जो हम पाना चाहें वही मिल जाए ये ज़रूरी तो नहीं और जो हमें मिल जाए उसे हम चाहने लगें ऐसा होता ही नहीं। जिसे हम चाहते हों उसे पा लें यह ज़रूरी तो नहीं और जिसे हम पा सकें उसे ही अपना लें ऐसा होता ही नहीं ।
फिर भी हम जी तो पाते हैं। तब भी चाहतें दिलों पर दस्तक तो देती ही हैं। फिर भी हम आशाएं तो रखते ही हैं। यह ही तो ज़िन्दगी है। हर हाल में ज़िन्दगी को तो चलते ही जाना है। अपने नए रास्ते तलाशते हुए। कुछ छूटता जाता है तो कुछ मिलता जाता है। ज़िन्दगी जीने के लिए खुद-ब-खुद नए रास्ते तलाशती है। और ज़िन्दगी के नए मायने हमें मिलते रहते हैं। हर मोड़ पर हम ज़िन्दगी से नए रूप में मिलते हैं।
हमें जिस भी हाल में मिले ज़िन्दगी उसी हाल में जीना सीखना होता है। ज़िन्दगी को खुद अपनी कोशिशों से खूबसूरत बनाना होता है। हर गुज़रे कल से सीखते हुए नए अफ़साने बनाने होते हैं।
कभी कहा था किसी ने किसी से “अपने अफ़सानों में से एक नग़मा मुझे दे दे। मैं गाना चाहता हूं।’’ जवाब मिला था “खुद को अफ़साना बना, आंच में तपा, खुद तरस के देख, तड़प के देख। यूं किसी के नग़मे चुराए नहीं जाते यूं किसी के नग़मे गुनगुनाए नहीं जाते। ज़िन्दगी गुज़ार न, जी के देख।’’ हर दर्द, हर तड़प को जीना ज़रूरी है। यही ज़िन्दगी की मुक़म्मलता है। आग से डर के दूर ही बैठे रहे तो किसी से सेक उधार मांगोगे? नहीं ले सकोगे उधार का सेक। सोचोगे तो मेरी बात को मानोगे ज़रूर। हम में से सभी ने कभी न कभी, कहीं न कहीं तो हाथ, बांह या पैर जलाया था। तभी तो हमें पता चला था जलने के दर्द का मतलब। ऐसी बहुत-सी बातें तो हम बचपन में ही जान गए थे जो अभी बताना भी नहीं चाहते थे हमारे मां-बाप या हमारे संरक्षक।
आंच से डरोगे, हादसों से सदा बचते रहोगे तो नहीं जान पाओगे ज़िंदगी के अर्थ। क़दम उठाओगे तो चल पाओगे। गिरने के डर से खड़े नहीं रह सकते। गिर-गिर कर ही सीख पाए थे चलना। पर जैसे-जैसे ज़िंदगी को समझते गए क्यूं रोकते रहे खुद को। यह नहीं करना वह नहीं करना। अगर ठीक से न कर पाए तो कोई क्या कहेगा। ऐसी कितनी ही बातें हमारे रास्ते रोकती रहती हैं। मुझे खुद भी कई बार ऐसी बातों ने रोका है। पर ऐसी रुकावटों को पार तो करना ही पड़ेगा। चलने वाले के रास्ते में रुकावटें डालने को तो दुनिया तत्पर ही रहती है लेकिन जब मंज़िल स्पष्ट हो रास्तों पे पैनी निगाह हो कुछ कर गुज़रने का हौसला हो तो कौन रोक सकता है चलने वालों को। सदा चलते रहना ज़िंदगी का दस्तूर है। हर हादसा, हर रुकावट कुछ न कुछ सिखा के जाती है। जो इनसे सीख पाते हैं वही तो जी पाते हैं। जान पाते हैं, पहचान पाते हैं, ज़िंदगी को। और जो शिद्दत से जीने की कोशिश करते हैं उनकी ज़िंदगी एक न एक दिन गुनगुनाती तो ज़रूर है।
तेरे अफ़सानों में ज़िंदगी गुनगुनाने लगे
ऐसी चाल तू चल कि वो गाने लगे।
-सिमरन