किसी भी जाति की उन्नति के लिए उच्च कोटि के साहित्य की ज़रूरत होती है। ज्यों-ज्यों साहित्य ऊंचा उठता है, त्यों-त्यों देश की तरक्क़ी होती है-भगत सिंह
पंजाब की ज़रखेज भूमि ने जहां गुरू गोबिन्द जैसे तलवार के धनी शूरवीरों को जन्म दिया, वहीं उस ने महान चिन्तकों, विचारकों, सिद्धान्तकारों कलाकारों, साहित्यकारों की जननी होने का गौरव भी प्राप्त किया है।
पंजाब के लोक साहित्य में हास्य व्यंग्य, रोमांस के साथ-साथ देशभक्ति तथा निर्भीकता भी विद्यमान है। पाखंड अत्याचार को चुनौती भी है। गुरू नानक के फ़लसफ़े ‘किरत करो, वंड छको, नाम जपो’ वाले साहित्य ने अंग्रेज़ों की गुलामी के पूर्व तुर्कों व मुगलों का डर मन से निकालने में अहम् भूमिका निभाई थी। 1699 में वैसाखी के दिन गुरू गोबिन्द सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना तथा खालसा सजा कर, उन पर देश धर्म की रक्षा की ज़िम्मेदारी डालना ही दरअसल पंजाब की धरती पर स्वतन्त्रता संग्राम के बीज बोना था।
जो तोहे प्रेम खेलन का चाओ
सिर धर तली गली मोरी आओ
धर्म व आनबान की रक्षा के लिए मुगलों से टक्कर लेने वाले पंजाबी शूरवीरों ने बाद में अंग्रेज़ों से भी दो-दो हाथ किये थे। बेशक इतिहास बताता है कि आज़ादी की पहली लड़ाई 1857 में लड़ी गई, लेकिन इस बगाबत की चिन्गारी भीतर ही भीतर काफ़ी पहले से सुलग रही थी, इस बात के तथ्य भी मौजूद हैं कि पंजाब की धरती पर अंग्रेज़ों से सिक्खों की लड़ाई 22 दिसम्बर 1945 को पंजाब के मुदगी नामक स्थान पर लड़ी गई। इस स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई का एक सैनिक बाद में बाबा राम सिंह नामधारी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उस ने ही अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ ‘कूका लहर’ को जन्म दिया तथा खालसा पंथ की तरह ही नामधारी पंथ की स्थापना की। 1875 में जब आर्य समाज के प्रवर्तक ऋषि दयानंद, राम सिंह नामधारी की कूका लहर से प्रभावित होकर पंजाब पहुंचे तो उन्होंने लाहौर में आर्य समाज का पौधा रोपा, उन से दीक्षा लेने वालों में भगत सिंह के दादा अर्जुन सिंह भी थे। आर्य समाज की शिक्षाओं वाले साहित्य ने नया सांस्कृतिक परिवेश स्थापित किया। सिक्ख धर्म और आर्य समाज की बहुत सी बातों में समानता थी। दोनों का मूल आधार देश भक्ति था। यह तथ्य सर्वविदित है कि शहीद भगत सिंह की आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा आर्य समाजी शिक्षाओं वाले वातावरण में हुई थी। अर्जुन सिंह द्वारा गुरूद्वारा जाकर गुरू ग्रंथ साहिब के आगे माथा न टेकना, उसे मूर्ति पूजा की तरह बताना तथा अंधविश्वास कहना, आर्य समाजी विचारों का प्रभाव था। बाद में कूका लहर की भांति आर्य समाज भी फिरंगियों की अांख की किरकिरी बना।
अगर हम स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान पंजाब में रचे गये साहित्य की बात करें तो अर्जुन सिंह ने आर्य समाज से प्रभावित हो कर देश भक्ति को समर्पित कई पुस्तकें लिखी, जिन्हें अग्रेंज़ों के इशारे पर पुलिस ने ज़ब्त कर लिया तथा बाकी बची पुस्तकें बंटवारे की भेंट चढ़ गईं थी। 1920 में असहयोग अांदोलन में ‘‘बोले सो अभय वैदिक-धर्म की जय’’ के स्थान पर ‘‘बोले सो अभय-भारत माता की जय’’ नारा दिया गया।
