जस्सी ने आज की डाक में अपने नाम आई चिट्ठी उठाई और दफ़्तर की कैन्टीन में जाकर बैठ गई। एक कोने वाली सीट पर जहां वह हर रोज़ बैठती थी। जैसे वह सीट लंच टाइम में उसी के लिए रिज़र्व होती हो। काऊंटर पर जाकर सैंडविच और कॉफी का कप लिया वापिस आकर चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगी। चिट्ठी इंडिया से थी, काफ़ी लम्बी। बहुत बारीक लिखी हुई और ध्यान से लिखी लगती थी। किसी शाम लाल की चिट्ठी थी।

“मेरी प्यारी जस्स,

तुम्हें शायद मेरी याद न हो पर मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूं और तुम्हें पसन्द करता हूं पर कह नहीं सका। मैं मजबूर था…. वग़ैरह….वग़ैरह….।” जस्सी का माथा ठनका। कौन है यह आदमी? लिखता है, किसी सहेली के भाई का दोस्त है। जस्सी ने दिमाग़ की नसों पर ज़ोर डाला पर उसको इस शाम लाल का कुछ याद नहीं आ रहा था। कौन था वह आदमी जिसको हज़ारों मील दूर बैठे को उसके साथ इश्क जाग उठा था, वह भी दस वर्ष बाद।

चिट्ठी में आगे लिखा था, “मेरा भी तुम्हारे जैसा हाल हो गया है, मतलब कि तलाक़ हो गया है मेरा भी। मुझे लगता है हमें एक-दूसरे के लिए ही बनाया है भगवान् ने। या शायद एक-दूसरे के लिए ही हमारे तलाक़ हुए हैं। तुम मुझे जल्दी से हज़ार पौंड, इंग्लैंड का टिकट और स्पान्सरशिप भेज दो ताकि मैं जल्दी ही इंग्लैंड आ सकूं। बीस तारीख़ से पहले मुझे तुम्हारा उत्तर मिल जाना चाहिए। देखना मेरा दिल मत तोड़ना। एक बार इंग्लैंड पहुंच गया फिर सारी उम्र तुम्हारी पूजा करूंगा।

तुम्हारे ख़त की प्रतीक्षा में…. तुम्हारा अपना,

शाम लाल।”

जस्सी ने बहुत सोचा पर उसको याद नहीं आ रहा था कि यह आदमी कौन है और वह इसे कहां मिली है। इस शाम लाल ने कहां से उसका इंग्लैंड का पता लिया और किसने उसे बताया कि जस्सी का तलाक़ हो गया है। जस्सी तो सोचती थी कि इंडिया में किसी को पता ही नहीं कि उसकी शादी टूट गई है। उसने तो किसी के पास भाप तक भी नहीं निकाली थी, अपनी निजी ज़िन्दगी के बारे में। कौन था जो दस वर्ष पहले उसको चाहता था। उसके दिमाग़ में ऐसी कोई घटना नहीं आई जो शाम लाल से जुड़ी हो। शाम लाल क्या, इंडिया के किसी भी लड़के के बारे में उसकी कोई सोच कभी रंगीन हुई हो, उसे ख़्याल नहीं। इंडिया के बारे में तो लगभग भूल ही चुकी थी अब तक। यादें धुंधली पड़ गई थीं।

बस एक ही याद कहीं गहरी उसके भीतर उतर गई थी जो मिटाए से भी नहीं थी मिटती। वह थी हरिन्दर की याद। हरिन्दर, जिस के लिए वह इंडिया छोड़कर इंग्लैंड आई थी। पास के किसी गांव का लड़का था वह जिसके माता-पिता कई वर्षों से इंग्लैंड में बसे हुए थे और एक बार इंडिया घूमने गए वह जस्सी को अपने बेटे के लिए पसन्द कर आए थे। जस्सी ने भी हरिन्दर की तसवीर देखी, बस देखती ही रह गई थी। तसवीर से ही वह हरिन्दर को दिल दे बैठी। फिर तो वह तसवीर थी या जस्सी। एम.ए. की पढ़ाई बीच में छोड़कर वह इंग्लैंड आने के लिए तैयार हो गई।

“बेटा, परदेस के काम परदेस में ही अच्छे लगते हैं। यहां कौन-सी लड़कों की कमी है….।” मां उसे कई बार समझाती।

“अपनी जान पहचान वाले लोग हैं। कौन-सा पराए हैं कि लड़की से धोखा हो जाएगा। यहां चार कोस पर गांव है उजागर सिंह का। मेरे भाइयों जैसा है। अगर बच्ची चाहती है बाहर जाना तो जाने दो। तुमने यहां इससे क्या करवाना है?” पिता मां को ग़ुस्सा होते तो जस्सी पिता को शुक्राना आंखों से देखती।

फिर वह इंग्लैंड चली आई। एयर पोर्ट पर पूरा ससुराल उसे लेने आया था। नहीं आया था तो हरिन्दर। जस्सी के मन को धक्का लगा।

“बेटा, हरिन्दर बाहर काम पर गया हुआ है। बस आजकल में आ जाएगा।” सास ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। जस्सी को थोड़ा हौसला हुआ। नई दुनियां, नए लोग। जस्सी जैसे बचपन में खो गई। ननदों के साथ हंसती-खेलती, सास के साथ बातें करती और घर के नए तौर-तरीक़े सीखती। आईने के सामने घंटों हार-सिंंगार करती। शायद आज हरिन्दर आ जाए। हरिन्दर जिसे उसने देखने से पहले ही अपना दिल दे दिया था।

