-नील कमल (नीलू)

आज के भारतीय युवक जब बेमायने बंदिशों व भारतीय संस्कृति के पुराने व निरर्थक विचारों को पीछे छोड़ व अपने पूर्वजों द्वारा बनाई गई कड़ी ज़ंजीरों को तोड़ कर बेख़ौफ हो खुली हवा में उड़ने के लिए प्रयत्‍नशील हैं, वहीं यह भी सोचने लायक बात है कि क्या वास्तव में वे अपनी मानसिकता को बदलने में सफल हो पाए हैं या फिर सोच को बदलने की आड़ में वे केवल बाहरी आडम्बरों व ऐश-प्रस्ती को ही बढ़ावा दे रहे हैं।

आधुनिकता की आड़ में युवकों में आ रहे अदभुत परिवर्तनों में एक प्रमुख पहलू है- गर्ल फ्रैण्ड बनाने का फैशन। इसे मानसिक परिवर्तन की बजाय यदि सिर्फ़ व सिर्फ़ फैशन ही कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। लेकिन उसके साथ-साथ एक और तथ्य भी दृष्‍टिगोचर हुआ है कि जो नवयुवक ऐसे फैशन के पीछे भागते हुए गर्ल फ्रैण्ड बनाने में अपनी शान समझते हैं और खुद के फैशनेबल होने का प्रदर्शन करते हैं, वही शादी की बात आने पर खुद को ओल्ड फैशन्ड अथवा सुसंस्कृत कहलवाने में गर्व अनुभव करते हैं। आख़िर परिस्‍थितियों में इस क़दर परिवर्तन कैसे आ जाते हैं? क्यों भारतीय नवयुवकों की विचारधारा में जीवन के इस मोड़ पर अचानक तबदीलियां आ जाती हैं? क्या कारण है कि दुनियां में उनकी सबसे अजीज़, हमराज़, हमनवां गर्ल फ्रैण्ड उन्हीं की हमसफर या पत्‍नी नहीं बन पाती।

यदि हम परिस्थितियों पर गौर करें तो पाएंगे कि आज नवयुवकों की मानसिक प्रवृत्ति कुछ इस प्रकार की बन गई है कि वे अपने साथ किसी गर्ल फ्रैण्ड का होना किसी डिग्री को प्राप्‍त करने की भांति अनिवार्य समझने लगे हैं और वो गर्ल-फ्रैण्ड हो भी उनके ख्‍़वाबों के अनुरूप किसी स्वप्नलोक की राज कुमारी अथवा हिन्दी फ़िल्मों की किसी सुपरहिट हीरोइन की भांति, देखने में टिप-टॉप, फैशनेबल, ज़िन्दा-दिल, खुले मिजाज़ व एक दम आधुनिक बल्कि पाश्‍चात्य विचारों वाली, ताकि वे उसके साथ क्लब, डिस्को, रेस्तरां इत्यादि में बेख़ौफ़ घूम सकें व अपने दोस्तों के साथ उसका तारुफ कुछ यूं करा सकें ‘मीट द मोस्ट वण्डरफुल गर्ल, माई गर्ल फ्रैण्ड’ और यार दोस्त उससे मिलते ही वाह-वाह कर उठें।

अब आई बारी शादी की। ज़रा महाशय से पूछें कि कैसी लड़की को बीवी बनाना पसंद करेंगे? दो टूक जवाब मिलेगा- “सीधी-सादी हो, घरेलू हो, हमारे संस्कारों को पहचाने, सुंदर सुशील हो, घर का काम काज संभालें और सबसे बड़ी बात फैशन ने उसे छुआ तक न हो।” सीधे लफ्‍़ज़ाें में यूं कहें कि श्रीमान को तलाश है सीता जैसी अद्वितीय नारी की, जो उनके पूर्वजों के संस्कारों को समझ कर व अपना कर उनकी गरिमा को बढ़ाए। तो इन सभी परिस्थितियों को देख परख कर जनाब की मानसिकता यह कहती है कि एक अच्छी गर्ल-फ्रैण्ड एक अच्छी पत्‍नी नहीं बन सकती और एक अच्छी पत्‍नी में एक गर्ल फ्रैण्ड के गुण कभी नहीं हो सकते। कितनी निराशा होती है, जब पाश्‍चात्य सभ्यता से प्रभावित रहे रोमांटिक किस्म के युवक अपने नवीन ख्‍़यालात को किसी रेस्तरां या पार्क में छोड़कर एक ऐसी युवती की तलाश में होते हैं, जो चले तो दादी और नानी के नक्शे क़दम पर लेकिन रंग रूप में हो वह करिश्मा या ऐश्‍वर्या।

