प्रकृति की रचना कितनी अजीब है कि हमारी धरती तीन ओर से पानी में घिरी है मगर फिर भी प्यासी की प्यासी है। मनुष्य, जीव-जन्तुओं और वनस्पति को जीवित रहने के लिए पानी की अति आवश्यकता है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में पानी की अहम भूमिका है। मनुष्य तथा अन्य जीवों की संरचना में पानी की ही बहुलता पाई जाती है। यही कारण है कि संसार भर की सभ्यताओं को पानी ने जन्म दिया है चाहे वह सिन्ध नदी की, सिन्धु घाटी की सभ्यता हो या व्हांग हो, यांगत्सीक्यांग चीन की नदियों पर पनपने वाली चीन की सभ्यता हो। अफ्रीका की नील नदी और योरुप की नदियों का सभ्यताओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। पूरे ब्रह्मांड में पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां पर पानी मिलता है, अन्य ग्रहों पर पानी का अभाव है, यदि पृथ्वी पर से पानी ग़ायब हो गया तो अन्य ग्रहों की तरह इस पर भी जीवन की प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी। पानी के बिना सजीव वस्तुओं का अस्तित्त्व क़ायम नहीं रह सकेगा। पानी वह अमृत है जो पूरी सृष्टि को जीवन धारा में बांधे हुए हैं। परन्तु आज के वैज्ञानिक युग में जब कि मेडीकल साईंस और औद्योगिक क्रान्ति ने मनुष्य की काया पलट कर दी है। मनुष्य की मृत्यु दर में कमी के कारण संसार भर की जनसंख्या में इतनी वृद्धि हुई है कि पानी पीने और उपयोग में लाने के लिए प्रतिदिन कठिनाइयों में वृद्धि हो रही है।

शहरीकरण और बड़ी-बड़ी बस्तियों के निर्माण में जंगलों की अन्धाधुन्ध कटाई हुई है। घरों में लकड़ी केे उपयोग की अधिक मात्रा ने जंगलों का सफ़ाया कर दिया है। वर्षा की कमी के कारण नदियों, झीलों तथा नालों का पानी सूख गया है। वाटर सप्लाई की योजनाओं के होते हुए भी पानी की इतनी क़िल्लत है कि शुद्ध पानी का मिलना असम्भव हो गया है। पानी के प्राकृतिक चक्कर को समुद्र से उठने वाली पवनें जो मानसून बन कर धरती पर बरसती थी, अब तो वह भी रूठने लगी हैंं। हमारे भारत में तो यह स्थिति है कि कभी राजस्थान में सूखा पड़ता है तो कभी बिहार और मध्यप्रदेश में अकाल पड़ता है। पानी के लिए कभी पंजाब और हरियाणा में झगड़ा पनपता है तो कभी कर्नाटक और केरला की स्थिति दयनीय हो जाती है। वास्तव में इस पानी की कमी के लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं। हमने जंगलों की इतनी कटाई कर दी है कि वर्षा के तेज़ पानी का बहाव रोकना मुश्किल हो गया है। धरती पानी को सोखने में असमर्थ हो जाती है। कई बार वर्षा पड़ती ही नहीं और धरती के नीचे जलस्तर और गिर जाता है। धरती का जब वाटर लेवल बिगड़ने लगता है तो उसकी भरपाई करना सहज नहीं रह जाता। हम अपने पानी के प्राकृतिक स्त्रोतों की न तो देखभाल करते हैं न उन्हें बचाने का कोई प्रयत्न करते हैं तथा न ही उपयोग करते समय कोई सावधानी बरतते हैं। पुराने ज़माने में एक ही कुएं से सारे गांव का पानी पूरा हो जाया करता था। क्योंकि बूंद-बूंद पानी को महत्त्व दिया जाता था। वर्षा का पानी ताालाबों में इकट्ठा किया जाता था और पशुओं की ज़रूरतें उस पानी से पूरी करते थे। कुछ लोग तो वर्षा के पानी को बड़ी-बड़ी बाल्टियों और टीन के कनस्तरों में भर लेते थे और उससे कपड़ों की धुलाई और लीपा-पोती का काम किया करते थे। परन्तु आजकल वाटर सप्लाई की सहूलतों से गांवों और शहरों के नल धड़ाधड़ बहे जा रहे हैं व्यर्थ पानी बहे जा रहा है किसी को कोई परवाह नहीं कि इस अनमोल निधि को बचाएं।

