– दविन्द्र कालिया

करोड़ों साल बाद तपस्या में लीन जब ब्रह्मा ने आंखें खोलीं तो सबसे पहले उनकी नज़र रिमिक्स धुन बजा रही सरस्वती पर पड़ी। ऐसी धुन उन्होंने पहले कभी नहीं सुनी थी। अपना आश्चर्य दूर करने के लिए ब्रह्मा जी ने सरस्वती से पूछा।

‘ये कौन-सी धुन बजा रही हो देवी?’

‘आप जाग गए प्रभु।’ तभी सरस्वती ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया।

‘यह तो आप ही की लीला है प्रभु।’ सरस्वती ने कहा।

“मेरी लीला।” यह सुनकर ब्रह्मा बहुत आश्चर्यचकित हुए। लेकिन मैंने तो ऐसी धुन का कोई निर्माण नहीं किया देवी। तभी देवी सरस्वती के वीणा के पास रखे एक प्लास्टिकनुमा टुकड़े से आवाज़ आने लगी।

“ट्रिन-ट्रिन …. !”

देवी सरस्वती ने उस प्लास्टिकनुमा टुकड़े को उठाया और उस पर अपनी उंगली से कुछ दबाते हुए अपने कान से सटा लिया।

“हैलो, कौन बोल रहे हैं?”

“प्रणाम माते, मैं इन्द्र बोल रहा हूं।” दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई।

“इन्द्र।”

“प्रणाम।” इन्द्र के प्रणाम का जवाब देते हुए सरस्वती ने कहा।

“क्या ब्रह्माजी तपस्या से जाग गए?” इन्द्र ने पूछा।

“हां” सरस्वती ने कहा। तभी उन्होंने वह प्लास्टिक का टुकड़ा ब्रह्माजी की ओर बढ़ा दिया।

“ये क्या है देवी?” ब्रह्माजी यह दृश्य देख दंग रह गए और उनका मस्तिष्क कई सवालों से घिर गया। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई स्वप्न देख रहे हों। वह जल्दी ही इस स्वप्न से बाहर निकलना चाहते थे। लेकिन जब उनका हाथ उस टुकड़े से स्पर्श हुआ तो उन्होंने वास्तविकता में लौटते हुए उस टुकड़े को सरस्वती की तरह पकड़कर कान से सटा लिया।

“कौन है?”

“प्रणाम ब्रह्मदेव, मैं इन्द्र बोल रहा हूं।”

“इन्द्र, कहां से बोल रहे हो?” ब्रह्माजी को ऐसा लग रहा था जैसे किसी मायावी राक्षस ने इन्द्र को उस प्लास्टिक के टुकड़े में क़ैद कर दिया हो।

“मैं स्वर्ग लोक से बोल रहा हूं प्रभु।” ब्रह्माजी का आश्चर्य दूर करते हुए इन्द्र ने कहा।

“लेकिन तुम इसमें से कैसे बोल रहे हो? ये क्या चीज़ है और यहां कैसे आई?” ऐसे कई प्रश्न ब्रह्माजी ने एक साथ पूछ डाले।

“ये हम आपसे मिलने पर ही सबकुछ बताएंगे प्रभु, आप बस इतना समझ लें कि ब्रह्मलोक का आधुनिकीकरण हो गया है।” तभी उस टुकड़े से आवाज़ आनी बंद हो गई। ब्रह्माजी इन्द्र-इन्द्र चिलाते रह गए, लेकिन उसमें से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी।

“शायद इन्द्र ने फ़ोन रख दिया होगा प्रभु।” सरस्वती ने कहा।

“फ़ोन, तो क्या इस वस्तु का नाम फ़ोन है, आख़िर ये है क्या बला?” ब्रह्माजी ने झल्लाते हुए पूछा।

“प्रभु, इस वस्तु को मृत्युलोक के वासी फ़ोन के नाम से संबोधित करते हैं। इससे एक व्यक्त‍ि किसी दूसरे के साथ आराम से संपर्क कर सकता है, चाहे वह किसी भी जगह हो।”