“जिस दिन हैरी घर आया उससे अगले दिन मैं शादी कर दूंगी दोनों की….। मेरे बेटे का भी घर बसे। ये फ्रेंड्ज़ तो चाहे बीस लेकर घूमे पर अपने गांवों की लड़कियों का मुक़ाबला नहीं। बेटा अपने पति का भेद पाने की कोशिश करना। इन देशों की लड़कियां बहुत तेज़ हैं। खुद लड़कों को पकड़ती हैं। बस होशियार होकर रहना….।” सास उठती बैठती उसे अक्ल देती। उधर जस्सी आईने के सामने खड़ी सोचती, “मैं किसी गोरी मेम से कम हूं? सुन्दर हूं। हरिन्दर देखते ही मुझे पसंद कर लेगा और फिर मैं हमेशा के लिए उसकी हो जाऊंगी। वैसे उसने मेरी तसवीर तो देखी ही हुई है। कौन-सा सूट पहनूं उस दिन जब वह आएगा….।” वह हर रोज़ नया सूट निकाल कर पहनती। और फिर एक दिन हरिन्दर का फ़ोन आया कि वह शाम को आ रहा है।

जस्सी की टांगें कांपी और दिल की धड़कन की आवाज़ उसने अपने कानों से सुनी। आख़िर वह आ ही रहा था, जिसकी मन ही मन वह पूजा करती आ रही थी। आज वह उसके सामने होगा।

हरिन्दर आया। जस्सी अपनी आंखें ऊपर न उठा सकी। “हैलो” कह कर हरिन्दर ने उसका हाथ पकड़ा तो जस्सी को लगा जैसे बिजली की नंगी तार से छू गया हो और उसके जिस्म की ताक़त हरिन्दर के वश में हो। शाम हुई। हरिन्दर उसे डिनर पर ले गया, बाहर कहीं। दोनों छोटी-छोटी बातें करते रहे। डिनर के बाद वह बांहों में बांहें डाले किसी पार्क में आधी रात तक घूमते रहे। चांदनी रात में हरिन्दर ने उसको अपनी बांहों में लेकर पहली बार चूमा और जस्सी जैसे सपेरे के वश में पड़ी नागिन की तरह मदहोश हो गई। अमरबेल की भांति वह पीपल पेड़ के साथ लिपट गई जो बांहें फैलाए उसके समक्ष खड़ा था। वह नीचे ही गीली घास पर बैठ गए। इस गुलाबी ठंड में जस्सी को अगर गर्माहट मिल रही थी तो सिर्फ़ हरिन्दर के जिस्म की। वह बेहोश-सी उसकी गोद में सिर रखकर पड़ी रही। चांद चमक रहा था, रात की खामोशी और प्रियतम का साथ….। जस्सी जैसे स्वर्ग में थी। उसने भगवान् का धन्यवाद किया कि हरिन्दर ने उसे स्वीकार कर लिया है। कितनी खुशक़िस्मत है वह। कितनी होंगी उस जैसी भाग्यवान जिनको अपने मनपसंद जीवन साथी मिले होंगे।

“घर नहीं चलना क्या….?” हरिन्दर ने उसको बेहोशी की हालत से जगाया।

“नहीं….। मेरा दिल करता है मैं इसी तरह सारी रात आपके साथ यहीं बैठी रहूं…. इस रात का कभी सवेरा न हो…. कितनी रेशमी रात है…. कितनी मुलायम…. कितनी हसीन….।” वह कवियों की भांति बोली।

“ठंड काफ़ी हो गई है जस्सी। चलो घर चलें….। वहां जाकर मेरे साथ बात कर लेना जो भी करनी हो….।” वह उसे उठाता हुआ बोला।

जस्सी उसके कंधे पर सिर रखे शराबियों की तरह उसके साथ चलती रही। एक पल भी हरिन्दर ने उसका सिर अपने कंधे से नहीं उठाया और जस्सी चुम्बक की भांति उसके साथ चिपकी रही।

घर आकर हरिन्दर ने अपने कमरे का द्वार खोला। जस्सी अभी भी उसकी बांहों में थी।

“मेरे साथ सोना है तुम्हें….?” उसने धीरे से पूछा।

“मां जी क्या सोचेंगे…. ?” उसके होंठ कंपकंपाए।

“मम्मी तो सोई पड़ी है। तुम्हें सोना है तो आ जाओ…. तुम्हारी मर्ज़ी है….।” वह रूखी-सी आवाज़ में बोला।

जस्सी को लगा जैसे हरिन्दर उसके साथ नाराज़ हो गया हो। वह तो हरिन्दर की नाराज़गी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। कुछ पल सोफ़े पर बैठी सोचती रही, “कल को भी मेरी हैरी के साथ शादी हो ही जानी है…. फिर यह झिझक क्यों?” वैसे भी जो चार घंटे उसने हरिन्दर के साथ बिताए थे उनका नशा अब तक उसके दिमाग़ पर था। वह उठी और कपड़े बदले बग़ैर ही हरिन्दर के साथ जा पड़ी। हरिन्दर के पांव चूम लिए उसने- “मैं तो तुम्हारी हूं हैरी…. मैं तुमसे दूर नहीं रह सकती….।” कहती हुई वह फिर उसके साथ लिपट गई। उसके बाद जैसे फिर उसको मदहोशी का दौरा पड़ा और कुछ भी होश न रही।

होश आया था सुबह। जब उसने हरिन्दर को तैयार होते देखा।

“कहां जा रहे हैं आप इतनी सुबह-सुबह?” वह आंखें मलती उठी।

“मुझे काम पर वापिस जाना है। बहुत बिज़ी आदमी हूं। कल भी बड़ी मुश्किल से आया था…. छुट्टी कहां मिलती है मुझे….।” वह पैंट पहनता हुआ बोला।

“छुट्टी नहीं मिलती? पर हमारी तो शादी होने वाली है। क्या शादी के लिए भी किसी को छुट्टी नहीं मिलती?” वह हैरान हुई।

“शादी? किसकी शादी?” वह बूट डालता रुक गया।

“हमारी शादी….। मेरी और आपकी….।” वह शर्माती हुई बोली अजीब-सी शान्ति थी उसके चेहरे पर। तूफ़ान के बाद समुद्र पर छाई शान्ति….। आत्मसमर्पण की बेफ़िक्री…. और किसी संपूर्णता का एहसास।

