है और क्या ठीक। बच्चों को यह मालूम होना चाहिए कि हर स्थान पर वे अपनी मनमर्ज़ी नहीं कर सकते और कई बार जब माता-पिता उनकी इच्छा के विपरीत किसी बात से इनकार कर दें तो इस का उनको बुरा नहीं मानना चाहिए। यदि बच्चा कोई अनचाहा व्यवहार करता है तो उसे उसी समय समझाना चाहिए ताकि बच्चे समझ सकें कि उन्होंने भविष्य में किस प्रकार का व्यवहार करना है।
आम तौर पर तीन वर्ष से कम आयु के बच्चों को अनुशासन का ज्ञान नहीं होता, इस लिए इस उम्र के बच्चों के काम में माता-पिता को अधिक रोक-टोक नहीं करनी चाहिए, इस से बच्चे चिड़चिड़े तथा ज़िद्दी हो जाते हैं और माता-पिता के व्यवहार से दुःखी हो जाते हैं इसलिए इस उम्र के बच्चों से अनुशासन की अधिक अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। वे मां-बाप जो बच्चों के साथ अधिक सख़्ती बरतते हैं उनको बच्चों के साथ अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है उसको खुद पर निर्भर होने तथा अपने दिल की बातें खुल कर बताने की आज़ादी होनी चाहिए। बच्चों को कभी-कभी ग़लतियां करने का भी अवसर देना चाहिए क्योंकि बच्चे अपनी गलतियों से ही सीखते हैं। बच्चे को ज़रूरत से अधिक सुरक्षा प्रदान नहीं करनी चाहिए। अनुशासन बच्चे की आयु तथा विकास के अनुसार ही होना चाहिए। आयु के अनुसार अधिक अनुशासन भी ठीक नहीं। कई बार माता-पिता बच्चों से आम तथा अनचाहे मामलों पर भी अनुशासन की उम्मीद करते हैं जो कि ठीक नहीं।
कुछ माता-पिता को इस बात की अधिक चिन्ता रहती है कि लोग उनके बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं तथा वे ज़रूरत से अधिक चिन्तित होते हैं। यदि हम थोड़ी सी समझदारी से काम लें तो हमें आमतौर पर बच्चों को सज़ा देने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
बच्चों को अनुशासित रखने के लिए हमें कुछ नियमों की पालना करनी पड़ेगी। जैसे कि बच्चों को कोई भी बात, सख़्ती की बजाए प्यार से समझानी चाहिए। केवल सख़्ती का सहारा लेकर हम अपने उद्देश्य में क़ामयाब नहीं हो सकते। वे बच्चे जिन्हें छोटी उम्र में ही प्यार रूपी अनुशासन से शिक्षा दी जाती है, जिनकी प्यार तथा सुरक्षा की आवश्यकताएं बचपन से ही पूरी की जाती हैं वे बड़े होकर सुलझे हुए बच्चे बनते हैं। यह हमेशा याद रखना चाहिए कि बच्चे डांट फटकार या सज़ा के डर से कुछ नहीं सीखते। वे प्यार, इज़्ज़त तथा मां-बाप के व्यवहार की उदाहरण से ही सीखते हैं। बच्चों को कभी भी कुछ करवाने पर टॉफी, आइसक्रीम या किसी और चीज़ की रिश्वत न दें। बच्चे को रुलाने के बिना ही अनुशासन सिखाएं।
बच्चे को अनुशासित करते समय उस की शारीरिक आयु की बजाए उस की मानसिक आयु का ध्यान रखें। बच्चे को तब ही अनुशासन सिखाएं जब आपको लगे कि बच्चा उसको समझने के क़ाबिल है और समझ सकता है कि उससे क्या उम्मीद की जा रही है। एक वर्ष की आयु में वह अनुशासन नहीं सीख सकता। इस का ज्ञान उसे तीन वर्ष की आयु में होगा। इसलिए अनुशासन की सिखलाई भी इस आयु में ही शुरू होनी चाहिए। बच्चे को यह याद कराते रहें कि किस प्रकार के व्यवहार की उससे अपेक्षा की जाती है।
अनुशासन का एक और उसूल है- स्थिरता। बच्चे इस बात से शशोपंज में पड़ जाते हैं कि कभी जिस काम से मां-बाप उनको रोकते हैं कभी क्यों नहीं रोकते हैं। यह बात भी बच्चों को उलझाती है कि कोई हरकत करने पर पिता उसे बुरा कहता है परन्तु मां उस बात की तरफ़ ध्यान नहीं देती। बहुत बार घर के बुज़ुर्ग भी बच्चों को उस काम को करने की इजाज़त दे देते हैं जिस काम को मां-बाप ने करने से रोका हो।
यदि हमारी नज़रों में बच्चे का किया कोई काम ग़लत है, पर बच्चा उस काम को ठीक समझता है या यह ग़लती उससे अचानक हो गई है और वह इस बारे में दलील देकर हमारी तसल्ली कराना चाहता है तो उसको अपनी सफ़ाई पेश करने का पूरा मौक़ा देना चाहिए। बड़े होने के नाते उस पर नाजायज़ दबाव नहीं डालना चाहिए।
अनुशासन और आज़ादी को यदि सही अनुपात में मिलाया जाए, तो ही घर में शांति और खुशी रह सकती है। घर चलाने तथा अनुशासित करने के लिए हमें नियम कम ही बनाने चाहिए परन्तु इन की पालना अच्छी तरह होनी चाहिए। घर की कुछ मर्यादाएं होनी चाहिए जिन का बच्चा उल्लंघन न कर सके। कई बार इस तरह होता है कि बच्चा ज़िद्दी तथा झगड़ालू हो जाता है। ऐसे हालात में उसे पीटे नहीं तथा न ही ज़ोर से चिल्लाएं। बल्कि प्यार से काम लें। कभी भी ग़लत भाषा का प्रयोग न करें। ग़ुस्सा कम समय के लिए होना चाहिए और उस के बाद शीघ्र ही दोस्ताना माहौल क़ायम कर लें।
बच्चे को सज़ा देने से पहले की गई ग़लती का कारण अवश्य ढूंढ़ लें। हो सकता है बच्चे की इस ग़लती का कारण बोरियत, ईर्ष्या या असुरक्षा हो। बच्चे को व्यस्त रखने के लिए उस को काग़ज़, पैंसिल, रंग, सलेट, चॉक आदि सामान दें ताकि वह बोरियत महसूस न करे।
अंत में यह कहा जा सकता है बच्चे को अनुशासन सिखाना बहुत ज़रूरी है। इसकी एक सीमा होनी चाहिए। आवश्यकता से अधिक सख़्ती तथा आवश्यकता से अधिक ढील ठीक नहीं। बच्चे सज़ा, पिटाई की बजाये प्यार, बर्दाशत, सहनशीलता, समझदारी प्रशंसा तथा ईनाम द्वारा अधिक सीखते हैं।