“लेकिन ये यहां कैसे आया?” ब्रह्माजी का आश्चर्य अभी भी दूर नहीं हुआ था।

“एक छोटी-सी घटना ही इसको ब्रह्मलोक ले आई महाराज।” सरस्वती ने कहा तभी ब्रह्माजी का ध्यान डिब्बे के आकार में पड़े एक और प्लास्टिक के टुकड़े की तरफ़ गया। लेकिन वह टुकड़ा पहले की भांति बड़ा था और उसमें तसवीर भी दिखाई दे रही थी। इसे देखकर ब्रह्माजी तुरंत अपने स्थान से खड़े हो गए।

“वो क्या है?” उस बड़े टुकड़े की तरफ़ इशारा करते हुए ब्रह्माजी ने पूछा।

“वह कम्प्यूटर है प्रभु।” देवी सरस्वती ब्रह्माजी के हर प्रश्न का उत्तर बिना किसी झिझक के दे रही थी। इसमें आप ब्रह्मलोक के किसी भी सदस्य के बारे में जान सकते हैं। अगर चाहें तो किसी से संपर्क भी कर सकते हैं।

“वह कैसे?” ब्रह्मा ने पूछा।

“इसके लिए आपको मेरे साथ कम्प्यूटर के पास बैठना होगा।” सरस्वती ने कहा।

तभी ब्रह्मा और सरस्वती कम्प्यूटर के पास जाकर बैठ गए।

देवी सरस्वती ने कम्प्यूटर के पास पड़े बटनों के संग्रह वाले एक और प्लास्टिक के टुकड़े जिसे की-बोर्ड कहा जाता है पर कुछ बटन दबाए तो ‘याहू विष्णु डाट कॉम’ का लिखा हुआ जिष्ट सामने आया।

“ये क्या लिखा है देवी?” ब्रह्माजी ने पूछा।

“इसमें भगवान् विष्णु के पूर्व की सब गाथा है प्रभु, जैसे कि उन्होंने कितने वर्ष तपस्या की, भक्तों के कल्याण के लिए मृत्युलोक पर कितने जन्म लिए और किस-किस रूप में लिए, कितने राक्षसों को मारा और क्या-क्या लीलाएं की, ऐसी बहुत-सी जानकारियां इसमें मौजूद हैं प्रभु।” सरस्वती ने कहा।

“तो क्या इसमें मेरे बारे में भी कोई जानकारी है?” अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए ब्रह्मा जी ने पूछा।

“ये सब कुछ तो आपकी ही माया है प्रभु।” सरस्वती ने कहा।

सरस्वती के उत्तर से ब्रह्माजी का आश्चर्य जाने की बजाय इस ओर उनकी जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी। अभी वह उस वस्तु के बारे में अच्छी तरह नहीं जान पाए थे उन्होंने तुरंत भोलेनाथ और विष्णु से मिलने की इच्छा प्रकट की। जिस के लिए उन्होंने दोनों का मन ही मन सुमिरन किया लेकिन उनकी आवाज़ न तो विष्णु तक पहुंच रही थी और न ही भोलेनाथ तक। तब वह खुद चलकर पहले कैलाश पर्वत पहुंचे। तब उन्होंने देखा कि शिव भी उसी कम्प्यूटर नाम की वस्तु के पास बैठे हैं और साथ ही गणेश जी उसका संचालन कर रहे थे।

“भोलेनाथ की जय हो।” ब्रह्माजी ने पास पहुंचते ही कहा।

आवाज़ की तरफ़ सिर उठाते ही शिव भी एक दम खड़े हो गए।

“आप उठ गए प्रभु।” भोलेनाथ ने भी ब्रह्माजी का हाथ जोड़कर अभिवादन किया।

लेकिन गणेश जी का ध्यान एक पल के लिए भी इधर-उधर नहीं हुआ। वह तो लगातार उस कम्प्यूटर से जुड़े बैठे थे। जो पैदा होने वाले नर का भाग्य उसमें संजोए जा रहे थे।

