-गोपाल शर्मा फिरोज़पुरी

मी टू अभियान का अर्थ है एक महिला की आंतरिक पीड़ा कि मेरे साथ भी किसी पुरुष ने यौन शोषण किया है। उसने उन शरीफ़ज़ादों और नेताओं का पर्दाफ़ाश किया है जिन्होंने उसे शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया था। परन्तु उस वक़्त अपनी बदनामी के डर से उसने चुप्पी साध ली थी क्योंकि पुरुष प्रधान समाज में उसकी चीख़-पुकार का कोई महत्त्व नहीं था।

समय ने करवट ली, नारी अपने अस्तित्त्व और स्वाभिमान के प्रति जागरूक हुई और उसके अपने पर हुए अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द करने का साहस उत्पन्न किया है। सदियों से दबी-कुचली नारी अब अपने रक्षण के प्रति डट कर खड़ी हो गई है।

मी टू अभियान द्वारा खुलकर सामने आने वाली नारी की पीड़ा को समझने के लिए यहां पहले पुरुष प्रधान समाज में उसकी स्थिति का अवलोकन करना अनिवार्य है।

पुरुष तो परमेश्वर बन कर भी औरत को अपनी हवस का शिकार बनाता रहा। उसे पांव की जूती समझकर इस्तेमाल करता रहा। बच्चे पैदा करने वाली मशीन समझ कर कामान्धता में लीन होकर घर की मुर्गी दाल बराबर मानकर दूसरी स्त्रियों से भी संपर्क स्थापित करता रहा। कई विवाह करके सौतनें लाकर पत्नी की छाती पर मूंग दलता रहा।

स्त्री घर की चारदीवारी में क़ैद रही। उस पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध थोपे गये। विधवा होने पर सती होने के लिए मजबूर किया गया। बाल कटवाए गये, विधवा आश्रमों में धकेला गया। पर्दा-प्रथा उस पर ठोंसी गई धर्मस्थलों के प्रवेश पर मनाही लगाई गई। इसके विपरीत विधुर या रंडवा पुरुष को दूसरी, तीसरी और चौथी शादी की छूट दी गई। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग से लेकर कलियुग की नारी अब भी पुरुष की ग़ुलामी और अत्याचार को सहन कर रही है। वह इस लोकतंत्र में ज़ंजीरों में जकड़ी हुई है। बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ के नारे खोखले साबित हो रहे हैं। स्त्री-पुरुष की समानता के अधिकार सब खटाई में पड़े हुए हैं।

देखो पुरुष की कितनी कमीनी हरकत है, वह देखती है कि 18 महीने की बच्ची के रेप से उसका हृदय नहीं कांपता। एक दिल्ली की दामिनी और निर्भया की कहानी नहीं है, छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर अधेड़ महिलाओं और 70 वर्षीय बूढ़ियों का शीलभंग किया जा रहा है। बड़े सैक्स स्कैंडल उत्तर प्रदेश के महिला संरक्षण विद्यालयों में चल रहे हैं, भारत के सभी नगरों में लड़कियों और औरतों की ख़रीदो फ़रोख़्त हो रही है। मानव-तस्करी, नारी यौन उत्पीड़न ज़ोरों पर है। मालूम नहीं बाहुबलि और गुंडे कब किसी युवती का अपहरण करके उसके साथ मुंह काला करके हत्या कर दें और कोई कानून उनको पूछने वाला नहीं है। नारी आदलत में दुहाई भी दे तो कोई गुंडों के प्रति मुंह खोल कर गवाही देने को तैयार नहीं, ऐसे में नारी कहां जाए।

प्रश्न खड़ा होता है कि यह सिलसिला कब तक, यह अध्याय कब तक, कहां तक सहन करेगी नारी?