“हमारी शादी? तुम्हें किसने कहा है कि हमारी शादी होगी? तुम्हें कोई ग़लतफ़हमी तो नहीं हो गई मेरे बारे में…. ?” उसकी आवाज़ ऊंची हो गई।

“यह आप क्या कह रहे हो? ग़लतफ़हमी किस बात की? अपनी सगाई हो चुकी है। अपको तो पता है कि बात पक्की है। अब तो सिर्फ़ शादी ही बाक़ी है….।” जस्सी ने आंखें नीची कर लीं।

“बात सुन लड़की। मेरा तुम्हारे साथ तो क्या…. दुनियां की किसी भी लड़की से शादी करवाने का कोई इरादा नहीं है। मैं तो घूम-फिर कर मेला देखने वाला आदमी हूं। किसी के अधिकार में आने वाली चीज़ नहीं। न मैं किसी को अपने साथ बांध सकता हूं, समझी?” वह कठोर आवाज़ में बोला।

“पर आप पहले यह बात कह देते। मैं…. मैं….।” वह रो पड़ी।

“पहले और अब में क्या फ़र्क़ है?” उसने आंखें सवाल में इधर-इधर घुमाई।

“फ़र्क़ क्यों नहीं है। मैं आपके साथ सोई हूं। अपनी इज़्ज़त दी है….। भले घर की लड़की हूं…. पहले बताते तो…..।” वह उसका हाथ पकड़कर बोली।

“मैंने तो नहीं कहा था तुम्हें कि तुम मेरे साथ आकर सो जाओ? तुम खुद आकर मेरे साथ सोई थी। अब अगर जवान लड़की खुद आकर सो जाए तो आदमी क्या करेगा? तुम्हारा अपना क़सूर है…. मेरी कोई ग़लती नहीं….।” हरिन्दर ने दोनों हाथ खड़े करते हुए कहा।

“भगवान् के लिए ऐसे मत करें हैरी। मैंने आपको अपना पति समझकर अपना आप सौंपा था। आप कोई ग़ैर नहीं थे मेरे लिए। हमारी शादी होने वाली थी…. मुझे क्या मालूम था कि हवा का रुख़ इस तरह भी बदल सकता है….।” उसने हैरी के पांव पकड़ लिए।

“इसमें इज़्ज़त कैसे घुस गई। तुम्हारा कुछ नहीं गया, मेरा कुछ नहीं गया, ऐश करो। इंग्लैंड पहुंच गई हो। तुम्हारी टाइप का कोई न कोई आदमी तुम्हें मिल जाएगा….,” उसने सिगरेट सुलगाते कहा।

“पर मैं तुम्हीं को प्यार करती हूं हैरी। मैंने किसी और के बारे में कभी सोचा भी नहीं।”

“अगर तुम मुझसे प्यार करती हो तो ज़रूरी नहीं कि मैं भी तुम्हें प्यार करूं। मेरे नीचे दस लड़कियां काम करती हैं। अगर वह मेरे साथ आकर सो जाएंगी तो मुझे उनके साथ प्यार हो जाएगा?” उसने सिगरेट का लम्बा कश खींचा।

“पर मेरे में क्या कमी है? पढ़ी लिखी हूं, घर का काम जानती हूं…. और….।” उसकी आंखें भर आईं।

“बड़ी बात तो यह है कि तुम काली हो। लोग क्या कहेंगे कि कैसी लड़की को लिए फिरता है। और तो और मैंने रात तुम्हारे साथ बिल्कुल भी इन्जॉय नहीं किया। मेरा अभी तक मूड ख़राब है। सबसे बड़ी चीज़ दुनियां में सेक्स है। अगर आप इसी में खुश नहीं हैं तो क्या फ़ायदा ऐसी रिलेशनशिप का। आता-जाता तुम्हें कुछ नहीं पर इसमें तुम्हारा भी क्या क़सूर है? वहां गांव में तुम्हें कौन सिखाता है ऐसी बातें। सेक्स एजुकेशन का तो कोई सब्जेक्ट ही नहीं वहां। बस बी.ए., एम.ए. करवा दी और खाना बनाना सिखा दिया।” वह सांस लेने के लिए रुका।

“सच ऐसे ही होता है हर बारी। जब भी किसी इंडियन लड़की के साथ सेक्स करो तो ऐसा लगता है जैसे किसी देवी के साथ सेक्स किया हो। साली कितनी गंदी फीलिंग है।” उसने नाक चढ़ाते हुए कहा।

“कोई बात नहीं। मैं धीरे-धीरे सब सीख लूंगी।” उसने मुंह पर हाथ रखते कहा। जैसे कह रही हो कि एक सेवा का मौक़ा और दो फिर जी-जान से आपकी ग़ुलामी करूंगी।

“देखो पागल मत बनो। तुम्हारा मेरा कोई बेस नहीं बनता। मेरे पास तो लड़कियों की लिस्ट है और तुम्हारा नम्बर बहुत बाद में आता है बेहतर है कि तुम अपने लिए कोई और ढूंढ़ लो या इंडिया लौट जाओ।” उसने दो टूक फ़ैसला सुनाया।

“इंडिया वापिस चली जाऊं? पर किस मुंह से। कैसे मैं समाज को फेस करूंगी हैरी?…. तुम्हारी बहन के साथ कोई ऐसा कर जाए तो तुम्हें कैसा लगेगा?” उसने आख़िरी कोशिश की।

“मेरी बहन का क्या बिगड़ जाएगा फिर?” वह कह कर बैग उठाकर बाहर निकल गया।

जस्सी के लिए जैसे भूचाल आ गया। उसे चारों दीवारें घूमती लगी और वह रोती हुई बेड पर गिर पड़ी।

हरिन्दर चला गया। सारे परिवार ने आंखें फेर ली। सास ने बेबसी ज़ाहिर की। “बेटा, हैरी नहीं मानता। क्या करें?”