“ये ब्रह्मलोक में कैसा संकट आ गया भोलेनाथ?” अपनी जिज्ञासा दूर करने के लिए ब्रह्माजी ने पूछा।

“ये तो आपकी ही लीला है प्रभु।” हर तरफ़ उन्हें यही जवाब मिल रहा था, जो भोलेनाथ ने दिया। ब्रह्मा के करोड़ों साल तपस्या में लीन होने के कारण सब यही समझ रहे थे कि यह सब उनकी लीला है, जिस कारण हर तरफ़ से उन्हें यही जवाब मिल रहा था।

नारायण-नारायण, की आवाज़ गूंजने के साथ ही नारद मुनि भी वहां प्रकट हो गए।

“भोलेनाथ की जय हो।”

“प्रणाम पिताश्री!”

नारद को आशीर्वाद देने की बजाय ब्रह्माजी ने उनसे भी वही प्रश्न दोहराया।

“आप तो अपनी लीला ही नहीं पहचान रहे हैं ब्रह्मदेव।” यह कहते हुए नारद का चेहरा मुस्कान से खिल गया था, जिस कारण ब्रह्मदेव उन्हें शंका की दृष्ट‍ि से देख रहे थे। उनका मस्तिष्क नारद के इस षड्यंत्र को समझने की कोशिश कर रहा था।

“कहां खो गए महाराज, अगर आप अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाहते हैं तो आपको मेरे साथ यमलोक चलना होगा।” नारद की यह बात सुनकर भोलेनाथ भी दंग रह गए।

“यमलोक! लेकिन …. ।” तभी नारद ने भोलेनाथ से साथ चलने का आग्रह किया।

तीनों हवा के झोंकों को पीछे छोड़ते हुए यमलोक की ओर बढ़ते जा रहे थे। इसी बीच ब्रह्माजी का ध्यान पृथ्वी की ओर आकर्षित हुआ, जहां उनको आसमां को छूती हुए कुछ मीनारें दिखाई दीं और इन मीनारों से भी ऊपर हवा में तैर रही एक वस्तु दिखाई दी।

“अब ये क्या बला है?” ब्रह्माजी ने पूछा। वह मन ही मन यह सोच रहे थे कि शायद किसी मायावी राक्षस ने कठोर तपस्या कर कोई वरदान प्राप्त कर लिया है। जिसके बल पर वह यहां आतंक मचाने के इरादे से आ रहा है।

“इसे पृथ्वीवासी जहाज़ के नाम से संबोधित करते हैं प्रभु।” नारद ने कहा।

“नारायण-नारायण, भगवान् नारायण-नारायण …. ।” जहां नारद की मधुरवाणी वातावरण को भक्त‍िमय बना रही थी वहीं ब्रह्मदेव का अस्थिर मन किसी दलदल की गहराई में डूबता जा रहा था। इतने में ही वे यमलोक पहुंच गए।

अभी वह नीचे उतर ही रहे थे कि वहां उन्हें ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ें आने लगीं।

“नहीं छोड़ूंगा मैं ब्रह्मलोक को, यहां भी अपना घर बनाऊंगा, अंतरिक्ष की बजाए अब यहीं मेरा अड्डा होगा, इसके लिए मुझे कोई नहीं रोक सकता, कोई नहीं …. ।” लेकिन सब उसे चुप कराने की बजाए उससे दूर हटते जा रहे थे।

“यहां क्या हो रहा है? कौन है यह प्राणी और क्यों चिल्ला रहा है?” ब्रह्माजी ने तत्काल पूछा।

लेकिन सब सिर झुकाए खड़े थे। यह देख नारद ने उन्हें पहले अन्दर प्रवेश करने को कहा। अन्दर प्रवेश करते ही ब्रह्मा की नज़र यमराज और धर्मराज पर पड़ी जो कम्प्यूटर के पास बैठकर सामने खड़े सैंकड़ों मृतजीवों के कर्मों की फ़ाइल खोल कर उनका लेखा-जोखा देख रहे थे। जो भी प्राणी अपना नाम बता रहा था, कम्प्यूटर में उसके नाम की फ़ाइल खोल दी जाती थी और उसके हिसाब-किताब का आंकलन कर उसे स्वर्ग और नर्क में भेज दिया जाता था।