पहले राजाओं के राजतंत्र में राजाओं के अनेकों विवाह करने पर प्रताड़ित होती रहीं। राजपूती के बलपर स्त्रियों को ब्लात् उठा लाना शुरू रहा। जुए में हरा दो, बेच दो -सभी कुछ चलता रहा। धर्म गुरुओं, महात्माओं, ऋषियों-मुनियों और योगियों ने ब्लात् नारी को अपनी हवस का शिकार बनाया। जहां राजे-महाराजे किसी सुन्दर नारी को देखकर सेना लेकर उसको प्राप्त करने के लिए चढ़ाई कर देते थे। वहां ऋषि-मुनि भी काम-पिपासा में अन्धे होकर पराई स्त्री को हम बिस्तर करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते थे। उदाहरण स्वरूप यदि वषिष्ठ मुनि का नाम लिया जाए तो उन्होंने कलभषपाद की पत्नी से अवैध संबंध स्थापित करके अश्मक नामक पुत्र पैदा कर दिया था। ऋषि विश्वामित्र ने यथाति राजा की पुत्री से सम्बंध बनाकर पुत्र उत्पन्न कर दिया था। शुक्राचार्य ने जयंती से प्रेम सम्बंध स्थापित करके देवयानी को उत्पन्न किया था। इन्द्र ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का शीलभंग किया था। वसिष्ठ के पौत्र पराशर ऋषि ने सत्यावती को गर्भवती बनाकर वेदव्यास को जन्म दिया था।

बृहस्पति ऋषि ने अपने भाई की पत्नी से अनाचार करके भारद्वाज ऋषि को जन्म दिया था। बृहस्पति ऋषि की पत्नी को चन्द्रमा (सोम) उठाकर ले गया था। सौभरि ऋषि ने पचास कन्याओं से विवाह किया था। सत्यधृति ऋषि ने उर्वशी से सम्बंध स्थापित करके कृपाचार्य और कृपी ऋषि को जन्म दिया। विश्वामित्र ने मेनका से सम्बंध बनाकर शकुन्तला को जन्म दिया। राजा इक्ष्वांकु के बेटे दंड ने शुक्राचार्य की पुत्री अरजा से बलपूर्वक संबंध बनाए। देव ऋषि नारद लक्ष्मी पर मोहित हो गया। जहां तक कबीर और कर्ण दानवीर का प्रश्न है वो भी नाजायज़ सन्तानें थीं। परन्तु आधुनिक धर्माचार्यों ने तो हद ही कर दी है बड़े आश्रमों में ईश्वर ज्ञान की आड़ में नारियों को अपनी वासना का शिकार बनाया जाता है। साध्वियों से बलात्कार किया जाता है। छोटी-छोटी बालिकाओं से यौन-क्रीड़ा करके उनके जीवन से खिलवाड़ किया जाता है। दीक्षा देने का बहाना बनाकर हरम में रखा जाता है, बन्धक बनाकर कई वर्ष तक उनकी आबरू लूटी जाती है।

धन्य है वो लड़की जिसने आसाराम का भंडाफोड़ किया। नहीं तो न जाने वह कितनी और लड़कियों के अबॉर्शन करवाता, हत्यायें करवा कर मरवा देता। अपने कृत्यों के परिणाम स्वरूप अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जेल में बंद है। उसका पुत्र नारायण साईं भी बड़ा अय्याश और मादक था। वह कई युवतियों का चीर हरण कर चुका था। उसका भंडाफोड़ हुआ तो भागकर छिपने लगा परन्तु कानून के लम्बे हाथों ने उसे धर दबोचा। वह अब जेल की यंत्रणा भोग रहा है। इन सब में रामपाल सब का बाप निकला जिसने 200 कन्याओं का रेप किया। उसका लक्ष्य तो दो हज़ार महिलाओं से सम्बंध बनाने का था मगर पाप का घड़ा भर गया और समय रहते उसकी गिरफ़्तारी हो गई।

