-सुमन कुमारी

आज नारी ने समाज में एक विशेष स्थान हासिल कर लिया है। मर्द के साथ कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में इसने अपना मुक़ाम हासिल कर लिया है। घर की ज़िम्मेदारियों को कुशलता पूर्वक उठाने वाली नारी ने देश की बहुुत सारी ज़िम्मेदारियों को भी आज अपने हाथों में लिया है। राजनीतिक क्षेत्र हो या पत्रकारिता हर क्षेत्र में उसने अपनी ख़ास जगह स्थापित कर ली है। देश की सीमाओं की रक्षा के लिए हाथ में बंदूक पकड़ ली है। कोई भी क्षेत्र हो लड़कियां, लड़कों से आगे हैं।

नारी ‘सशक्तिकरण दिवस’ हर साल मनाया जाता है। स्कूलों, कॉलेजों में विभिन्न आयोजन करवाए जाते हैंं। भले ही नारी ने अपना मुक़ाम हासिल कर लिया है। पर फिर भी हमारा समाज उसके आगे रुकावट बनता है। उसे आगे बढ़ने के लिए रुकावटों का सामना करना पड़ता है। दिन-ब-दिन औरत पर हो रहे अत्याचारों ने दिल दहला दिया है। मासूम बच्चियों, महिलाओं के साथ बलात्कार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसी घटनाओं का शिकार बनी औरतें हमेशा के लिए मानसिक रोगी बन जाती हैं। दहेेज न लाने पर जला दिया जाता है। पैसे ऐंठने के नए-नए ढंग अपनाए जाते हैं। औरतों को तरह-तरह से शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। हमारा ‘महिला सशक्तिकरण दिवस’ मनाया जाना तभी सफल हो सकता है जब किसी भी औरत को समाज द्वारा किसी भी प्रकार के शोषण का शिकार न होना पड़े।

लड़कों के मुक़ाबले लड़कियां हर क्षेत्र में आगे हैं। लेकिन ज़्यादातर लड़कियों को खिलने से पहले ही मसल दिया जाता है। औरत त्याग की मूर्ति है, जन्म के बाद माता-पिता के घर में अपनी इच्छाओं का त्याग करती है। शादी के बाद पति के घर में औरत की मदद के लिए कोई हाथ नहीं बढ़ाता। उस के दर्द समझने की बजाए उसे गुमनामी के अंधेरों में धकेेल दिया जाता है। पता नहीं समाज औरत को उसका संपूर्ण अधिकार क्यों नहीं देता।

फ़िल्म ‘लज्जा’ जो कि बाक्स ऑफ़िस पर हिट न हो सकी में औरत के हर पहलू, जन्म से वृद्ध अवस्था तक की परेशानियों को बखूबी दिखाया गया है। जन्म लेते ही उसे मारने की कोशिश की जाती है। शादी पर दहेज की मांग पूरी न करने पर बारात वापिस ले जाने की धमकी दी जाती है। वृद्ध अवस्था तक मर्द औरत को दबोचने से झिझक नहीं करता।

पढ़ी-लिखी औरतों को भी कई बार समाज के बनाए घटिया नियमों का पालन करना पड़ता है। समाज, जो औरत को देवी, मां, ममता की मूर्त कहता है उसी का दूसरा रूप अति भयानक है।

बाल-विवाह जैसा कलंक आज भी हमारे समाज में व्याप्त है। कुछ वर्ष पूूूूर्व पंजाब के संगरूर ज़िले केे गांव में तेरह साल की नाबालिग लड़की का पैंतीस-चालीस साल के व्यक्ति से विवाह का मामला सामने आया था। बच्ची के दादा ने अपने पुत्र के ख़िलाफ़ केस दर्ज करवाया था। यदा कदा आज भी ऐसी घटनाएं सामने आ जाती है। औरतों पर ज़ुल्म लगातार हो रहा है।

स्कैनिंग का उद्देश्य कुछ और था पर उसे भी स्त्री को ख़त्म करने के लिए अपनाया गया। लिंग का पता करके न जाने कितनी लड़कियों को मार दिया जाता है। भ्रूण हत्याओं के इस दौर ने औरतों की गिनती को मर्दों के मुक़ाबले कम कर दिया। सरकार द्वारा भ्रूण हत्याएं रोकने के लिए कड़े क़दम उठाए जा रहे हैंं। पर फिर भी कहीं न कहीं समाज औरतों के अस्तित्व को ख़त्म करने पर तुला है।

स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करना जितना एक मर्द का हक़ है उतना ही औरत का भी है। ज़रूरत है जागरूकता की, ‘नारी सशक्तिकरण दिवस’ पर नारी की मुश्किलों को दूर करने की ज़रूरत है ऐसे अभियान की जिसमें औरत की मुश्किलों को दूर किया जाए। उनको अधिकारों के बारे में जागरूक करना होगा।

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