-दीप ज़ीरवी

ईश्‍वर के चरण, भगवद्प्रसाद इत्यादि अलंकारों से सुसज्जित माता-पिता जिन के कारण औलाद संसार में आती है, दुनियां देखती है, दुनियादारी सीखती है। वह मां-बाप जिन की दुनियां उनके बच्चे होते हैं उनके बच्चों से दुनियां होती है उनकी।

बहुतेरे मां-बाप बेटा हो अथवा बेटी वो अपने प्रत्येक बच्चे को अनूठा प्यार और दुलार देकर पालते पोसते हैं शिक्षित करते हैं। यदि मां-बाप के आंगन में सात-सात संतानें भी हों तो भी उन का भरण पोषण करते हैं। मां-बाप उंगली पकड़ कर चलना सिखाते हैं, बोलना बतियाना सिखाते है अपना सारा लाड़ लुटाते हैं एवज़ में पाते क्या हैं??!! सोचिए सोचने का विषय है।
एवज़ में पाते हैं दुत्कार अपमान। एकाकी जीवन जीने का श्राप ढोते हैं यह वृद्ध मां-बाप।
जिन बच्चों को प्रयत्नपूर्वक बोलना सिखाया होता है वही बच्चे बड़े होकर मां-बाप को चुप बैठने की हिदायत देते मिलते हैं।
जिन बच्चों को मां-बाप ने चलना सिखाया होता है वही बच्चे अपने मां-बाप को टिक कर बैठने की नसीहत करते मिलेंगे। केवल जनरेश्‍ान गैप ही नहीं इसके लिए केवल बच्चे ही नहीं, केवल मां-बाप ही नहीं वरन् कुछ हद तक यह तीनों ही ज़िम्मेदार हैं।

सर्वप्रथम स्थान पर रहती है संवाद हीनता। संवाद के न होने से कई भ्रांतियां जन्म ले लेती हैं। जिसका अंत अलगाव अथवा मनमुटाव होता है। यह बुढ़ापे की बेला, जीवन का अंतिम छोर कष्टप्रद हो जाये तो कहां जाएं क्या करें बूढ़े।।

अहम् के टकराव से अंकुरित कलह शनै-शनै बढ़ता है शैशव यौवन ग्रहण करता है, यौवन बुढ़ापे की ओर अग्रसर होता है। कलह पनपता है, फैलता है, अमर बेल की तरह छा जाता है घर की एकात्मता पर। बूढ़े अपनी जगह क़ायम रहते है। हमने दुनियां देखी है। युवा की कथनी भी अकाट्य रहती है। हमारी दुनियां आप की दुनियां से न्यारी है।

एक के पास जीवन-पाठ की पूंजी होती है तो दूसरे के पास अत्याधुनिक उपकरणों युक्त शिक्षा डिग्री होती है। अपनी-अपनी बुद्धि को दोनों खरा मानते है झुकने को कोई तत्पर नहीं रहता परिणाम टूटन ही निकलता है।

समस्या गंभीर है किन्तु यक्ष-प्रश्‍न यह है कि यह ‘यौवन पीड़ित बुढ़ापा’ क्या करे कहां जाये?? कदाचित् इसका हल भी ‘बुढ़ापे’ को स्वयं करना पड़ेगा।
टूटन अथवा अलगाव किसी भी परिवार समाज अथवा राज्य के लिए मारक है यथा संभव टूटन और अलगाव से किनारा ही करना चाहिए यह कार्य अनुभवी बुढ़ापा कर सकता है। यदि कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखा जाये तो ‘बुढ़ापा’ सुरक्षित रह सकता है टूटन और अलगाव से।
-अपने जीते जी अपनी जायदाद का बटवारा न किया जाये, हां वसीयत कर के किसी विश्‍वास पात्र के पास रख दी जाये।
-अपनी बोल वाणी में मिठास रखी जाये जिससे कि आपको कटखना समझने की भ्रांति न हो।
-अपने फैसले ठोसने से यथा संभव गुरेज रखा जाये।
-आप बड़े हो बूढ़े हो यह जताने की आवश्यकता नहीं होती।
-अपने प्रति विश्‍वास बनाएं सब आपके प्रति विश्‍वास बनाएंगे।
-बिना मांगे कभी भी किसी को भी मशवरा न दें।
-अपने बच्चों को बता कर कहें कि आप उन से प्यार करते हैं।
-अपने बच्चों को बचपन में बचपन, यौवन में यौवन पाने दें उन को समझें तब समझाएं।
-अपने बच्चों की बातों को व्यर्थ कहकर न टालें।
-अपनी छोटी-छोटी खुशियां अपने बच्चों में बांट कर उन्हें खुशियां बांटना सिखाएं।
-हर कार्य में बच्चों की सलाह को उचित सम्मान दें। फिर देखें।

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