-माधवी रंजना
कैरियर का मुद्दा सीधे जीवन से जुड़ा है। अगर आप अपनी रुचि का ही कैरियर बनाते हैं तो आपका काम में मन लगेगा साथ ही आप उस क्षेत्र में बेहतर प्रगति कर सकते हैं। अच्छा कैरियर बनाने के लिए आवश्यक है कि कैरियर सम्बंधी निर्णय सही समय पर अथवा सही दिशा में ली जाए। अकसर देखा जाता है कि किसी छात्र में अत्यधिक मेधा और प्रतिभा होने के बावजूद सही समय पर सही सलाह नहीं मिल पाने के कारण या तो इच्छित क्षेत्र में रोज़गार नहीं मिल पाता अथवा बेरोज़गारी का सामना करना पड़ता है।
कैरियर संबंधी निर्णय के मामले में अध्ययनरत छात्रों को विशेष जानकारी नहीं होती। अभिभावक भी आमतौर पर तत्कालीन ज़रूरतों के हिसाब से अधूरी जानकारी लिए होते हैं। अधिकांश शिक्षक भी कैरियर काउंसलिंग के विशेषज्ञ नहीं होते। छात्रों को पत्र पत्रिकाओं अथवा संचार माध्यमों से जितनी जानकारी मिलती है वह जितना सूचित करती है, कई बार उतना ही दिग्भ्रमित भी करती है।
कब दी जाए काउंसलिंगः-
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) के विशेषज्ञ डॉ. राज कुमार सारस्वत बताते हैं कि छात्र को सलाह की ज़रूरत तभी पड़ने लगती है जब वह नौवीं-दसवीं कक्षा में पढ़ रहा होता है। असफल होने का सबसे बड़ा कारण देर से निर्णय लेना भी है। आमतौर पर स्कूल में पढ़ने वाले छात्र कैरियर को लेकर ज़्यादा उत्सुक नहीं होते या फिर उन्हें परिवार के सदस्य आमतौर पर डॉक्टर इंजीनियर अथवा आई.ए.एस. बनाने के सपने ही दिखाते हैं।
कैरियर की नींव स्कूली शिक्षा के समय से ही तैयार होनी चाहिए। सबसे पहली आवश्यकता है अपने बच्चे की अभिरुचियों व अध्ययन-शीलता का पूर्णतः मनोवैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण किया जाए। साथ ही उन्हें उसी उम्र कैरियर के जितने विकल्प हो सकते हैं उसकी विस्तृत जानकारी दी जाए। इन विकल्पों के लिए किस तरह की और कितनी लंबी तैयारी की आवश्यकता होगी, तैयारी का बजट क्या होगा इसकी पूर्ण सूचना तथा पूर्ण निर्धारण आवश्यक है। सबसे बड़ी ग़लती तब होती है जब अभिभावक अपने प्रतिपाल्य की व्यक्तिगत राय जाने बिना उन्हें अपनी पसंद के क्षेत्र में ज़बरदस्ती धकेल देते हैं। मान लिया जाए किसी की कला में विशेष रुचि है अगर उसे विज्ञान की ओर धकेल दिया जाए तो निश्चित ही परिणाम बेहतर नहीं होंगे। इसलिए ज़रूरी है कि बच्चे के व्यक्तित्व, शारीरिक क्षमता, अभिरुचि अभियोक्ताओं को ध्यान में रखते हुए व्यवसाय चयन की सलाह दी जाए। ऐसा देखा गया है कि बच्चे पर अभिभावक का अनावश्यक दबाव होने के कारण बच्चे कुछ नहीं कर पाते। आज देश में एक बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की है। उम्र 25 से 30 हो गई है परंतु वे कैरियर को लेकर एकदम निराशा की स्थिति में हैं। कई लोग तो सही दिशा नहीं मिलने पर पागलपन के भी शिकार हो जाते हैं।