किस-किस साधु महात्मा का ज़िक्र करूं, नित्यानंद हो या और कितने ही सनकी बाबा हैैं सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। भोली-भाली नारियों को धर्मोपदेश देकर उनको अपने जाल में फंसा लेते हैं। अपनी इज़्ज़त पर छींटाकशी न हो इसलिए नारी चुप रह कर इन बाबाओं की पोल खोलने से डरती थी। परन्तु जब अति हो जाए तो कोई तो सामने आएगा ही। डेरा सच्चा सौदा हरियाणा के राम रहीम पर यदि कोई लड़की या महिला यौन शोषण का खुलासा न करती तो वह हनीप्रति के साथ मिलकर इस रैकेट से मज़ा लूटता रहता। झूठ का पुलिंदा और मुखौटा कभी न कभी तो उतरना ही था। मी-टू की शुरुआत किसी ने तो करनी थी। अंत में बुराई का फल बुरा होना ही होता है। इस मी-टू के ट्रैप में हैं राजनीति के विधायक, मंत्री, पुलिस अफ़सर, सत्ता के अधिकारी सभी के सभी यौन शोषण में संलिप्त जैसे सभी में नारी को दबोच लेने की भूख हो। कानून के रखवाले ही यदि ऐसा कू कृत्य करें तो नारियों की रक्षा का राम ही बेली है।

काग्रेंस के विधायक, भारतीय जनता पार्टी के मंत्री, समाजवादी पार्टी, आप पार्टी, शिव सेना राजनीतिक पार्टियों का तो ऐसा है कि सभी हमाम में नंगे हैं। काग्रेंस के अमरमणि त्रिपाठी के बाद प्रत्येक राजनीतिक गुट के सदस्यों पर यौन शोषण के आरोप लगे हैं।

अब एम. जे. अकबर भी सैक्स रैक्ट की अगली कड़ी हैं। पत्रकार होते हुए उसने कई अधीनस्थ महिला कर्मचारियों से यौन सम्बंध बनाये हैं। मी-टू के अभियान के तहत उन्हें अपनी गद्दी हिलती हुई दिखाई दे रही है। अब नारियां किसी भी क़ीमत पर प्रतिशोध लेने में जुट गई हैं।

दरअसल सब दफ़्तरों, शिक्षा संस्थानों, सरकारी और प्राईवेट तौर पर काम करने  वाली लड़कियों के साथ किसी न किसी इल्ज़ाम का बहाना बनाकर उनको अपनी हवस का शिकार बनाया जाता है। कभी लेट आने के नाम पर, कभी तरक़्की देने के नाम पर उनको लूटा जाता है। कोई महकमा ऐसा नहीं है जो दूध में नहाया हुआ हो। स्त्रियों की मजबूरी का लाभ साधारण पुरुष से लेकर बड़े से बड़ा ओहदेदार उठाता है। नारी को विश्वास में लेकर उसके साथ विश्वास घात किया जाता है, छल-कपट और धोखा किया जाता है। कोई नारी शेल्टर हाउस, नारी निकेतन या समाज सुधार संस्थाएं सभी नारी के दुश्मन हैं, वे नारी देह की व्यापारी हैं और नारी की अस्मिता को तार-तार करने वाली हैं। नारी उत्पीड़न का सिलसिला निरन्तर जारी रहेगा जब तक नारी अपनी शक्ति का प्रमाण नहीं देगी।

इस नारी सशाक्तिकरण की शुरुआत बॉलीवुड की अभिनेत्रियों द्वारा मी-टू के अभियान द्वारा आरम्भ हो गई है। इसकी शुरुआत अभिनेत्री तनु श्री दत्ता ने की है, जिसने अभिनेता नाना पाटेकर को कानून के दायरे में खड़ा कर दिया है। बाक़ायदा नाना पाटेकर के ख़िलाफ़ एफ. आई. आर लिखवाई गई है। यह मामला फ़िल्म की शूटिंग ‘ऑल ईज़ वैल’ के दौरान घटा। नाना पाटेकर पर आरोप है कि उन्होंने तनुश्री दत्ता को बुरी नीयत से पकड़ कर अपनी गंदी मानसिकता की लपेट में लेना चाहा।

