-मीरा हिंगोरानी
आज हर कहीं बलात्कारी घटनाओं का बोल बाला है। आए दिन अख़बारों में इस तरह की ख़बरें सुनने को मिलती है। देखने में आया है कि तीन साल से लेकर, उम्रदराज़ औरत तक को ये दरिन्दे नहीं बख़्शते। अकसर देखा गया है कि कामुकता में अंधे होकर मर्द बलात्कार के ज़रिए अपनी मर्दानगी जताने लग जाते है। ऐसे जवान अकसर काम पिपासा वश ही यह सब करते हैं।
कभी-कभी लड़की की नामंज़ूरी भी उनके अहं को ललकारती है। कुदरत ने जो बल और ग़लत बुद्धि बख़्शी है, उसका इस्तेमाल करने में पीछे नहीं हटते। कभी तो बदले की भावना से भी वे इस तरह की ग़लीज़ हरकतें करने लग जाते हैं। आज देश का माहौल इतना गंदला हो गया है कि युवा सोच जाग गई है। बलात्कारी घटना घटते समय उनकी सोच समझ सब नकारात्मक हो जाती है। उस समय वे यह बात भूल जाते हैं कि पकड़े जाने पर कितनी ज़िल्लत उठानी पड़ेगी, शर्मिंदगी का सामना होगा। जेल की सलाखों के पीछे भी रहना पड़ सकता है।
इतिहास के पन्ने पलटें। आदिकाल में ऋषि-मुनि, रात के अंधेरे में, धोखे से सतियों का सत भंग करते थे। ऐसे लोलुप और कामुक पंडित ही हमारे देश पर कलंक है। आज हम दावा करते हैं कि हम सभ्य समाज के प्राणी हैं। लगता है हम अब भी आदिवासी युग में वास कर रहे हैं। जहां हमें भले-बुरे की पहचान लेश मात्र भी नहीं है। कहते हुए शर्म आती है, आज मां जब अपनी छोटी बच्ची को अकेला छोड़ काम पर जाती है तो बच्ची चार साल की है या आठ की, पिता के साथ वह सुरक्षित नहीं है।
कभी तो हालात इतना घिनौना रूप धारण कर लेते हैं कि समाज से हारी, क़िस्मत की मारी लड़की को वेश्या या कॉल गर्ल बनने की विवशता झेलनी पड़ती है। आए दिन अख़बारों में पढ़ने को मिलता है, पुलिस ऐसे रैकेटों को छापा मार कर पकड़ती है। ऐसे दलाल जो संस्थाओं की आड़ में ऐसे रैकेट चलाते हैं वो समाज में कोढ़ के बराबर हैं। आज शहरों में ऐसे बदमाश, गुंडे, शोहदे समूहों में मौजूद हैं। सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि पकड़े जाने पर कुछ तो सज़ा पाते हैं, शेष ज़मानत पर छूट जाते हैं या फिर उनके अभिभावक पुलिस को तगड़ी रक़म खिला कर केस को वहीं रफ़ा-दफ़ा करा देते हैं।
नारी शोषण पर नारे लगाने वाले, हमारे देश के विचारक, महानुभावी रहबर खूब जलसे-जुलूस निकाल कर जनता को यह जताते हैं कि समाज में फैल रहे इस कोढ़ के हम शुभ चिंतक हैं। हम ही नारी जाति की बीच मझदार फंसी नाव के खेवनहार हैं। क़सम है उस परवरदिगार की जो इन्हें सज़ा मिले – हां फ़ैैसले में ही कई साल लग जाते हैं। और तब तक बात आई गई हो जाती है।
आप ही बताएं, मारी गई बलात्कारी नारियों की मौत पर कितने लोग शोक मनाते हैं। कितने ऐसे मर्द हैं जो इनसे विवाह का दावा करते हैं? इनको नार्कीय जीवन से छुटकारा दिलाने का दम भरते हैं? युग बदलते रहे हैं, इतिहास साक्षी है। स्त्री पुरुष के पवित्र-प्रेम का रिश्ता ‘सेक्स’ में परिणित होता रहा है। आज पवित्र प्रेम को केवल एक ही नाम से जाना जाता है, इश्क, प्यार। वह नहीं मिलेगा तो अपनी ही प्रेमिका की गला रेत कर हत्या कर देंगे। वे लैला-मजनूं, हीर-रांझा, सस्सी-पुनूं के क़िस्से तो बस किताबों में क़ैद होकर रह गए हैं। आज के युग में प्रेम का पर्यायवाची शब्द शायद बलिदान नहीं है।
चौदह वर्ष की बच्ची, एक पुरुष के हत्थे चढ़ी। पीड़ा दायी आनन्द अटृहास कर उठा। पुरुष की मर्दानगी चरम सीमा पर पहुंची बच्ची की हत्या कर डाली। सांसों की आवाजाही के बीच तड़पती वह बेगुनाह बच्ची। ज़रा इस शर्मनाक दृष्य के बारे में सोचें? यहां तो ऐसे अपराधियों की लम्बी क़तार है। कितने इस तरह के ज़ुलम में सज़ा याफ़्ता हैं ?
आज नारी सजग हो उठी है। उसने अपने पैरों की ज़मीन पा ली है, वह जान चुकी है कि अब उसे टकराने के लिए खुद को तैयार करना होगा। वो मज़बूत होती जा रही है। आज आवाज़ उठा रही है जल्द ही भरपूर मुक़ाबला भी करने लगेगी। वह दिन दूर नहीं जब भी कभी पुरुष उस पर वासना का वार करेगा व सुप्त शेरनी को जगाएगा तो वह भी मुड़ कर वार करेगी। उसकी ‘मर्दानगी’ की धज्जियां उड़ाएगी।
कहीं कहीं तो लड़कियों ने अब उनकी मर्दानगी को ललकारा भी है हालांकि ऐसी घटनाएं नामात्र हैं पर वर्णनीय हैं। अब देखें मर्द की यह मर्दानगी कैसे टिक पाती है। मर्दानगी का दावा घर हो या बाहर कब तक और कितनी देर टिकता है। बस यही कहना है कि आज के इन मंदबुद्धि पहलवानों को भगवान् सदबुद्धि दें।