-मनोहर चमोली ‘मनु’
कम्प्यूटरीकृत और उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव से सम्पूर्ण विश्व एक समाज के रूप में परिवर्तित हो रहा है। ‘वेलेंटाईन डे’ अब भारत के सभी नगरों, क़सबों में ‘प्रणय दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा है। सूचना क्रांति के इस युग ने इश्क़, प्यार, मुहब्बत और प्रेम के इन समानार्थी शब्दों के इज़हार के मायने भी बदल दिए हैं। पिछले कुछ दशकों में प्रेम जैसी संवेदनशील और कोमल भावनाओं का आदान-प्रदान करने के तरीक़ों में बेहद बदलाव हुए हैं।
‘वेलेंटाईन डे’ भारत में तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है। प्रेम निवेदन और मैत्री को प्रणय के रूप में स्वीकार करने के लिए इस दिवस का हज़ारों युवक युवतियां बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। 14 फरवरी को ‘वेलेंटाईन डे’ स्कूल कॉलेजों से लेकर सस्ते महंगे रेस्तराओं, सिनेमाघरों, रेडियो और समाचार पत्रों के माध्यम से भी चर्चित रहता है। युवक-युवतियां एक दूसरे को चॉकलेटी स्वीट्स, फूल, ग्रीटिंगकार्ड, महंगे परफ़्यूूम उपहार में देते हैं। पश्चिमीकरण का प्रभाव पिछले एक दशक से तेज़ी से बढ़ा है। भारतीय सिनेमा ने इसे और रंग दिया है। परिणाम स्वरूप इस दिवस को व्यावसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाने लगा है। चॉकलेट, विशेष ग्रीटिंग कार्डस, फूल, परफ़्यूम आदि इस अवसर पर महंगी दरों पर धड़ल्ले से ख़रीदे जाते हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में 300 करोड़ रुपये का ग्रीटिंग कार्डों का बाज़ार है। ‘वेलेंटाईन डे’ की ऐतिहासिकता में रोम के एक पादरी का नाम जुड़ा है। रोम के पादरी जिनका नाम वेलेंटाईन था उन्हें 14 फरवरी को ही फांसी दी गई थी। बताया जाता है कि तीसरी शताब्दी के दौरान रोम में सम्राट क्लाडियस का शासन था। क्लाडियस के शासन काल में राजाज्ञा थी कि सैनिक और अधिमयी विवाह नहीं करेंगे। क्लाडियस की राय में विवाह करने के उपरांत पुरुषों की शक्ति और बुद्वि का ह्रास हो जाता है। उस काल में यदि कोई इस राजाज्ञा का उल्लंघन करता था तो दम्पति के साथ- साथ पादरी को भी फांसी की सज़ा दी जाती थी।
संत वेलेंटाईन ने इस राजाज्ञा का विरोध किया। संत वेलेंटाईन की बात का असर रोम में दिखने लगा। अधिकारियों, सैनिकों ने विवाह किए। कहा जाता है कि सम्राट क्लाडियस ने 14 फरवरी सन् 269 को संत वेलेंटाईन को फांसी दे दी। तत्पश्चात् रोमन ईसाइयों ने इस दिन को विवाह दिवस के रूप में मान्यता दी। यह दिवस संत वेलेंटाईन का बलिदान दिवस है जो उनकी स्मृति में मनाया जाता है।
आज के दिन इस दिवस की सार्थकता महज़ इतनी हो गई हैै कि युवा एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार करते हैंं। अधिकांश युवक-युवतियां ‘वेलेंटाईन डे’ को महज़ प्रणय दिवस के रूप में जानते हैं। बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इसके यथार्थ में छिपे मूल भाव को जानते हैं।
यहां यह ज़िक्र करना भी ज़रूरी होगा कि क्या इस दिवस पर केवल प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे को मुबारकबाद दें? क्या यह संभव नहीं कि वो सभी लोग इस दिवस को उल्लास पूर्वक मनाएं जो प्रेम के महत्त्व को जानते हैं? एक दूसरे के प्रति प्रेम, समर्पण, त्याग, सहयोग, मैत्री, सहानुभूति, करुणा और आदर भाव जहां भी हों वहां यह दिवस संबंधों में प्रगाढ़ता लाने के लिए क्यों न मनाया जाए?
प्रेम तो बेहद अनमोल होता है। रिश्ता कोई भी हो प्रत्येक रिश्ते की बुनियाद प्रेम पर टिकी हुई है। फिर क्यों इसे मात्र प्रेमी-प्रेमिकाओं का दिन कहा जाए? यह दिन तो हम सबका है। सम्पूर्ण मानव समाज इस दिवस पर जिसे वह चाहता है उसे याद कर सकता है। अपनी भावनाएं उस तक पहुंचा सकता है एवं इस अवसर पर मित्र, माता-पिता, भाई-बहन ही नहीं प्रकृति के साथ-साथ उस शख़्सियत को भी याद किया जा सकता है जो अब इस दुनियां में नहीं है।
ज़रूरत मात्र इस बात की है कि हम इसका अहसास करें। सार रूप में यही कहा जा सकता है- ‘जो खुद से बात नहीं करता, वो बात काम की नहीं करता।’
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