-रीना चेची ‘बेचैन’

जैसे एक छोटे से पौधे को पेड़ बनाने के लिए उसे उचित मात्रा में खाद, पानी की समय-समय पर ज़रूरत पड़ती है। ठीक उसी प्रकार एक बच्चे को अच्छा, मेहनती, सच्चा, ईमानदार एवं शरीफ़ इन्सान बनाने के लिए उसकी परवरिश, मां-बाप का प्यार एवं घर का माहौल आदि का विशेष हाथ होता है।

बचपन उस कच्ची मिट्टी के समान है जिसे आप जिस रूप में ढालना चाहें, ढाल सकते हैं। अब आप ही सोच लें कि आप अपने बच्चे को क्या बनाना या सिखाना चाहते हैं? सिपाही, अध्यापक, डॉक्टर या डाकू क्योंकि इस उम्र में सीखे काम का असर ताउम्र रहता है। पेशे से चोर एक शख़्स ने जब यह बताया कि वह एक बहुत अमीर परिवार से है तो बड़ी हैरानी हुई। बचपन से अब तक मम्मी-पापा को वक़्त-बेवक़्त लड़ते-झगड़ते देखता आया हूं। पापा-मम्मी दोनों ही अपना ग़ुस्सा मुझ पर उतारते थे। एक दिन तंग आकर घर छोड़कर भाग गया जिस कारण मजबूरन चोर बनना पड़ा, अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए।

संदीप जो एक बहुत ही ग़रीब परिवार के ताल्लुक़ रखता है। आज सी. आर. पी. एफ. में कार्यरत है। मां-बाप अनपढ़ हैं, लेकिन उन्होंने उसे भरपूर प्यार दिया, क़दम-क़दम पर साथ दिया। उसकी परवरिश अच्छे ढंग से हुई।

अच्छी परवरिश और अच्छे संस्कार यदि बच्चे को शुरू से ही दिए जाएं तो वे बड़े होकर ग़लत रास्ता अपनाने की भूल कभी नहीं कर सकते। पारिवारिक क्लेश व सामाजिक स्वीकृति का अभाव भी युवाओं को अक्सर राह से भटका देता है और वे अपराधी बन जाते हैं। ऐसे बच्चे जिनमें प्रतिभा तथा ऊर्जा की कोई कमी नहीं होती, पर उनकी प्रतिभा को सही दिशा नहीं मिल पाती तो वे ही ख़तरनाक अपराधी बनकर समाज के सामने आते हैं।

ऐशो-आराम से लबरेज़ ज़िंदगी जीना भी युवा वर्ग को ग़लत रास्ते अपनाने को मजबूर कर देता है। भावनात्मक असुरक्षा तथा ग्लैमरस ज़िंदगी की चाहत ही युवाओं को अपराध की दुनियां की ओर ले जा रही है। समय रहते इस पर अंकुश लगाना होगा, वरना भविष्य के बुरे परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।

बच्चों से कोई भी बात छुपानी नहीं चाहिए। जितना खुला व्यवहार होगा, बच्चे अपने को भी उतना ही खोल पायेंगे। मां-बाप को हमेशा अपने बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए। नौकरी पेशा मां-बाप को चाहिए हर रोज़ थोड़ा-सा समय निकाल कर बच्चों से बात करें। बच्चे क्या चाहते हैं, यह भी सुनना चाहिए। अगर आप ऐसा करेंगे तो आपका बच्चा संस्कारवान एवं आज्ञाकारी बनेगा।

मौलिक ज़रूरत है कि मां-बाप व बच्चों के बीच आपसी समझ, सम्प्रेषण व स्नेह का तार जुड़ा रहे। सुनना, समय पर कहना व भाषण न देना ज़रूरी है ताकि बच्चों पर प्रभाव पड़े व असर हो। वे अपने से बड़ों के कहे हुए काम को भी ख़ास महत्त्व दे सकें।

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