-शबनम शर्मा

मेरे घर में भतीजा हुआ था। मां ने दोपहर का खाना देकर मुझे भेज दिया। क्लीनिक में पहुंचकर, मैंने बच्चे के गीले कपड़े बदले व भाभी को सौंप कर कपड़े फैलाने बाहर बरामदे में आ गई। अन्दर से डॉ. कालरा की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। वह अपनी नर्स पर बिगड़ रही थी, जिसने हाल ही में उसके क्लीनिक में नौकरी पाई थी, “सुनीता अगर तुम इसी तरह नॉर्मल डिलीवरी करवाती रही तो वो दिन दूर नहीं जब कालरा क्लीनिक बंद हो जाएगा, अगर तुम समय पर मुझे फ़ोन कर देती तो मैं 10-15 मिनट में यहां पहुंच जाती और यह बिल रुपये 1250 के बजाय 12,500 का होता।” “लेकिन मैम….” सुनीता की आवाज़ थी। डॉ. कालरा ज़ोर से चीखीं, “मैम वैम कुछ नहीं अपनी नौकरी टिकानी है तो क्लीनिक की आमदनी की ओर भी ध्यान देना होगा।” “यस मैम, सॉरी मैम।” मैं भारी मन से कमरे में आकर अपनी भाभी के पीले चेहरे को देखने लगी जो कि आज 15 दिन से यहां दाख़िल थी उसने ऑप्रेशन से बच्चे को जन्म दिया था।

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