तनुश्री दत्ता की तरह अभिनेत्री संध्या ने भी आलोकनाथ पर आरोप लगाया कि शराब के नशे में धुत्त होकर उसने उस अभिनेत्री को अपनी काम वासना की पूर्ति के लिए रौंदा और मसला। जिस आलोकनाथ को वह अपने पिता समान मानती थी। बेशक यह घटना सन् 1998 की है परन्तु अब वह उठकर आलोकनाथ को उसके कारनामे के लिए चुनौती दे रही है। हिमानी शिवपुरी ने भी सैक्सुअल हरासमैंट के आरेप लगाये हैं। अभिनेत्री कंगना भी अभिनेता ऋतिक रोशन से ख़फ़ा है क्योंकि वह भी यौन उत्पीड़न का दोषी है। संगीतकार गायक कैलाश पर और गायक अभिजीत पर भी यौन शोषण का आरोप है। गायक अनुमलिक भी इस मामले में फंस गये हैं।

अभिनेत्रियों को कोई डायरैक्टर, प्रोड्यूसर नहीं बख़्शता, जिसको मौक़ा मिलता है, जिसका दांव चलता है अभिनेत्रियों के स्पर्श को लालायित रहता है। अब प्रश्न पैदा होता है कि इतनी देर अभिनेत्रियां चुप और ख़ामोश क्यूं रहीं। ये संशय भी उठता है कि कहीं उन्होंने इन प्रेम सम्बंधों को स्वयं स्वीकार कर अपनी भागीदारी दर्ज़ करवाई हो । दूसरा कोई ठोस सबूत उनके पास नहीं है, आरोपों को अदालत कैसे मान ले। यह अलग बात है कि मी-टू के अनुसार कभी भी किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध आरोप लगाने का अधिकार मिलता है। परन्तु निजी दुश्मनी की वजह से भी आरोप लगाया जा सकता है। इस प्रश्न के उत्तर में यह कहा गया है कि कोई स्त्री बिना वजह आरोप लगाकर अपनी इज़्ज़त का जनाज़ा नहीं निकालना चाहेगी। दूसरा यह कि न्यू कमर अभिनेत्री अपनी प्रसिद्धि के लिए काम पाने की मजबूरी या लालच में ज़हर का घूंट पी जाती है।

तीसरी बात यह है कि अभिनेता, डायरैक्टर, प्रोड्यूसर उनको काम देना बंद कर देते हैं जो उनकी हर आपूर्ति में रुकावट बनती हैं। काम अनिवार्यता, बेरोज़गारी की समस्या नारी यौन शोषण का मुख्य कारण हैं। मानव की काम-तृप्ति की लोलुप दृष्टि नारी को लील लेती है।

परन्तु देर से आये दुरुस्त आये। अब मी-टू अभियान शुरू हो चुका है, प्रत्येक मानव, अफ़सर, नेता, अभिनेता ऐसा दुष्कर्म करने से पहले हज़ार बार सोचेगा। सलोनी चोपड़ा, साजिद खां डायरैक्टर को तथा गीतिका सुभाष कपूर को नाकों चने चबाने पर तैयार हो गई हैं। सरकार की भी मी-टू अभियान के प्रति नींद खुली है तथा सरकार इसे कानून के घेरे में ले रही है।

 

2 comments

  1. हर पुरुष अत्याचारी नहीं
    और हर महिला बेचारी नहीं।

    नारीवादियों के पुरुष विरोधी इस अभियान की पहले भी हवा निकल चुकी है। पुरुष विरोधी मानसिकता से बाहर निकलिए, महिलाएं अब अपराध में भी कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है। आपकी एक/एक बात का जवाब है मेरे पास, कभी ओपेन डिबेट की इच्छा हो और दूसरा पक्ष भी सुनना हो तो बता दीजिएगा।
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