यदि हमने अपनी आदतों पर नियन्त्रण नहीं किया तो पानी की क़िल्लत का सामना करना पड़ सकता है। यह हमारे लिए चेतावनी है। पानी के अभाव में जीवन सम्भव नहीं है। पानी ही प्राणों का आधार है। जब तक पानी विद्यमान है तब तक ही यह जहान है। श्री गुरु नानक देव जी ने पानी के बारे में सच्चा तथ्य दिया है। उन्होंने कहा है, ‘सांचे से पवता भई, पवता से जल होई, जल से त्रिभुवन साजिया घट-घट जोत समाई।’ अर्थात जीवन की जोत जल के कारण ही है। ऐसा न हो कि हम जल के साधनों का ग़लत इस्तेमाल करके इस धरोहर से हाथ धो बैठें। सभी नागरिकों का यह परम कर्त्तव्य है कि इस जल के संकट से निबटा जाए और बूंद-बूंद पानी का सदुपयोग करके इस अमृत को सुरक्षित रखा जाए हम अपने जल स्त्रोतों को रिन्यूएबल साधनों द्वारा धरती के अंदर गिरते जलस्तर को बचा सकते हैं। हम अपने पशुओं को नदियों, तालाबों से उनकी ज़रूरतों का पानी दे सकते हैं। हम खेती में वे फ़सलें उगा सकते हैंं, जिनको पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती। वे फ़सलें बीजने में परहेज़ करें जिनकी जड़ें हमेशा पानी में डूबी रहती हैं। मसलन पंजाब प्रदेश के लोग धान से उपलब्ध चावल का सेवन तो कम करते हैं परन्तु धान की उपज प्रति एकड़ वृद्धि के लिए उसे बोते ज़्यादा हैं धान एक ऐसी फ़सल है जो पकने तक पानी में ही डूबी रहती है। फ़सल की ज़रूरत के लिए किसान धड़ाधड़ मोटर पम्प चलाते हैंं। इससे धरती के अंदर का जल स्तर गिरता है तथा वाटर लेवल गड़बड़ा जाता है। क्यूं न हम वे फ़सलें बीजें जिन्हें पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती। तिलहन, दालें, सब्ज़ियां फलदार वृक्ष और गेहूं को प्राथमिकता दें ताकि सिंचाई भी कम करनी पड़े और आय में वृद्धि का मक़सद भी पूरा हो जाए। खेतों के किनारे वे वृक्ष भी लगाने बंद कर दें जिनकी जड़ें दूर तक ज़मीन से पानी सोख लेती हैं। उदाहरण के तौर पर सफ़ेदा और पापुलर की जगह हम शहतूत, शीशम, नीम, जामुन तथा आम जैसे पेड़ लगाएं तो धरती के वाटर लेवल को बचाया जा सकता है।

धरती केे वाटर लेवल की सुरक्षा के लिए प्राकृतिक तौर पर मानसून पवनें हमारी धरती के लिए वरदान हैं परन्तु हम इनके महत्त्व को नज़र-अंदाज़ कर देते हैं। जून और जुलाई के महीनों में भारत में जमकर बरसात होती है। यदि धरती के ऊपर बहते हुए पानी को इकट्ठा करके तालाब की शक्ल दी जाए तो इससे गांवों की कई समस्याएं हल हो जाती हैं।

तालाबों का यह पानी पशुु-पक्षियों की ज़रूरतों के अतिरिक्त समाज के लिए भी उपयोगी है। इन तालाबों में मछलियां तथा बत्तखें पाली जा सकती हैं। धरती के गिरते जलस्तर को भी कंट्रोल किया जा सकता है। हमें पानी की उपयोगिता को लेकर गहन रूप से सोचना होगा। एक-एक जलकण और बूंद-बूंद को ज़रूरत के मुताबिक़ उपयोग में लाना होगा।

यह हम सब का कर्त्तव्य है कि पानी के महत्त्व को पहचाना जाए। इसे ज़रूरत के अनुसार ही प्रयोग में लाया जाए इस अमृत रूपी जल को बचाने में ही जलकल्याण है अन्यथा यह संसार विपत्तियों में घिरा नज़र आएगा।

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