महान् उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय फ़िल्मकारों की हमेशा अच्छी पसंद में रहे हैं। विधु विनोद चोपड़ा उनके लोकप्रिय उपन्यास परिणिता पर इसी नाम से फ़िल्म लेकर आए। हालांकि परिणिता पर इससे पहले अलग-अलग नाम से दो फ़िल्में बन चुकी थीं। पर शरत की और कई कहानियों पर फ़िल्में बन चुकी हैं। उनकी कहानी राम की सुमति पर अनोखा बंधन (शबाना आज़मी अभिनीत) मझली दीदी (मीना कुमारी, धर्मेंद्र व सचिन) बड़ी दीदी जैसे कई नाम हैं, देवदास पर तो तीन बार इसी नाम से फ़िल्में बनीं। पहली बार देवदास में कुंदनलाल सहगल थे तो दूसरी बार देवदास में दिलीप कुमार व संजय लीला भंसाली की देवदास में शाहरूख ख़ान। इतना ही नहीं देवदास पर कई बार और भी फ़िल्म बनाने के प्रयास हुए।
आख़िर क्या कारण है कि शरतचंद्र के उपन्यास पर निर्माता फ़िल्म बनाना पसंद करते हैं। उनके उपन्यासों के कथानक के मोड़ ऐसे हैं जो फ़िल्म की भाषा के अनुरूप हैं। इसमें निर्माताओं को ज़्यादा बदलाव नहीं करना पड़ता है। शरत की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता है उनके उपन्यासों के नारी पात्र। शरत की नारी दया व त्याग की मूर्ति होती है। वह भारतीय नारी की आदर्श प्रतिमूर्ति होती है। वह कर्म करना जानती है पर श्रेय लेने के लिए आगे नहीं आती। हालांकि कई और बड़े कहानीकारों ने फ़िल्म इंडस्ट्री की ओर रुख किया पर वे उतने सफल नहीं हो सके। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पर भी फ़िल्में बनीं पर वे उस तरह सफल नहीं हो सकीं। मृणाल सेन ने उनकी प्रसिद्ध कहानी कफ़न पर इसी नाम से फ़िल्म बनाई थी। पर वह फ़िल्म दर्शकों की भीड़ अपनी ओर खींचने में सफल नहीं हो सकी। इसी तरह समय-समय पर अन्य उपन्यासकारों की कहानियों पर भी फ़िल्में बनीं। कई कहानीकारों ने निर्माताओं पर अपनी कहानी के संग छेड़छाड़ के गंभीर आरोप भी लगाए।
जून 2005 में प्रदर्शित होने वाली फ़िल्म पहेली जिसमें शाहरूख ख़ान व रानी मुखर्जी ने अभिनय किया विजयदान देथा के उपन्यास पहेली पर आधारित थी। राजस्थानी पृष्ठभूमि के कथानक पर आधारित इस फ़िल्म से इसके निर्माताओं को काफ़ी उम्मीदें बंधी थी। अक्सर फ़िल्मकार इस बात का रोना रोते हुए देखे जाते हैं कि उन्हें अच्छी कहानी नहीं मिलती। सुपर स्टार अच्छी कहानी की तलाश में निराश रहते हैं। वहीं हिन्दी के उपन्यासकार अपनी कहानी के साथ फ़िल्म बनाए जाने पर बलात्कार के आरोप लगाते हैं। कई बार उपन्यासों पर अच्छी फ़िल्में भी बनी हैं। फणीश्वर नाथ रेणू की कहानी मारे गए गुलफ़ाम पर बनी फ़िल्म तीसरी क़सम इसका शानदार उदाहरण है। हालांकि यह फ़िल्म भी अच्छा बिजनेस नहीं कर सकी थी। राजेंद्र यादव के उपन्यास सारा आकाश पर भी फ़िल्म बन चुकी है। पर शरत जैसा शानदार प्लाट निर्माताओं को कहीं और नहीं नज़र आता है। यही कारण है कि शरत आज भी लोकप्रिय हैं।