-डॉ. संत कुमार टण्डन “रसिक”

अनीता की शादी में मां-बाप ने हैसियत से बढ़ कर दिया था दहेज, पर ससुराल जाकर वह तानों की बौछार से त्रस्त हो गई। जब सास-ससुर, जेठ-जेठानी, ननद-देवर घर के सदस्य ही ताने मारते तो अन्य सम्बन्धी-पड़ोसी क्यों नहीं। अनीता घुट-घुट कर रहती, छुप-छुप कर रोती और आंसू पी जाती। पति जयन्त को अच्छा न लगता, सहानुभूति से भर जाता, हमदर्द बनता, समझता पर परिजनों का विरोध न कर पाता। दबी ज़ुबान कुछ कहता कभी तो असर कहां? “अनीता, सब्र करो। मैं तो कुछ नहीं कहता न। कुछ करुंगा, धैर्य रखो। परिवार में बिगाड़-कलह नहीं करना चाहता।” जयन्त जब-तब कह देता। अनीता पर ज़ुल्म कुछ बढ़ गए। दिन रात घर के काम में जूझती रहती, फिर भी सास से पिट जाती।

पहली विदा पर मां के घर गई तो पीड़ा सुना दी। “मैं अब वहां नहीं लौटूंगी।” अनीता ने कहा। उसे समझाया गया, “जयन्त को तो कोई शिकायत नहीं। तुझे प्यार करता है। सब ठीक हो जाएगा धीरे-धीरे। चिन्ता मत कर।” सब सुनने के बाद माता-पिता कहते “कैसे रखें ब्याही बेटी को घर।” पहली बिदा के बाद दोबारा अनीता ससुराल गई तो उसके प्रति व्यवहार बद से बदतर होने लगा।

एक दिन वह पति से बोली, “अपना हिस्सा ले कर अलग हो जाओ। किराए के मकान में रह लूंगी। यहां नहीं रह सकती।” जयन्त बोला, “बदनामी होगी ऐसा कुछ करने से। सब्र करो, मैं कोशिश करता हूं, अपना ट्रांसफर करा लूं कहीं और। निजात मिल जाएगी तक़लीफ़ों से।” जयन्त प्रयत्न करता रहा। डेढ़ वर्ष हो गए पर उसका ट्रांसफर न हो सका। अनीता बराबर दुख झेलती रही। अब तो शरीर पर भी घाव हो गए थे, जो मन पर थे। अनीता को लगा, ससुराल वाले उससे मुक्ति चाहते हैं ताकि जयन्त का दूसरा विवाह कर सकें। लोग उसे मार डालेंगे। उसने माता-पिता से बार-बार फ़ोन कर कहा, पत्र लिखे, जब गई तब कहा पर बराबर यही सुनती, “धैर्य रख, सब ठीक हो जाएगा।”

कष्ट सीमा से परे हो गए थे और एक दिन पंखे से झूल कर अनीता ने भगवान् के घर जाने का फ़ैसला कर लिया। मन का सोचा कर बैठी। बात छिप न सकी। जयन्त ने स्वयं पुलिस में रिपोर्ट की। अनीता का सुसाइड नोट पुलिस को दे दिया। जयन्त के माता-पिता जेल पहुंच गए। केस में जयन्त ने स्वयं पहल की। काश! अनीता के माता-पिता ने उसे शरण दे दी होती, ऐसा क्यों होता? भगवान् के घर क्यों जाती?

 

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