“ये सब कुछ यहां भी!” ब्रह्मा जी आगे बढ़ते हुए बोले।

“नारायण-नारायण, नारद के भक्त‍िस्वर ने दोनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।”

“ब्रह्मदेव की जय हो, भोलेनाथ की जय हो।”

“प्रणाम मुनिवर!” हाथ जोड़कर अपनी जगह से उठते हुए यमराज और धर्मराज ने कहा।

“ये सब क्या है यमराज? ब्रह्मलोक का आधुनिकीकरण, कैसे हुआ ये सब?” ब्रह्माजी ने पूछा।

 “प्रभु बहुत साल पहले हमारा एक साथी ग़लती से किसी वैज्ञानिक को उठा लाया। जब हमने उसका खाता देखा तो उसकी लगभग 45 वर्ष की आयु शेष थी। हमने तुरंत उसे नीचे भेजा, लेकिन तब तक उसके परिजन उसका शरीर जला चुके थे। जब हमने उसे किसी दूसरे का शरीर देने की बात कही तो वह बिगड़ने लगा और उसने हमारी इस ग़लती के बदले एक वरदान मांग लिया कि वह यहां भी धीरे-धीरे पृथ्वीलोक की तरह विज्ञान का युग लाएगा और ब्रह्मलोक का आधुनिकीकरण करेगा। लेकिन प्रभु, उसने जो ये हमें कम्प्यूटर और टेलीफ़ोन नाम का तोहफ़ा दिया है उससे तो हमारी सारी चिंता ही मिट गई। अब हम किसी भी प्राणी का लेखा-जोखा, उसकी आयु समाप्त‍ि तथा कर्मों का हिसाब-किताब आराम से देख सकते हैं और टेलीफ़ोन से कहीं भी संपर्क कर सकते हैं।” यमराज ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा।

लेकिन ब्रह्मदेव को ऐसा लग रहा था कि उन्हें आराम की वस्तु न मिलकर कोई गहरा दलदल मिल गया है। तभी ….. ।

“त्राहिमाम-त्राहिमाम” ज़ोर-ज़ोर से कुछ आवाज़ें ब्रह्माजी के कानों में गूंजने लगीं, जिस कारण उनकी आंख खुल गई और ब्रह्मा ने यमराज सहित बहुत से यमदूतों को अपने सामने उपस्थित पाया।

“अरे! मैं तो वाक़यी ही दुःस्वप्न देख रहा था!” ब्रह्माजी अपने मन ही मन बोले।

“ब्रह्मदेव की जय हो।” यमराज ने ब्रह्माजी के पांव पर अपना सिर रखते हुए कहा। जब यमराज का सिर ब्रह्माजी के पांव से छुआ तो वह तुरंत वास्तविकता में लौट आए।

“क्या हुआ?” यमराज के सिर पर हाथ रखते हुए ब्रह्मदेव ने पूछा।

“प्रभु हमारा एक यमदूत ग़लती से एक व्यक्त‍ि को पकड़ लाया है, जब हमने उसके कर्मों का खाता खोला तो उसमें उसकी आयु शेष पड़ी दिखाई दी और वह पृथ्वी का सबसे बड़ा वैज्ञानिक भी है। हमने उसे वापिस जाने की बात कही तो वह प्राणी कहने लगा कि आख़िर मैंने इंडियन गॉड ढूंढ़ ही लिया। इसके लिए मैं भारतीयों से भारी रक़म वसूलूंगा।” यह सुनकर ब्रह्माजी मुस्कुरा पड़े।

ऐसा नहीं होगा, उसे वापस अपने शरीर में जाना होगा। इस लोक का पता किसी भी मानव को नहीं चल सकता, किसी को भी नहीं …. । इसके लिए मानव को अपने मन में खोज करनी होगी, अपने …. ।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*