जस्सी, जैसे भरी सभा में द्रोपदी की तरह तड़फ उठी- भगवान् के लिए मुझे नंगी मत करो। पर कोई कृष्ण उसकी मदद के लिए न आया। सास ने कह दिया कि वह इंडिया वापिस चली जाए।

वह लुटी-लुटी दुनियां का तमाशा देख रही थी और सोफ़े पर पड़ी सोच रही थी। अपनी ज़िन्दगी के बारे में। घर के सभी सदस्य अपने कामों पर गए थे और उसका ससुर जो अक्सर घर रहता था, आया।

“क्या बात है जस्सी?” उसने हमदर्दी से पूछा।

“पिता जी….।” बच्चों की भांति उजागर सिंह के गले लगकर रो पड़ी। “मैं क्या करूं पिता जी? अपना काला मुंह लेकर कहां जाऊं? सारे गांव में पता है कि मैं अब आपकी बहू हूं….।”

उजागर सिंह ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। “तुम फ़िक्र मत करो। मेरे होते हुए तुम्हें कुछ नहीं होने वाला। मैं सब ठीक कर दूंगा।” वह उसे हौसला दे रहा था।

“आप क्या कर सकते हो पिता जी, जब हरिन्दर ही नहीं मानता। फिर मेरा बसेरा इस घर में कैसे होगा। मैं तो बसने से पहले ही उजड़ गई।” उसे उजागर सिंह की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था।

“करना क्या है? मैं घर का मालिक हूं, हरिन्दर कौन होता है तुम्हें घर से निकालने वाला। मैं हूं न तुम्हारे साथ, घबरा मत।” कहते हुए वह अपना हाथ उसकी पीठ पर से नंगी गर्दन पर ले गया। उसकी सांसें जस्सी ने अपने कानों पर महसूस की। उखड़ी और टूटी सांसें। जस्सी को घृणा महसूस हुई।

उसने अपने को हिलाया पर उजागर सिंह की पकड़ मज़बूत थी। किसी अनजाने भय से कांप गई वह। उसने नज़रें ऊपर उठाई। बूढ़े की आंखों में शैतान नाच रहा था। उसने झटके से खुद को छुड़ाया और लड़खड़ाती हुई-सी सीढ़ियां चढ़ कर अपने कमरे में चली गई।

उस रात कई बार किसी ने उसके कमरे का दरवाज़ा थपथपाया और जस्सी सारी रात सो न सकी। रात आंखों में ही गुज़र गई थी। सुबह उठकर उसने दूर की रिश्ते में लगती किसी बहन का फ़ोन नम्बर ढूंढ़ा। क़ुदरती रानी फ़ोन पर मिल गई।

“क्या हाल है? शादी का पता तक नहीं दिया,” रानी रोष कर रही थी।

“कौन-सी शादी? मैं तो बर्बाद हो गई हूं।” उसने रोते हुए अपनी कहानी रानी को सुनाई।

“न, न.. इंडिया जाने की ग़लती मत करना। वहां तुम्हारा कुछ नहीं होगा। मैं ही करती हूं तेरे लिए कुछ। परदेस में अपने ही काम आते हैं। शाम को आने दो तुम्हारे जीजा को। तुम घबराना नहीं, हम तुम्हारे साथ हैं।” रानी ने उसे हौसला दिया।

जस्सी ने भगवान् का शुक्र मनाया कि कोई तो है उसकी पुकार सुनने वाला।

शाम को फ़ोन करने की बजाए रानी अपने पति को लेकर आ गई। जस्सी के ससुराल वालों ने बुरा मनाया।

“कोई बात नहीं। मैं अपने घर ले जाती हूं इसे। हम खुद कोई लड़का देख कर इसकी शादी कर देंगे। इंडिया जाकर क्या करेगी? भारतीय लड़की जब एक बार लक्ष्मण रेखा पार कर जाती है तो उसकी कोई वापसी नहीं होती कोई यू-टर्न नहीं है भारतीय औरतों के लिए।” और फिर जस्सी रानी के साथ उनके घर आ गई। उसे लगा कि लंका में जैसे उसे विभीषण का घर मिल गया हो।

कुछ दिनों बाद ही रानी ने उसको किसी स्टोर में शाम की पार्ट टाइम जॉब ढूंढ़ दी। दिन में रानी के घर का काम करती और शाम को जॉब पर चली जाती।

चार-पांच हफ़्ते शांति से निकल गए। एक दिन शाम को जब वह काम पर जाने से पहले रसोई में चाय बना रही थी तो रानी का पति जगरूप आया।

“भैया, चाय पीएंगे आप?” उसने ऐसे ही पूछ लिया।

“अगर इतने प्यार से पूछती हो तो पी लूंगा।” उसने जस्सी के गाल पर हल्की सी चपत दी।

“ये लीजिए….,” कह कर जस्सी ने कप जगरूप की ओर बढ़ाया।

“यह भैया-भैया क्या लगा रखा है। मैं तुम्हारा जीजा हूं। कितना खूबसूरत रिश्ता है जीजा साली का। कितना रोमांटिक। तुम मुझे जीजा कहो या रूप। भैया तो बाज़ारू-सा शब्द है।”

जस्सी बहुत देर तक चुप रही।

“और इतनी उदास क्यों रहती हो तुम?”

“जिसकी क़िस्मत में उदासी लिखी हो वह क्या करे।” वह आंखें भर कर बोली।

“क़िस्मत को तुम्हारी क्या गोली लगी है? सुन्दर जवान लड़की हो बीस लड़के मिल जाएंगे। यहां तो चार-चार बच्चों की मां की शादी हो जाती है। खुद खुश रहो और जीजे को खुश रखो। फिर देखना तुम्हारे काम कैसे बनते हैं।” उसने जस्सी के बालों में हाथ फेरा।

“कैसे….?”

“देख जस्स, तू कोई बच्ची तो है नहीं। दुनियां देख चुकी हो। तुम मेरा काम कर दो, मैं तुम्हारा काम कर दूंगा।”

“क्या मतलब?”

