-फौज़िया नसीम ‘शाद’
आधुनिक युग में समान शिक्षा प्रणाली होने के उपरांत आज भी रूढ़िवादी विचार-धाराओं में जकड़े हुए माता-पिता लड़कियों का ज़्यादा पढ़ना अपने लिए मुसीबत समझते हैं। वे समझते हैं कि अगर लड़की ज़्यादा पढ़-लिख गई तो उसके लिए सुयोग्य लड़का ढूंढने में दुविधा होगी, साथ ही दहेज भी अधिक देना पड़ जाएगा। समाज में प्रचलित इन धारणाओं के कारण लड़कियां प्राय: कुंठित हो जाती हैं और निरंतर तनावग्रस्त रहने लगती हैं।
लड़कियों के अत्यधिक तनावग्रस्त होने का सिलसिला उनके बचपन से ही आरंभ हो जाता है। उन्हें बचपन से ही टोका जाने लगता है। यह करो, वह न करो। ठीक से चलो। ज़्यादा उछल-कूद मत करो, लड़कों के साथ मत खेलो, तुम लड़की हो, लड़कियों की तरह रहो आदि।
लड़कियों को जहां एक ओर पढ़ाई पर भी ध्यान देना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें घर गृहस्थी के भी सारे कार्य संभालने पड़ते हैं। विवाह के उपरांत उन्हें घर गृहस्थी का बोझ जो संभालना होता है, ऐसे में लड़कियां तनावग्रस्त रहने लगती हैं। लड़कियों में तनाव की स्थिति तब अत्यधिक बढ़ जाती है जब वे अपना ध्यान पढ़ाई में लगाती हैं और उसके माता-पिता कहते हैं, “तुम्हारे इतना पढ़ने-लिखने से क्या लाभ, तुम्हारी कमाई तो हम लोगों को खानी नहीं। तुम्हारा विवाह हो जाएगा और तुम अपने घर चली जाओगी।” माता-पिता के इन वाक्यों को सुनकर लड़की का मन पढ़ाई से विरक्त होने लगता है और अपने साथ की लड़कियों को पढ़ाई में आगे बढ़ता देख कर वह पहले से कहीं अधिक तनावग्रस्त रहने लगती हैैं। यह स्थिति लड़कियों में हीन भावना को जन्म देती है।
लड़कियों के तनावग्रस्त होने का यही एक कारण नहीं है बल्कि इसके अलावा भी बहुत से कारण हैं। जैसे उनका समय से विवाह न होना। जिन लड़कियों का समय से विवाह हो जाता है, उन्हें तनाव कम होता है लेकिन जिन लड़कियों का विवाह माता-पिता के अथाह प्रयासों से नहीं हो पाता है तो वह अपने भविष्य और विवाह को लेकर तनावग्रस्त रहने लगती हैं। पढ़ाई में तो वह पहले ही पीछे रह गई होती हैं, लिहाज़ा नौकरी के योग्य भी नहीं हो पाती हैं। विवाह न होने के कारण लड़की के संबंधियों, आस पड़ोस के लोगों के उल्टे सीधे प्रश्न भी उसे परेशान करते हैं। उम्र अधिक हो जाने पर सुयोग्य वर मिलने की आशा भी क्षीण हो जाती है और फिर धीरे-धीरे माता-पिता भी विवाह के प्रति ढील डाल देते हैं। उम्र काफी हो जाने पर लड़की भी अपने अनिश्चित भविष्य के प्रति परेशान रहने लगती है। लड़कियों में तनाव का दूसरा कारण समाज में कैंसर की तरह फैली सामाजिक बुराई दहेज भी है। आज आए दिन समाचार पत्रों में बहू को कम दहेज लाने के कारण जलाकर मारने के समाचारों को पढ़ कर भी लड़कियां भविष्य के प्रति चिंतित हो जाती हैं।
कुछ लड़कियां ऐसी भी होती हैं जो विवाह के बजाए पढ़ाई को अधिक महत्त्व देती हैं। ऐसी लड़कियों की यह धारणा होती है कि कमाऊ बहू को ज़्यादा प्रताड़ित नहीं होना पड़ता है। ऐसा लगता अवश्य है कि शिक्षित और नौकरी में लगी हुई लड़की के तनावग्रस्त होने की सम्भावना काफी कम होती है परन्तु वास्तविकता यह नहीं है, क्योंकि हमारा समाज आज भी पुरानी परम्पराओं, रीति-रिवाज़ों को त्याग नहीं सका है। जिस के कारण हमारा समाज कुँवारी लड़कियों का पुरुषों के बीच उठना-बैठना, काम करना अच्छा नहीं समझता और अगर लड़की थोड़ा बन-सँवर कर ऑफिस के लिए निकलती है तो पास पड़ोस के लोग उसके ऊपर व्यंग्य कसने से बाज नहीं आते हैं। वहीं अगर वह सादगी से रहती है तो लोग उसे असभ्य व फूहड़ के ख़िताब से नवाजते हैं। आख़िर लड़की करे भी तो क्या करे? ऑफिस में अच्छे व बुरे दोनों ही तरह के लोग मिलते हैं। ऑफिस की अनेक उलझनें उसे तनावग्रस्त कर देती हैं।
कभी-कभी तो लड़कियां अधिक तनावग्रस्त हो जाने पर आत्महत्या करने पर भी विवश हो जाती हैं। आज मानसिक तनाव महिलाओं के जीवन का एक अंग बन चुका है। विवाह के उपरान्त भी लड़की को अपने वैवाहिक जीवन के प्रति भय बना रहता है कि कब उसका पति उससे विरक्त हो जाए। इस तरह के प्रश्न भी उसे तनावग्रस्त कर देते हैं। माता-पिता की भी लड़की को नज़र अंदाज़ करके लड़के को अधिक महत्त्व देने की प्रवृत्ति लड़की को तनावग्रस्त बनाती है।