अर्जुन सिंह के पुत्र किश्न सिंह (भगत सिंह के पिता) ने अंग्रेज़ाें के ख़िलाफ़ कई पुस्तकें तथा पम्फलेट लिखे। जिन में ‘विधवा की पुकार’ बहुत प्रसिद्ध हुई।
1905 में ‘भारत माता सोसायटी’ की स्थापना के बाद क्रान्तिकारी सूफी अम्बा प्रसाद ने अख़बार ‘जमी उलवटन’ में अंग्रेज़ी प्रशासन के विरोध में उत्तेजक लेख लिखे, जिस कारण उन्हें 5 वर्ष की कैद हुई। इस उपरान्त ‘भारत माता बुक एजेन्सी’ लाहौर की स्थापना हुई, जिस के द्वारा क्रान्तिकारी साहित्य प्रकाशित हुआ।
इस एजेन्सी द्वारा ‘भारत माता’ तथा ‘इंडिया’ नाम से स्वतन्त्रता संग्राम अांदोलन समर्थक पत्र प्रकाशित किये गये। 6 पुस्तकें भी प्रकाशित की गई- 1857 की बगावत, अंगुलि पकड़ते पहुंचा पकड़ा, देसी फौज, बंदर बांट, ज़फर सेवा, बागी मसीहा, आदि पुस्तकों को अंग्रेज़ों ने ज़ब्त कर लिया था।
22 मार्च- एक सम्मेलन में लाला लाजपत राय तथा अजीत सिंह के भाषणों के बाद कवि ‘बांके दयाल’ ने पंजाबी कविता कही थी ‘‘पगड़ी सम्भाल जट्टा’’ जो इतनी प्रसिद्ध हुई कि आंदोलन का नाम ही ‘पगड़ी सम्भाल जट्टा’ पड़ गया था। जिसका मुखड़ा है-
‘‘पगड़ी सम्भाल जट्टा, पगड़ी सम्भाल ओए
लुट लेया माल तेरा, हाल बेहाल ओए
तारियां दी लौ उठदा ऐं तू
मिट्टी विच मिट्टी वी होंवदा ऐं तू
फिर वी न पुच्छदा, कोई तेरा हाल ओए’’
इसी समय राधे श्याम कथा वाचक ने नाटक ‘अभिमन्यू’ लिखा। जिस में अंग्रेज़ राय साहब की खिल्ली उड़ाई गयी थी, इस में एक राय साहब महाराज दुर्योधन की तरफ़ से लड़ने जाते हैं और शाम को अकड़ते हुए घर पहुंचते है। पत्नी ने पूछा, ‘‘आज युद्ध में आपने क्या वीरता दिखाई?’’ तब राय साहब ने उत्तर दिया, ‘‘मैंने पचासों वीरों के पैर काट दिये।’’ पत्नी ने पूछा, ‘‘सिर क्यों नहीं काटे?’’ राय बहादुर बोले, ‘‘क्या वाहियात बात करती हो, सिर तो उन के मेरे पहुंचने से पहले ही काट दिये थे।’’
लाला पिंडीदास ने ‘इंडिया’ पत्र निकाला। इस के बंद होने के बाद किश्न सिंह ने ‘सहायक’ नाम से दैनिक पत्र शुरू किया। तिलक प्रैस होशियारपुर से एक पम्फलेट छपा, ‘‘अंग्रेज़ों का वध करो’’ इस के लेखक का तो पता नहीं, लेकिन इस पत्र ने अंग्रेज़ों की नींद अवश्य उड़ा दी थी। मालिक जसवंत राय द्वारा अपने अख़बार में एक सच्ची घटना प्रकाशित की गई, ‘‘जिस में एक अंग्रेज़ द्वारा सूअर मार कर, मुसलमान से उठवाने तथा मुस्लिम युवक द्वारा मना करने पर युवक को गोली मार देने का हिला देने वाला वर्णन था।’’ इस के प्रकाशित होने पर लेखक को दो साल की सख़्त सज़ा दी गई थी।
मांडले जेल में नज़रबंद अजीत सिंह ने एक पुस्तक लिखी, ‘‘सहब्बाने वतन’’ जिस की भूमिका सूफी अम्बा प्रसाद ने लिखी थी। जो लोकप्रिय होने पर अंग्रेज़ों द्वारा ज़ब्त कर ली गई थी।
भारत माता बुक एजेन्सी से ही ‘पेशवा’ दैनिक पत्र छपता था। स्वतन्त्रता आंदोलन के लिए इस में प्रकाशित साहित्य की बहुत ज़बरदस्त भूमिका रही।
नेशनल कॉलेज लाहौर के अध्यापक छब्बीलदास ने देश भक्ति से ओत-प्रोत कई पुस्तकें लिखीं-चिन्गारियां, हम स्वराज क्यों चाहते हैं, सोशलिज़्म, भूखा बहिश्त, राजनैतिक कहानियां, इन्कलाबी शरारे, मेरी इन्कलाबी यात्रा आदि।