“मतलब साफ़ है। तुम मेरी फ़ीस दो, जैसा लड़का कहोगी ढूंढ़ दूंगा। एक हाथ लो, एक हाथ दो। दुनियां में कोई काम फ्री तो होता नहीं।” वह बिज़निसमैन की भांति बोला।

“पर मैं ऐसी लड़की नहीं हूं भैया….।” वह ग़ुस्से में बोली।

“पहले सभी यही कहती हैं। वैसे भी तुम कौन-सा अब कुंवारी हो? जैसा एक के साथ सो गई वैसा एक से ज़्यादा के साथ। कौन सी स्टैंप लग जाती है।”

जस्सी को लगा जैसे जगरूप उसके सामने नंगा हो गया हो। उसकी आंखों के सामने रानी की भोली-भाली तसवीर घूम गई। कितने विश्वास के साथ वह उसको अपने घर लेकर आई थी।

“मैं तो अभी हरिन्दर को भूली भी नहीं हूं। मेरा शादी को दिल भी नहीं करता।” वह बेबसी में बोली।

“नहीं करता तो मत करवाओ। अपनी जवानी क्यों ख़राब करती हो हरिन्दर के लिए। जीजे के साथ ही रह लो। लोग कौन-सा दो दो नहीं रखते। मैं तुम्हें भी बराबर का दर्जा दूंगा….,” उसने सीना ठोक कर कहा।

“रानी बहन क्या सोचेगी मेरे बारे में?” उसने प्रश्न किया।

“रानी को ख़ाक पता चलेगा? बात अपने में रहेगी….।” वह कह ही रहा था कि बाहर का दरवाज़ा खुला और रानी भीतर आ गई।

“ओ डार्लिंग! मैं आज ज़रा जल्दी घर आ गया था। जस्सी बोली जीजा जी चाय पी लो। पर तुम्हें तो पता है मैं किसी के हाथों का कुछ बना नहीं खाता, तुम्हारे हाथों में अमृत है,” कह कर उसने रानी के हाथ चूम लिए।

जस्सी भीतर ही भीतर हंसी पर मौन रही।

धीरे-धीरे जस्सी पर जगरूप का दबाव बढ़ता जा रहा था। अब उसका उस घर में रहना मुश्किल हो गया था। उसने अख़बार देखे पास के शहर में रेडीमेड कपड़े की फ़ैक्टरी में मशीनिस्ट की ज़रूरत थी। ट्रेनिंग वह स्वयं देते थे। जस्सी ने फ़ोन किया और उन्होंने जस्सी को बुला लिया। फ़ैक्टरी के नज़दीक ही उसने किसी बूढ़ी औरत के साथ रहने का प्रबन्ध कर लिया।

रानी ने सुना तो बहुत हैरान हुई। “यह तुमने अचानक क्या फ़ैसला ले लिया?”

“बस पैसे बढ़िया मिलेंगे…. और फिर तुमने मेरी शादी भी तो करनी है, कुछ पैसे इक्ट्ठे कर लूं।” जस्सी ने बात हंसी में उड़ा दी।

फ़ैक्टरी में चाहे जस्सी का मन नहीं था लगता पर और करती भी क्या। कई बार उसका हाथ मशीन की सूई के नीचे आ जाता पर वह रोकर चुप कर जाती। सोचती शायद कभी हरिन्दर वापिस आ जाए। उसका सुपर-वाइज़र मिस्टर शर्मा कई बार आकर उसकी मदद करता। समय समय उसको पांच दस मिनिट की ब्रेक देता। वह उसे अपने पिता समान लगता। अपने ही घर का कोई आदमी। एक दिन चाय के समय उसने अपनी कहानी शर्मा को सुनाई।

“फिर तो तुम्हारा वीज़ा ख़त्म होने वाला होगा। अपना कुछ करो। नहीं तो मारी जाओगी।,” शर्मा ने उसे समझाया।

जस्सी को एक नई चिंता ने आ घेरा। “हां, यह तो मुझे याद ही नहीं था। पर मैं क्या करूं? किसी को जानती भी नहीं,” वह बेबसी में बोली।

“किसी के साथ शादी करवा लो जल्दी से।”

“शादी….! किसके साथ करवाऊं?” वह घबरा गई।

“सच, अगर तुम मुझे पहले मिल जाती तो मैं तुम्हारे साथ शादी कर लेता और ऐसी गंदी पत्नी से बच जाता जो मुझे मिली है।” वह ग़ुस्से में सिर हिला रहा था।

जस्सी ज़ोर से हंसी। “अच्छा मज़ाक है।”

“सच्ची, मैं मज़ाक नहीं कर रहा जस्सी। इस औरत ने मेरी ज़िन्दगी तबाह कर दी है। मैं तो कहता हूं कि मरे कहीं और मेरा पीछा छोड़े….।”

“चलिए, आप अपनी पत्नी को बाद में मारना। पहले मेरा काम करवाइये।” उसने शर्मा का ध्यान अपनी ओर खींचा।

“हां, तुम्हारा भी कुछ करना पड़ेगा। किसी गोरे को हज़ार दो हज़ार पौंड देकर तुम्हारे पासपोर्ट पर स्टैंप लगवा देते हैं।”

जस्सी ने ज़ेवर बेचे, कुछ जमा राशि इक्ट्ठा की और दो हज़ार पौंड शर्मा को दे दिए। उसकी पेपर मैरिज हो गई। उसके दिमाग़ से वीज़ा ख़त्म होने का बोझ उतर गया। किसी नए उत्साह ने उसके अंदर जन्म लिया। उसने दिल के सभी ज़ख़्मों पर सब्र की पट्टी बांधी और नई ज़िन्दगी शुरू करने का फ़ैसला किया।

“क्या हाल है जान! बात ही नहीं करती। मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं।” एक दिन शर्मा ने शिकवा किया।

“ऐसी तो कोई बात नहीं है शर्मा जी। दरअसल टाइम ही नहीं मिला….।” वह आदर से कुर्सी पर से खड़ी हो गई।

“टाइम नहीं मिला? हमारे घर में तो झगड़ा हो रहा है आपकी वजह से।”

