विवाह एक ऐसा संस्कार है जो केवल दो दिलों को ही नहीं मिलाता बल्कि दो परिवारों को भी बांधता है। लड़के और लड़की के नए रिश्ते बनते हैं। यह रिश्ते इतने नाज़ुक होते हैं कि इन्हें निभाने के लिए बहुत सूझबूझ से काम लेना चाहिए। हालांकि शादी के बाद लड़का और लड़की दोनों के नए रिश्ते बनते हैं लेकिन क्योंकि लड़की को नए घर में जाना होता है इसलिए उसके रिश्ते अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।

यहां पर यह बात ध्यान देने की है कि नए घर में नए लोगों से व्यवहार करते वक्‍़त जितना लड़की को समझदारी से काम लेना है उससे अधिक नए घर के लोगों को ध्यान देना है क्योंकि लड़की अपने घर परिवार को छोड़ कर बिल्कुल नए माहौल में आई है। लड़की को चाहिए कि वो सास-ससुर की बेटी बने, बहू नहीं। लेकिन यह तो तभी सम्भव है यदि सास-ससुर भी उसे बेटी मानेंगे। आमतौर पर देखने में आया है कि सास को बहू में कमियां दिखती हैं तो बहू को सास में कमियां दिखाई देती हैं। और ऐसे ही छोटी-छोटी बातों से कई बार तनाव बहुत बढ़ जाता है। हालांकि इसका ज़्यादा प्रभाव तो बहू पर ही पड़ता है, उसकी ज़िन्दगी दूभर हो जाती है, बात तलाक़ तक भी पहुंच सकती है और तनाव ज़्यादा बढ़ने पर कई बार आत्महत्या तक का क़दम उठा लेती है जिससे ससुराल वालों को बदनामी सहन करनी पड़ती है व साथ ही कानूनी उलझनों का भी सामना करना पड़ता है।

सास-ससुर के अलावा और भी परिवार के सदस्यों से तालमेल बैठाना होता है। ऐसा ही एक नाज़ुक रिश्ता है देवरानी-जेठानी का। आमतौर पर देखा जाता है कि जेठानी की इच्छा होती है कि देवरानी उसके अनुसार चले। जब तक देवरानी उसकी बात मानती है तब तक तो ठीक है लेकिन जैसे ही उसके अधिकारों की बात आती है दोनों में टकराव पैदा हो जाता है। फिर छोटी-छोटी बातों पर तकरार शुरू हो जाती है और घर में माहौल बहुत बिगड़ जाता है। लेकिन सिर्फ़ जेठानी को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कई मामलों में देवरानी भी बराबर की दोषी होती है। वह जेठानी को सम्मान नहीं देती। उसे जेठानी की हर अच्छी बात भी बुरी लगती है। सो यह तो मानना पड़ेगा कि कई मामलों में जेठानी तो कई में देवरानी दोषी होती है।

शादी के साथ एक और ऐसा रिश्ता बनता है जिसमें अक्सर तनाव का डर रहता है। यह रिश्ता है ननद भाभी का। समय के साथ रिश्तों में परिवर्तन आया है। पहले बहू घर में सभी से दबती थी। वह सब का बुरा व्यवहार भी चुपचाप सहती थी और उसकी सहनशीलता को देखते हुए सभी के दिल में स्नेह जागता था। लेकिन आज की शिक्षित बहू दबना तो नहीं जानती जो कि शायद ठीक भी नहीं। लेकिन उसे शिक्षा मिलती है सिर्फ़ पति को मुट्ठी में रखने की। ससुराल में अन्य सदस्यों के साथ वो जुड़ना पसंद नहीं करती। भाई भी शादी के बाद बहन की तरफ़ ध्यान नहीं दे पाता। बहन इस परिवर्तन से हताहत होती है और उसमें बदले की भावना जन्म लेती है। भाभी के मायके वालों का और स्वयं भाभी का भी जगह-जगह मज़ाक उड़ाती है। भाई की अपेक्षा का रोना भी यहां-वहां रोती रहती है। मां भी बेटी का ही पक्ष लेती है। हालांकि ननद सदा बुरी नहीं होती, केवल अपनी भावनाओं के वश में आकर ही वो ऐसे काम कर बैठती है। इसी प्रकार भाभी भी सदा बुरी नहीं होती आख़िर वो भी तो किसी की बहन होती है। कई बार ननद ही भाई के बढ़ गए दायित्वों को न समझते हुए नासमझी में भाभी का दिल दुखाती है। जिससे नए घर में स्नेह न मिल पाने के कारण लड़की उचाट हो जाती है। इस प्रकार किसी को हम बुरा न कहते हुए यही कहेंगे कि केवल आपसी समझ की कमी ही ऐसे व्यवहार के लिए प्रेरित करती है।

इसी प्रकार देवर जेठ को ठीक सम्मान न मिल पाने से जहां उनके दिल में कड़वाहट पैदा होती है, वहीं देवर जेठ की तरफ़ से पूरा सम्मान न मिल पाने के कारण नई दुल्हन भी घर में ठीक से सामंजस्य नहीं बैठा पाती और उसके दिल में अलग होने की इच्छा घर कर जाती है। इसी प्रकार नई दुल्हन से देवर जेठ के बच्चों को भी पूरा प्यार न मिलने के कारण या ज़्यादा रोकटोक के कारण वो दूर हट जाते हैं। हालांकि बच्चों से तो कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए, लेकिन फिर भी उनको लड़की के साथ व्यवहार करने की ठीक सीख न मिलने पर कई बार माहौल बिगड़ जाता है।