गर्ल-फ्रैण्ड के पत्‍नी न बन पाने के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण है और वह है माता-पिता व बच्चों के ख्‍़यालात व पसंद में अंतर। जिस लडक़ी को नौजवान बेटा पसंद कर बैठता है, माता-पिता के मुताबिक- “ऐसी लड़कियां हमारे घर की बहुएं नहीं हुआ करतीं।” ‘ऐसी लड़कियों’ में कई तरह की लड़कियां हो सकती है, जैसे- आधुनिक या घूंघट न ओढ़ने वाली या नौकरी शुदा (पराए मर्दों के बीच काम करने वाली) या फिर किसी दूसरे धर्म अथवा जाति से संबंध रखने वाली। ऐसे माता-पिता को उनकी विचार-धारा से परे करना नामुमकिन जितना कठिन कार्य है।

अब यदि नवयुवक यह जानते हैं कि वे बाद में माता-पिता को समझा नहीं पाएंगे, उनके विरुद्ध नहीं हो पाएंगे, तो क्या ज़रूरत किसी की ज़िन्दगी बर्बाद करने की, किसी को यूं धोखा देने की। गर्ल-फैण्ड बनाते वक्‍़त क्या यह सोचना ज़रूरी नहीं था कि आज के इस फैसले का आने वाले कल पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है?

ऐसे बेतुके फैशन की अंधी दौड़ में बर्बाद हो रही ज़िन्दगियों की बर्बादी में बहुत बड़ा हाथ है टी.वी.के विभिन्न चैनेलों व हिन्दी फ़िल्मों का। जैसे नायक के साथ एक नायिका का होना अनिवार्य है, वैसे ही वे अपने साथ एक गर्ल-फ्रैण्ड का होना ज़रूरी समझने लगते हैं। आख़िर हीरो बनने की चाह किसे नहीं होती?

बहुत बार यह तथ्य भी सामने आया है कि लड़की के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हो जाने के बाद उसकी कमज़ोरियां सामने आने लगती हैं व उसकी कमज़ोरियों को पहचान लेने के बाद युवक उससे शादी करने से कतराते हैं। लेकिन गर्ल-फ्रैण्ड से शादी न करने का यह कारण बहुत कम देखा गया है। ज्‍़यादातर तो पहले दिए गए कारण ही दृष्‍टिगोचर होते हैं।

प्यार यदि दिल की गहराइयों में डूब कर किया गया है, तो नि:संदेह उसकी मंज़िल शादी ही होनी चाहिए। फिर इस में हर्ज़ भी क्या है? जो लड़की प्रेमिका बनकर आप की ज़िन्दगी रंगीन बना सकती है, वह पत्‍नी क्यों नहीं बन सकती? मुहब्बत कोई फैशन नहीं तथा न ही गर्ल फ्रैण्ड शोपीस है। दूसरों की देखा-देखी हम कपड़े और खान-पान तो बदल सकते हैं, लेकिन प्रेम की अदला-बदली करके किसी के जज़बात से खिलवाड़ नहीं कर सकते। इस तरह के बनते बिगड़ते संबंधों का अंजाम कभी सुकून नहीं दे सकता। फिर इस बात की भी तो गारंटी नहीं है कि आदर्श नारी समझकर आप जिसके साथ घर बसाने जा रहे हैं, वह इस कसौटी पर खरी ही उतरे। शायद वह भी पहले किसी की गर्ल-फ्रैण्ड रह चुकी है। अत: समय की मांग यही है कि जिसे देख परख लिया, उसे ही जीवन साथी बना लिया जाए, जिससे दो दो ज़िन्दगियां बर्बाद होने से बच जाएंगी।

 

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