-संदीप कपूर

विवाह भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पुरुष और नारी के उस रिश्ते का नाम है, जो उन्हें जीवनपर्यंत निभाना होता है और इस रिश्ते में यदि मामूली-सी दरार भी पड़ जाए तो दाम्पत्य के छिन्न-भिन्न हो जाने में कोई कसर नहीं रह जाती। पति-पत्नी के आपसी विचारों की एकता पर ही दाम्पत्य की नींव सुदृढ़ बनती है। विचारों में सामंजस्य होने पर ही दाम्पत्य जीवन सफल बनता है इसलिए यह आवश्यक है कि विवाह से पहले युवक-युवती, एक-दूसरे से मिलकर आपसी विचारों को जानने तथा समझने का प्रयत्न करें।

अक्सर ऐसा होता है कि विवाह से पूर्व जब लड़का-लड़की मुलाक़ात करते हैं तो गंभीरतापूर्वक एक-दूसरे के विचार जानने की बजाय अटपटी तथा फ़िजूल की बातचीत शुरू कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि इसी निरर्थक बातचीत या गपशप को वे खुशहाल गृहस्थी का पर्याय मानकर एक-दूसरे से प्रभावित हो जाते हैं और झटपट विवाह कर डालते हैं। परन्तु बाद में उन्हें पछताना पड़ता है। आज का युवा वर्ग शिक्षित है और शिक्षा का इससे बेहतर उपयोग क्या हो सकता है कि उस मुलाक़ात में ही भावी जीवन का लेखा-जोखा ले लिया जाए?

सुजाता के साथ प्रेम में असफल रहने पर अमित ने झटपट पिंकी से विवाह रचा लिया। पर पिंकी के आधुनिक विचार उसके घर के बंद चौखटों से टकराने लगे और उनकी पारिवारिक स्थिति बिगड़ने लगी। अगर अमित धैर्य तथा विवेक से काम लेते हुए शादी से पहले पिंकी से मिलकर विचार-विनिमय करता, तब वह भली-भांति पिंकी के विचारों तथा अपेक्षाओं से अवगत हो सकता था। यही ग़लती पिंकी की भी थी।

युवक हो या युवती, वे अपने भावी जीवन साथी के सम्बन्ध में जो अपेक्षाएं रखते हों, उन्हें खुलकर व्यक्‍त कर लेना चाहिए। प्राय: यह देखा जाता है कि युवतियां अपने विवाह हेतु इस पहलू को गंभीरता से नहीं लेती। उन्हें इस मुलाक़ात के वक़्त अपनी स्वाभाविक लज्जा को कुछ लम्हों के लिए त्याग देने पर विवाहोपरांत की स्थिति का जायज़ा मिल सकता है। यदि वे विवाह के पश्चात अपने किसी कार्य को करना अथवा जारी रखना चाहती हैं, तब वे अपनी आकांक्षाओं को उसी मुलाक़ात के दौरान अभिव्यक्त कर, वर पक्ष की राय जान सकती हैं।

श्‍वेता ने तो यहां काफ़ी बुद्धिमता का परिचय दिया। वह बी.ए.कर चुकी थी तथा विवाहोपरांत एम.ए.करके किसी सरकारी सेवा में कार्यरत होना चाहती थी। जब लड़के वाले उसे देखने आये, तब उसने लड़के के सम्मुख नम्रतापूर्वक अपना प्रस्ताव रखा किन्तु लड़के ने अपनी पारिवारिक संकीर्णता का परिचय देते हुए न कर दी। तब श्‍वेता ने उससे शादी करने में असमर्थता ज़ाहिर करते हुए अपने कैरियर तथा भावी दाम्पत्य के बिखराव को बचा लिया। नहीं तो यह निश्‍चित था कि विवाहोपरांत ससुराल से स्वीकृति न मिलने पर उसकी उमंगे धरी की धरी रह जाती, सपने बिखर जाते। मानसिक रूप से भी उसे चोट पहुंच सकती थी और हर तरह से दाम्पत्य में बिखराव तो निश्‍चित ही था। बाद में श्‍वेता ने अपने विचारों को मान्यता एवं सम्मान देने वाले एक अन्य युवक से विवाह कर लिया। आज वह अपनी गृहस्थी में पूरी तरह सुखी है।

पुरुषों को विवाह पूर्व की मुलाक़ात के दौरान अपनी पारिवारिक या जातीय मान्यताओं, प्रथाओं आदि का ज़िक्र करना नहीं भूलना चाहिए। अंतर्जातीय विवाह की अवस्था में तो यह और भी आवश्यक है।

विवाह से पूर्व आपसी बातचीत द्वारा युवक-युवती को एक-दूसरे को आंकने तथा परखने का पूरा प्रयास करना चाहिए। उस समय स्पष्ट तथा निर्भीक बन अपने विचार अभिव्यक्त करने चाहिए। एक-दूसरे को अपने विचारों की कसौटी पर परखिये, किंतु आपके विचार सुलझे हुए, शुद्ध एवं स्वच्छ होने चाहिए। आपसी परख द्वारा एक-दूसरे का नज़रिया समझ लेने के उपरांत आपके लिए निर्णय लेने में आसानी रहेगी। अपना फ़ैसला उसी समय बयान न कर दें। अपितु बाद में अच्छी तरह सोच-विचार कर परिवार के सदस्यों की सहमति पर ही कोई पग उठायें।

जिस प्रकार हम किसी वस्तु की अनेक क़िस्मों में से भली-भांति सोच-समझकर व गुण-दोष परख कर वांछित वस्तु को छांटते हैं, ठीक वैसे ही स्थिति विवाह के संबंध में भी है। आपसी परख करने से आपको अपने वैवाहिक जीवन में उलझनों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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