इस प्रकार नए रिश्ते बनाते वक़्त छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने पर घर परिवार सुखी रह सकता है। इसके लिए दोनों ही पक्षों को अपने तौर तरीक़े बदलने की आवश्यकता है। घर के लोगों को चाहिए कि वो ऐसा व्यवहार अपनाएं कि लड़की नए घर में ठीक से सामंजस्य बैठा सके। सास-ससुर को आधुनिक संदर्भ में सोच विचार करते हुए अपनी पुरानी विचारधारा को बदलना होगा। अपने बेटे पर अपना आधिपत्य कम करना होगा। बहू को वही जगह देनी होगी जो आप अपनी बेटी को देते हैं। जिस प्रकार बेटी की छोटी-छोटी ग़ल्तियों को नज़र अंदाज़ करते हैं उसी प्रकार बहू की ग़ल्तियों को भी तूल न दें। बहू का बेटी से झगड़ा होने पर बेटी का पक्ष न लें। ननद को भी अपनी भाभी की भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए। उसे समझना चाहिए कि भाई के दायित्व बढ़ गए हैं इस लिए वह उससे अपनी अपेक्षाएं कम कर दे। भाभी से यदि मधुर संबंध बनेंगे तभी उसके भाई के साथ मधुर संबंध रह पाएंगे। ननद द्वारा भाभी को दिखाया जाने वाला स्नेह लौटाया न जाए ऐसा कम ही होता है।

जेठानी को भी घर का वातावरण मधुर रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। उसने बड़ी होने के नाते ससुरालवालों को अच्छी प्रकार से समझा होता है। उसे देवरानी को भी सभी सदस्यों के स्वभाव, पसंद, नापसंद से परिचित कराना चाहिए। उसे चाहिए कि वह जितना महत्त्व देवर को देती है उतना ही देवरानी को भी दे। उसके सुख-दु:ख में पूरा सहयोग देना चाहिए। इसी प्रकार देवर जेठ को भी चाहिए कि उसे पूरा सम्मान दें। जहां जेठ को अपनी सीमा में रहते हुए ही उससे व्यवहार करना होता है वहीं देवर को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शरारतें करते वक़्त वो सीमाएं न लांघे। इसी प्रकार घर में छोटे बच्चों को भी बहू के साथ ठीक व्यवहार करना सिखाएं। यदि वो उसके साथ कोई ग़लत व्यवहार कर बैठें तो उन्हें टोकने से परहेज़ न करें। यदि घर के सारे सदस्य अपने व्यवहार को संतुलित कर लेंगे तो नई आने वाली लड़की को वहां सामंजस्य बैठाना मुश्किल न होगा।

लेकिन जिस प्रकार नए घर के सभी लोगों को ऐसी बातों का ध्यान रखना है उसी प्रकार नई बहू को भी कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना होगा। उसे नए घर में प्रवेश करते वक़्त ही मन में यह भावना बनानी चाहिए कि उसने सास-ससुर की बेटी बन कर रहना है। ध्यान रहे कोई भी बेटी नए घर में सामंजस्य तभी स्थापित कर सकती है जब उसकी शादी शारीरिक एवं मानसिक परिपक्व अवस्था में की जाए तथा उसकी शिक्षा-दीक्षा उचित ढंग से हो। उसे उचित-अनुचित का ज्ञान कराया गया हो। बहू को अपने चारित्रिक एवं व्यवहारिक पक्ष को सदैव सुदृढ़ एवं स्पष्ट बनाए रखना चाहिए। सहनशीलता, धैर्य व मधुरता जैसे गुण अपनाने चाहिए। नए घर के तौर तरीक़े देखते हुए अपनी आदतें बदलने का प्रयत्न करना चाहिए। ननद से व्यवहार करते वक़्त उसे चाहिए कि अपने भाई से संबंध दृष्ट‍ि में रखकर ही अपनी ननद के अपने पति से रिश्ते को देखे। ससुराल के नए माहौल में ननद के रूप में आपको नई सहेली मिल जाती है जिसे आप अपनी हमराज़ बना सकती हैं। इस तरह ननद भाभी के मधुर रिश्ते की मिठास सारे परिवार में खुशी भर देगी। दोनों ही तरफ़ से आवश्यकता है अपनेपन, ईमानदारी, सामंजस्य और समझौते जैसी भावनाओं की। इसी प्रकार बहू को चाहिए कि वो अपना देवरानी होने का फ़र्ज़ भी भली-भांति निभाए। जेठानी के अनुभव से उसे सीखने का प्रयत्‍न करना चाहिए। उसके सुख-दु:ख में काम आना चाहिए। उसे पूरा सम्मान देना चाहिए। यदि वह आपको पूरा स्नेह देती है तो आपको भी चाहिए कि हर काम करने से पहले उसकी सलाह लें। इसी प्रकार आपको चाहिए कि जेठ को भी पूरा सम्मान दें। देवर की शरारतों से चिढ़ने की बजाय आप हंसी खुशी का वातावरण बनाएं। छोटे बच्चों को भी पूरा स्नेह दें।

इस प्रकार यदि सभी अपनी-अपनी ज़िम्मेवारी को समझते हुए छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो शीघ्र ही अपने घर में स्वर्ग-सा वातावरण बना लेंगे।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*