“मेरी वजह से? पर मैंने क्या किया है?” वह हैरान थी।

“करना क्या था। ऐसे ही मेरी पत्नी को किसी ने कह दिया कि अपना इश्क है और वह अब मरने मराने पर उतरी है।”

“अपना इश्क? पर मैं तो आपको पिता जैसा समझती हूं। सपने में भी कभी मैंने ऐसी बात नहीं सोची।” जस्सी ने अपनी सफ़ाई पेश की।

“आग के बग़ैर धुआं नहीं उठता जस्सी। सारी फ़ैक्टरी कह रही है कि शर्मा और जस्सी का इश्क चल रहा है। उनके कहने का भी क्या है, मैं खुद महसूस करता हूं कि तुम मुझे अच्छी लगती हो।” वह बेशर्मी से मुस्कुराया।

जस्सी के भीतर आग भड़क गई। ‘यह आग इसी की लगाई है’ उसने सोचा। “शर्मा जी, शर्म करें कुछ। मैं आपकी बेटी जैसी हूं। इश्क कितना भी अंधा हो पर इतना पागल नहीं होता कि बाप की उम्र के आदमी के साथ किया जाए। अगर कोई करता भी हो तो मजबूरी हो सकती है, इश्क नहीं….।” कह कर वह फिर मशीन पर कपड़े सीने बैठ गई।

इस घटना के बाद उसने शर्मा से बोलना बंद कर दिया। शर्मा क्या उसने जैसे सारी दुनियां से ही बोलना छोड़ दिया। बाहरी दुनियां को छोड़ कर उसने अपने भीतर ही एक दुनियां बसा ली। अपनी तन्हाई को ख़त्म करने के लिए उसने ईवनिंग क्लासों में पढ़ाई शुरू कर ली। भीतर की तन्हाई तो इंसान काट लेता है, कभी सज़ा समझकर तो कभी तपस्या समझकर पर बाहरी तन्हाई छुपाए नहीं छुपती। हर रोज़ कोई न कोई उसका चाहने वाला पैदा हो जाता और उसका साथ मांगता। उसके ज़ख़्मों पर मरहम लगाने की बात करता। जस्सी के तो कान पक गए ऐसी बातें सुनते-सुनते। कभी किसी जान पहचान में से रिश्ता आ जाता। लड़की के पास पक्के काग़ज़ हैं इंग्लैंड के। हमारा लड़का ही पक्का करवा दें। पांव धो-धो कर पीएंगे। कभी किसी का तलाक़ हो जाता या किसी की पत्नी मर जाती या छोड़कर भाग जाती तो लोगों को अचानक ही उसका ख़्याल आ जाता। हंसी तो उसे तब आती जब उसे पांच साल छोटे लड़कों के रिश्ते आते। सिर्फ़ इसी कारण कि उसके पास इंग्लैंड की सिटीज़नशिप है। जैसे कोई जादू की छड़ी।

जैसे हर मर्द का फ़र्ज़ था उससे हमदर्दी जताना। हमदर्दी जो सिर्फ़ एक ही ढंग से जताई जा सकती थी। जैसे हर आदमी को उस पर तरस आता था या उसको देखकर बेवजह लोगों को इश्क का दौरा पड़ जाता था। कई बार वह सोचती ‘औरत की भी क्या ज़िन्दगी है। इंग्लैंड हो चाहे इंडिया, मर्द के लिए वह सिर्फ़ भोगने की चीज़ है।’ जैसे वह कोई चलती फिरती आग हो जिस पर हर कोई अपने हाथ सेंकने चाहता था। कोई आकाश में उड़ती अकेली पतंग जिस पर हर शरारती बच्चे की नज़र है कि काश! वह कट कर उसकी झोली में गिरे। कोई उसको समझने का प्रयत्न नहीं करता कि उसके भी अरमान हैं। उसको भी अपनी ज़िन्दगी खुद जीने का अधिकार है। क्यों हर बार मर्द सोचता है कि औरत मर्द के बिना रह नहीं सकती? औरत के लिए मर्द बहुत ज़रूरी है।

अच्छे भाग्य से उसको सोशल सर्विसिज़ में अच्छी नौकरी मिल गई। नया माहौल, नए लोग, नया काम।

जस्सी का चाव संभाला नहीं जा रहा था। वह फ़ैक्टरी के माहौल से निकल कर दफ़्तर के माहौल में आ गई। पढ़े-लिखे लोग थे यहां। उसकी शिक्षा की क़दर पड़ेगी। कुछ नया सीखेगी, नया गृहण करेगी। कम से कम कोई जगरूप या शर्मा तो नहीं होगा यहां। वह फिर फूल की भांति खिलने लगी। अपनी पुरानी ज़िन्दगी भूलने लगी और नए दोस्त बनाने लगी।

यहीं उसकी मुलाक़ात हुई थी कंवल के साथ। कंवल उसके साथ ही काम करता था। अच्छा सुन्दर लड़का था। कुछ साल पहले शादी करवा के इंडिया से इंग्लैंड आया था। आम शादियों की तरह उसकी शादी भी टूट गई और अब वह अकेला था। जस्सी का हम उम्र था। जब जस्सी से ग्रामीण लहज़े से बात करता तो जस्सी के भीतर जैसे ठंड पड़ जाती।

“चल छोरी, चाय पी कर आएं। अरे तुम तो बिल्कुल गांव की छोरी ही हो भई।” जब वह कहता तो जस्सी को लगता कि वह अपने गांव में घर के आंगन में खड़ी हो। कभी-कभी वह उसके काम में मदद करता और दफ़्तर के तौर तरीक़े समझाता। जस्सी को वह मसीहा लगता और वह बात बात पर उसका शुक्रिया अदा करती।

“तुम्हें मैं कैसा लगता हूं?” वह कई बार पूछता।

“बहुत अच्छा….।”

“अपने भाई जैसा मत बोल देना। मैं कभी किसी लड़की को बहन नहीं बनाता।” वह ज़ोर से हंसता और जस्सी भी मुस्कुरा देती।