भाई परमानंद (अध्यापक डी.ए.वी कॉलेज लाहौर) ने ‘‘ भारत वर्ष का इतिहास’’ लिखा जो अंग्रेज़ सरकार की आंखों में कांटो की तरह खटका। पुस्तक ज़ब्त की गई, बाद में लेखक को षडयन्त्र में फंसा कर मृत्यु दंड दिया गया, जिसे बाद में घटा कर पांच वर्ष बाद छोड़ दिया।
देश भक्ति पूर्ण विचारों को जनता में प्रसारित करने के लिए ‘नेशनल नाटक क्लॅब’ की स्थापना की गई। इस क्लॅब द्वारा लाहौर, लावलपुर, गुजरांवाला, रावलपिंडी आदि स्थानों पर नाटक दिखाए गये। प्रमुख नाटक थे- भारत दुर्दशा, महाराणा प्रताप, सिकन्दर, चन्द्रगुप्त आदि जिन में भगत सिंह ने प्रमुख भूमिका अदा की थी। बाद में अंग्रेज़ सरकार द्वारा इन्हें जनता में विद्रोह भड़काने वाले नाटक करार देकर पाबंदी लगा दी गई। नाटकों में कविताओं, गीतों के लेखक का पता नहीं है। इन में शहीद भगत सिंह का अदाकार का रूप भी सामने आया था।
इसी प्रकार मुकेरियां (होश्यिारपुर) से पंजाबी के कवि थे डाॅ. बाल मुकन्द शाकर (पूर्व मन्त्री अरूनेश शाकर के पिता श्री) उन के बारे में प्रसिद्ध है कि वे देश के नौजवानों में देश भक्ति का जोश भरने और अंग्रेज़ों के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ कविता या गीत लिखते और उसे सड़क पर अपने समर्थकों के साथ गाते हुए निकलते तो पुलिस उन्हें गिरफ़्तार कर लेती। कुछ दिनों बाद रिहा होते तो फिर यही सिलसिला चलता रहता। उन का एक गीत जिसे बाद में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अशाखा के गीत के रूप में स्वीकार किया उस का मुखड़ा इस प्रकार है-
‘‘उठ भारत दिया शेर जवाना, रख ले मान जवानी दा
भुल्ल भुलेखे कर न बैठीं, कम कोई नादानी दा।’’
इसी प्रकार:-‘‘हिमगिरि के उतंग शिखर पर
बिन कुंकुम बिन रोली
खेल रहे हैं लाल अनूठे
आज खून की होली।’’
मां तेरी पावन पूजा में, अग्रिम जीवन दीप जलाएं
रक्त स्नात धूलिका कण-कण, बलिदानों का पाठ पढ़ाएं।
निःसन्देह भगत सिंह प्रमुख तौर पर महान क्रान्तिकारी के रूप में तो उभरे ही हैं, लेकिन इस के साथ-साथ वे एक अध्ययनशील, विचारक, सम्पादक, अदाकार तथा साहित्यकार भी थे। उनके लेख पंजाबी पत्रिका-किरती (सम्पादक सोहन सिंह जोश) में क्रान्तिकारी की मां, इन्द्रचंद नारंग का मुकद्दमा, पब्लिक सेफटी बिल, टूडे डिस्प्यूट बिल, मोती लाल नेहरू कमेटी रिपोर्ट, विद्रोही (छुआ-छूत को आधार बना कर लिखा) मैं नास्तिक क्यों हूं, प्रकाशित हुए। भगत सिंह ने छदम् नाम बलवंत सिंह के रूप में ‘प्रताप’ तथा ‘दैनिक अर्जुन’ का सम्पादन का कार्य किया, जिन में क्रान्तिकारी साहित्य प्रकाशित होता था।
स्वतन्त्रता संग्राम में कूदने वाले युवा भगत सिंह को जिस पुस्तक ने सर्वप्रथम सर्वाधिक प्रभावित किया, जिसे उन्होंने बार-बार पढ़ा वह थी वीर सावरकर की पुस्तक ‘‘फर्स्ट वार ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस’’ जिसे उन्होंने 36 घंटे में लगातार पढ़ा और फिर इस ज़ब्त शुदा पुस्तक को कई खंडों में प्रकाशित करने की योजना बनाई और प्रकाशित भी करवाया। स. भगत सिंह वीर सावरकर की पुस्तक के साथ-साथ उनके जीवन से भी बहुत प्रभावित हुए थे। इसी प्रकार लाला हरदयाल के लेख ‘‘कौमें किस तरह ज़िन्दा रह सकती हैं’’ तथा पुस्तक ‘‘हिंटस फॉर सेल्फकल्चर’’ ने भी उन की सोच को वैज्ञानिक तथा व्यापक बनाया था।
