-लीना कपूर

वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट, वाशिंगटन के एक अध्ययन के अनुसार दक्षिण एशिया के भारतीय उपमहाद्वीपों के देशों- भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की होने वाली मौतों की संख्या एड्स से होने वाली मौतों की तुलना में दस गुणा अधिक है। इंस्टीट्यूट की वरिष्ठ शोधकर्ता के अनुसार विकासशील देशों में यद्यपि शिशु मृत्यु दर पर रोक और परिवार नियोजन के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। परन्तु महिलाओं के सामान्य स्वास्थ्य पर विशेष ज़ोर नहीं दिया जा रहा है। इन दक्षिण के देशों में गर्भावस्था और शिशु के जन्म के दौरान होने वाली महिला मौतों की संख्या पिछले एक दशक में दुगुनी हो गई। इन मौतों के प्रमुख कारणों में कुपोषण, रक्त-अल्पता, असुरक्षित गर्भपात, गर्भवती महिलाओं का बुरा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण कार्यक्रमों की कमी प्रमुख हैं।

ग़रीबी, निरक्षरता और प्रसव पूर्व और बाद में महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण का अभाव एड्स समस्या का मूल कारण है। भारत में किसी एक गांव के सर्वेक्षण के बाद पता चला कि महिला मृत्यु के तमाम कारणों में गर्भपात के दौरान होने वाली बीमारियां ही मुख्य कारण हैं। इसके अलावा असुरक्षित गर्भपात के दौरान खून बह जाने से तीस प्रतिशत महिलाएं तन्जानिया, इथोपिया और जाम्बिया में मर जाती हैं। यदि इस प्रकार की होने वाली मृत्यु दर में कमी लानी है तो तीसरी दुनियां के देशों को परिवार कल्याण कार्यक्रम में प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। इन देशों की सरकारों को स्वयं सेवी संस्थाओं को बढ़ावा देना चाहिए ताकि वे चेतना जागृति का कार्य कर सकें।

उच्च कोटि की स्वास्थ्य सेवाएं, घर से इन स्वास्थ्य सेवाओं की निकटता आदि पर भी बल दिया जाना ज़रूरी है। गर्भावस्था या प्रसव के समय होने वाली महिला की मृत्यु से पूरा परिवार छिन्न-भिन्न हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की चार मौतों में से दक्षिण एशिया के देशों में एक मौत प्रसव के दौरान होती है। इन कारणों में खून बह जाना, टोक्सेमिया और संक्रमण प्रमुख हैं। इन देशों में पांच लाख महिलाओं की मौत असुरक्षित गर्भपात से होती है।

बाल विवाह और अल्पायु में गर्भधारण से होने वाली परेशानियां भी कम नहीं हैं। इनसे किशोरियों के शारीरिक विकास में बाधा पड़ती है और कुपोषण और रक्त अल्पता के कारण अनेक और रोग हो जाते हैं। बांग्लादेश में औसत विवाह आयु बालिकाओं की ग्यारह दशमलव छः वर्ष आंकी गई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि गर्भधारण के समय माता का वजन बारह दशमलव पांच किलो बढ़ जाना चाहिए परन्तु निर्धनता और निरक्षरता के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाता और ऐसी किशोरियां माता बन जाती हैं जो कि शारीरिक, मानसिक और सामाजिक, आर्थिक रूप से शिशु संभालने के लिए पूरी तरह समक्ष नहीं होती। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ‘मानव संसाधन’ रिपोर्ट में भी कहा गया था कि मानव विकास के प्रमुख आधार – स्वास्थ्य, आहार शिक्षा, महिला जागृति और पूर्ण विकास में विकासशील देशों की कुल आय का केवल बारहवां अंश ही ख़र्च होता है जबकि कम से कम कुल वार्षिक आय की एक तिहाई आय इन पर ख़र्च होनी चाहिए।

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