“जस्सी तुम्हें मालूम है हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं। बिना किसी लाग-लपेट के। और दोस्ती में बहुत कुछ आ जाता है। बहुत सारे रिश्ते निभाती है दोस्ती एक ही समय पर….।” वह कभी कहता तो बात जैसे जस्सी के भीतर तक उतर जाती। पर वह कोई उत्तर न देती।

“जस्सी तुम कैसे अकेली रह कर अपने आप को सज़ा दे रही हो? मेरा तो कभी-कभी मन बहुत घबराता है इस तन्हाई से।” उसने एक बार जस्सी के पास दिल खोल दिया था।

“नहीं कंवल, अब तो जैसे आदत हो गई है अकेले रहने की। कोई ज़्यादा महसूस नहीं होता।” उसने अपने भीतर का सत्य बताया।

“तुम्हारा दिल नहीं करता कि तुम्हारा भी कोई घर हो…. तुम्हारी भी गृहस्थी, तुम्हें भी कोई प्यार करे….?” उसने जस्सी के ज़ख़्म छेड़े।

“हां, कई बार जब बहुत उदास हो जाती हूं और ज़िन्दगी के बीते सफ़र को देखती हूं और सोचती हूं कि क्या खोया, क्या पाया। फिर मेरा मन करता है कि काश मेरी भी छोटी सी दुनियां हो जहां मैं छोटे-छोटे बच्चों को मिट्टी खाने से रोकूं…. रात को पति जब देर से आएं तो बर्तन तोड़ूं, झगड़ा करूं या फिर सर्दी की धूप में पेट बढ़ा कर बैठी छोटे-छोटे मोजे बनाऊं….।” उसने सांस भरी।

“पर यह क्या बात है? यह कोई इतना बड़ा सपना तो नहीं जो पूरा न हो….,” उसने हंसते हुए कहा।

“नहीं कंवल, मुझे मालूम है कि सपना कोई बड़ा नहीं है पर सपने के पूरे होने का एक वक़्त होता है मैं वह स्टेज पार कर चुकी हूं। अब तो बच्चों का खेल लगती हैं यह बातें….।” वह भीतर से बहुत उदास थी।

“नहीं जस्स, तेरा घर हो और तुम्हारा पति। फिर तुम्हें पता चलेगा कि औरत के क्या अर्थ हैं।”

“मैं समझती हूं औरत के अर्थ और घर के अर्थ भी। औरत हूं मैं। पंछी भी अपने घोंसले चाहते हैं। फिर औरत तो होती ही घर के लिए है। पर जब एक बार उससे घर छीन लिया जाए और उसको रास्तों की ख़ाक छाननी पड़े तो बहुत हद तक उसके अंदर की औरत मर जाती है।”

“तुम अपने एहसासों की खुद क़ैदी हो। अपने आप को इस खोल में से बाहर निकालो। औरत नदी के जैसी होती है। जब तक किसी समुद्र में न मिल जाए वह संपूर्णता को नहीं पहुंचती। भटकती रहती है। किसी मर्द में जज़्ब करो खुद को। तुम्हारा अधूरापन ख़त्म हो जाएगा।” वह ठंडी शीत आवाज़ में बोला।

“कोई ज़रूरी नहीं यह भटकन हो। तलाश भी हो सकती है। सही की तलाश।” उसने तर्क किया।

“तलाश ज़्यादा लम्बी हो तो हार बन जाती है।” वह ग़ुस्से हो गया।

“ज़रूरी नहीं हर तलाश को मंज़िल मिले। कई रास्तों में भी रह जाते हैं। मुझे लगता है मेरा हश्र भी यही होना है।” उसने दूर आकाश में देखते कहा।

“क्यों? भाग्य से तुम्हारी छह फ़ीट की मंज़िल तुम्हारे सामने खड़ी है। तुम क्यों रास्तों में रहो?” कह कर वह ज़ोर से हंसा और जस्सी भी हंसी रोक न पाई।

इस तरह कई बार कंवल उसके साथ प्रश्नोत्तर करता। पर अब उसकी आदत में अजीब सा चिड़चिड़ापन आ गया था। जस्सी इस बदलाव को महसूस कर रही थी।

“तुमने क्या सोचा है मेरे बारे में जस्सी…..?” अचानक एक दिन कंवल ने उसको पूछा।

“मैंने क्या सोचना है? तुम बहुत अच्छे इंसान हो। पढ़े-लिखे हो, अफ़सर हो। और मेरे अच्छे दोस्त हो….।” उसने हल्का-सा हंसते हुए कहा।

“बस और कुछ नहीं?”

“और क्या हो सकता है?”

“इतनी भोली मत बनो। मुझे मालूम है हम इस से बढ़कर भी हैं। एक-दूसरे के लिए….। मैं चाहता हूं कि हम अब शादी करवा लें। बहुत हो गया यह दोस्ती का नाटक।” वह तेज़ी से बोला।

जस्सी को कंवल से ऐसी उम्मीद न थी। उसने मौन न तोड़ा।

“मेरी बात का जवाब दो जस्स। मैं आज तुम्हारे साथ फ़ैसला करना चाहता हूं।” वह उसका हाथ पकड़ कर बोला।

“क्या कहूं? मैंने तो कभी शादी के बारे में सोचा ही नहीं। ख़ास तौर पर तुम्हारे साथ, जब तुमने पहले दिन ही कह दिया था कि हम दोस्त हैं। दोस्ती तो बहुत पाक रिश्ता है कंवल। जो बात कई बार हम खुद से नहीं कर पाते, दोस्त से करते हैं।”

“पर यह कैसी दोस्ती है मर्द और औरत की जिस में जिस्म का रिश्ता न हो?”

“यह भी क्या ख़ास शर्त है मर्द और औरत की दोस्ती की कि जिस्म का रिश्ता ज़रूरी हो?” जस्सी ने सवाल किया।

“मैंने तुम्हारे लिए बहुत समय बर्बाद किया है। जस्सी साल भर हो गया है मैं तुम्हारे लिए जल रहा हूं और तुम्हारे तक तपिश न पहुंची हो, यह कैसे हो सकता है?”