उपरोक्त साहित्य के अतिरिक्त कुछ ऐसे लेखकों जिन्होंने पंजाब की धरती को अपनी सृजन भूमि बना कर स्वतन्त्रता संग्राम और उसके बाद के समय का कालमयी साहित्य रचा। उनकी सूची इस प्रकार है:-
कविता क्षेत्र में उपन्यास क्षेत्र में
1. उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’ 1.पं. श्रद्धाराम फिल्लौरी
2.देवराज दिनेश 2.गुरूदत्त (100 उपन्यास)
3.चरणजीत 3.डाॅ. कंचन लता सभ्रवाल
4.उदयशंकर भट्ट 4.यशपाल – झूठा सच्च
5.हरिकृष्ण प्रेमी 5.भीष्म साहनी (तमस)
6.जयराम नलिन 6.करतार सिंह दुग्गल
7.राजनारायण बिसारिया 7. गुलज़ार
8.शम्भूनाथ ‘शेष’ 8.खुशवन्त सिंह (ट्रेन टू पाकिस्तान)
9.मन्सा राम ‘चंचल 9.अमृता प्रीतम (पिंजर)
10.पदम सिंह शर्मा ‘कमलेश’ 10.धर्मपाल साहिल (समझौता ऐक्सप्रेस)
11.अमृता प्रीतम नाटकक्षेत्र में
12.फैज़ अहमद फैज़ 1.चन्द्रगुप्त विद्याताकार- (देव और मानव)
13.दीवान सिंह कालेपानी 2.कैलाश नाथ भटनागर- (भीम प्रतीक्षा)
कहानी क्षेत्र में 3.उदयशंकर भट्ट- (शक विजय)
1.चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ 4.देवराज ‘दिनेश’- (मानव प्रताप)
2.पं.सुदर्शन 5.डाॅ. नलिन- (अवसान)
3.बिशम्बर नाथ शर्मा ‘कौशिक’
4.यशपाल (पिंजरे की उड़ान) निबन्ध क्षेत्र में
5.उपेन्द्र नाथ अश्क (नासूर) 1.प्रो. पूर्ण सिंह
6.चन्द्रगुप्त विद्यालंकार 2.संतराम बी.ए. (होशियारपुर)
7.देवेन्द्र सत्यार्थी 3.देवेन्द्र सत्यार्थी
8.कौशल्या ‘अश्क’ 4.चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
9.गुरूदत्त
10.रजनीपनीकर
समीक्षा क्षेत्र में
1.बाबू बाल मुकन्द गुप्ता
2.डाॅ. खुर्शीद (पंजाब के ऊर्दू साहित्यकार एवं बंटवारा)
3.डाॅ. तारा चन्द- स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास
4.डाॅ. बलराज- हिन्दी उपन्यास में पंजाबी जनजीवन
5.नरेन्द्रपाल सिंह- स्वतंत्रता संग्राम में पंजाबी साहित्यकारों का योगदान
6.डाॅ. तिश्नेन्द्र- भारतीय साहित्यकार एवं स्वतंत्रता अांदोलन
7.मनमथ नाथ गुप्ता- क्रान्ति का इतिहास
आदि-आदि
1947 के बाद भी राष्ट्रीय संघर्ष की प्रक्रिया महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल की मौत के बाद सम्पन्न नहीं हुई। यह हमारी राजनीति, साहित्य, संस्कृति तथा समाज के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित कर रही है। आज़ादी मिलते ही भारत-पाक बंटवारे में 20 लाख लोगों की आहूति से सम्बंधित साहित्य के बिना, यह प्रसंग अधूरा ही रहेगा।
अन्त में यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि स्वतन्त्रता संग्राम में, जिस पावन पवित्र पुस्तक ‘गीता’ को हाथ में लेकर क्रान्तिकारी हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया करते थे। स्वतन्त्रता तथा अपने अधिकार को प्राप्त करने हेतु प्रेरणा पैदा करने वाले इस आदि ग्रंथ का सृजन भी संयुक्त पंजाब की पावन धरती पर ही हुआ था।
स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बंधित पंजाब में रचे गये साहित्य का संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐतिहासिक ही नहीं पथ प्रदर्शक दृष्टि से भी महत्पूर्ण सिद्ध होगा।
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