“अगर तुम जले हो तो मुझे पूछे और बताए बग़ैर जले हो कंवल। सच कहूं मैं नहीं सोचती कि तुम शादी के बाद मेरे साथ खुश रहोगे। मेरे लिए शादी अब सिरदर्दी के सिवा कुछ नहीं है। अब मैं किसी के अधीन नहीं रह सकती और शादी बहुत बड़ा समझौता है जिसमें आप बहुत सारे कानूनों के अधीन चलते हो।,” उसने स्पष्ट शब्दों में कहा।

“क्या अधीन रहने से तुम मेरी ग़ुलाम हो जाओगी?”

“सबसे बड़ी ग़ुलामी आर्थिक ग़ुलामी है कंवल, जब आप किसी के आगे हाथ फैलाते हो। इसी बिना पर मर्द औरत पर सदियों से रूल करता आ रहा है। और मेरा ख़्याल नहीं कि मैं इस तरफ़ से ग़ुलाम हूं या फिर सोच की ग़ुलामी होती है।” उसने अपने शब्दों पर दवाब डाला।

“वो कैसे?”

“जैसे आधी रात को शराब पी कर तुम कहो कि मेरे दोस्तों के लिए खाना बनाओ और मुझे उस वक़्त नींद आई हो….। मेरा ख़्याल नहीं कि मैं उस समय तुम्हारा आदेश मानूंगी।”

कंवल को जस्सी से ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। वह तो सोचता था शादी की बात सुनकर जस्सी कटी पतंग की भांति उसके क़दमों में आ गिरेगी।

“मुझे नहीं लगता कंवल अब मैं किसी घर में समा सकती हूं। ज़िन्दगी का ज़्यादा हिस्सा तो रास्तों में गुज़र गया। अब तो घर बसाने की हसरत भी नहीं रही। घर का सपना देखना मेरी आंखों ने कब का छोड़ दिया।” वह कुछ देर चुप रहने के बाद बोली।

वह ग़ुस्से में तिलमिला उठा। “घर में समा नहीं सकती? दरअसल जिसको जगह-जगह मुंह मारने की आदत पड़ जाए, वह एक जगह बंधना पसंद नहीं करती….। तुम क्या समझती हो तुम अकेली ही हो मेरी नज़र में। मेरे पास लड़कियों की बहुत बड़ी लिस्ट है।” वह अपने अपमान का बदला लेना चाहता था।

“और उस लिस्ट में मेरा नम्बर बहुत बाद में आता है….।” जस्सी ने घृणा से कंवल की ओर देखा। “कंवल मैं तुम्हारी बहुत इज़्ज़त करती हूं। मुझे अपना अपमान करने के लिए मजबूर मत करो। नंगे मत हो सामने….।” उसका खुद पर क़ाबू नहीं रहा था।

“नंगा न होऊं? क्या मतलब?”

“हां, ज़रूरी नहीं कि आप कपड़े उतार कर ही नंगे होते हो। कई बार आदमी सिर्फ़ अपने बोलने से नंगा हो जाता है, जब सभ्यता का लिबास उतार फेंकता है….।”

“तुमने कितने नंगे आदमी देखे हैं अब तक?,” कंवल ने व्यंग्य किया।

“मैंने तो अब तक ज़्यादातर नंगे आदमी ही देखे हैं और बहुत देखे हैं। कपड़ों में तमीज़ वाले आदमी उंगलियों पर ही गिने जा सकते हैं….।” कह कर वह कॉफी का ख़ाली प्याला ज़ोर से मेज़ पर पटक कर उठ खड़ी हुई थी।

और आज जब वह इंडिया से आई हुई चिट्ठी पढ़ती हुई अपने ख़्यालों की दुनियां में गुम थी तो कंवल उसको अकेली बैठा देख कर आ गया।

“क्या बात है? बहुत ज़्यादा नाराज़ हो गई तुम तो। चाय-पानी भी नहीं पूछती?” वह सामने की कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।

“नहीं, मेरा क्या अधिकार है तुम्हारे साथ नाराज़ होने का….।” जस्सी ने बात ख़त्म की।

“मैंने सोचा तुम्हें मना लूं। उस दिन की गर्मा-गर्मी के कारण ग़ुस्सा होगी।” जस्सी को लगा जैसे कंवल हारे हुए जुआरी की तरह उसको एक बाज़ी और खेलने के लिए कह रहा हो। यह सोचते ही उसको ज़हर चढ़ गया और उसने हाथ में पकड़ी चिट्ठी के टुकड़े-टुकड़े कर कॉफी के ख़ाली कप में डाल दी।

“किस की चिट्ठी है….?” कंवल ने उत्सुकता से पूछा।

“पता नहीं किसकी है। इंडिया से है किसी की।” वह बोली।

“तुम्हें पता नहीं किसकी है? तुम्हारे नाम पर आई है।” वह हैरान हुआ।

“तुम्हारे जैसा है कोई मेरा नया आशिक पैदा हुआ। मुझे ‘ख़ाली प्लाट’ समझकर अपना क़ब्ज़ा करना चाहता है। कहां-कहां निशाने लगाते हैं लोग….।” जस्सी ने नफ़रत से नाक इधर-उधर घुमाई।

“ख़ाली प्लाट? तुम ख़ाली प्लाट हो जस्सी…. ?,” कंवल को कुछ समझ न आया।

“मैं क्या, दुनियां की हर अकेली औरत चाहे कहीं भी रहती हो, ख़ाली प्लाट जैसी है, जिस पर हर मर्द अपनी नेम प्लेट लगाना चाहता है, क़ब्ज़ा करना चाहता है….,” कह कर उसने पर्स उठाया और बाहर को चल पड़ी। कंवल कभी दूर जाती जस्सी की ओर देखता तो कभी कप में पड़े चिट्ठी के टुकड़ों की ओर।

 

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