चलना है इसलिए चल दिए हैं, उठना है इसलिए उठ पड़े हैं। यूं बेमक़सद-सा चलते जाना क्‍यूं ज़िन्दगी का दस्तूर हुआ।

आशा से भरी निगाहें लिए मन में ढेरों सपने सजाए कब से चल रहे हैं पल भर पलट कर देखें, सोचें क्या बदला, क्या पाया। उम्मीद के उस छोर से हम कितनी दूर। आशा थी हमें कि औरत को उसका सही स्थान मिलेगा। वो अपना आत्मसम्मान पा ही जाएगी, ले ही लेगी बांहों में आकाश एक दिन। बदलेगी इक दिन तक़दीर हमारी। सुनहरा दौर आएगा।

कैसी ये आशाएं, कैसी उम्मीदें ??

क्यूं वही काजल की लकीरों से चेहरे पर लिखी कहानियां। वही मजबूरियां, वही बेबसी। उसकी कहानी बदली तो ज़रूर है, उसकी मजबूरियों का आलम ख़त्म नहीं हुआ हां अब उनका रूप बदल गया है। अब कुछ और तरह की मजबूरियों के बादल उसके सिर पर मंडराने लगे हैं। जितनी वो सयानी होती गई है शोषक कुछ और शातिर हो गए हैं। संरक्षक कुछ और सख़्त। कैसे दोराहे हैं ये? कुछ कर दिखाने के वलवले भी हैं मर्यादाओं की सख़्त ज़ंजीरें और नोचने को तैयार नरभक्षी।

दिल दहला देने वाला निठारी कांड हालांकि हमारे इस विषय के अंदर बेशक नहीं आता। पर दो पल इसकी बात करने को विवश से हो रहे हैं हम। दिन-ब-दिन अधिक से अधिक ख़ौफ़नाक हादसे बढ़ते रहे पर यह कौन-सा मंज़र था जो अभी देखना बाक़ी था। किस दिशा में जा रहा है आज का मानव। ऐसा घिनौना रूप यदि मानव का हो सकता है तो अब मानवता के लिए क्या सोचना बाक़ी रहा।

ख़ैर हम अपने विषय पर वापिस आते हुए बात करते हैं आज की औरत की स्थिति पर। कुछ रोज़ पूर्व ही किसी लेखक से बात करते हुए हम चिन्तन कर रहे थे औरत की बढ़ रही परेशानियों की। मेरा मानना तो यही है कि जितनी राहें उसके लिए खुल रही हैं उतनी ही छटपटाहट उसके अंदर बढ़ी है। क्यूंकि उसको सभी रास्ते तो नज़र आते हैं परन्तु हरेक युवती को अपने घर से पूरा सहयोग नहीं मिल पाता और आज की नवयौवनाओं को ज़रूरी लगने लगा है घर से बाहर नि‍कलना।

और हम यह भी देखते ही हैं कि कामकाजी महिलाएं भी संघर्षपूर्ण जीवन ही व्यतीत कर रही हैं। औरतों के इस संघर्ष को लेकर, इस तनाव को लेकर इस बात पर भी चिन्तन हुआ कि क्या इसका मतलब है कि महिलाओं का कामकाजी न होकर घरेलू होना ही बेहतर है?

लेकिन मेरा मानना तो यह है कि हर संघर्ष के बावजूद औरत की कोई अपनी पहचान तो होनी ही चाहिए। घरेलू औरत की पहचान मिसिज़ त्रिवेदी या मिसिज़ खन्ना तक ही सीमित हो जाती है। उसका तो अपना नाम तक भी कहीं खो जाता है। आज यदि उसके लिए राहें खुली हैं तो उसको इन राहों पर चलने का हक़ मिलना ही चाहिए। घर परिवार से पूर्ण सहयोग उसके साथ रहना ही चाहिए। तभी तो वो अपने कार्य सहज होकर कर पाएगी और अपनी पहचान बना पाएगी।

फिर आज अनेकों रास्ते उसके लिए खुलने के साथ-साथ कानून भी तो उसके साथ आ खड़ा हुआ है। उस पर ज़ुल्म तो बस इतना है कि उसे इस सब की तमीज़ ही नहीं दी जाती। और आज की दुनिया में उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है बेख़बरी।

औरत की हस्ती यही रही वो अपनों पे मिट गई।
अपनों ने ही उसको रौंदा रिश्तों से कट गई।

वो दिन लद गए जब अपनी बेटियों को सिखाया जाता था कि ऊंची आवाज़ में बात नहीं करनी, किसी से झगड़ा होने पर भी लड़कियों की ही बदनामी होती है इत्यादि-इत्यादि। आज तो अपनी बेटियों को पूरी दुनिया से जूझना सिखाना ही पड़ेगा, वर्ना वो कभी अपना स्थान बनाना नहीं सीख पाएंगी और अपना मुक़ाम हासिल नहीं कर पाएंगी।

लड़कियों को अजीब से तरीक़े की सीख दी जाती है जिसके बारे में हम अकसर पढ़ते सुनते ही रहते हैं। लेकिन कुछ बातें तो बिल्कुल हैरत में डाल देती हैं। कई ऐसी बातें हैं जिनके बारे में मैं बार-बार सोचती हूं मन में कई सवाल उठते हैं पर जवाब नहीं मिलता।

लड़कियों को सिखाया जाता है कि जब कोई लड़का बदतमीज़ी करता है और लड़की की ख़िलाफ़त करने के कारण यदि शोर होता है तो बदनामी लड़की की ही होती है। लड़कों से झगड़े न हों इसके बारे में तो लड़कियों को सिखाया ही जाता है बाक़ी घर वालों की आपसी बातें भी उसे बहुत कुछ सिखा जाती हैं।

“फलां लड़की ने किसी लड़के के बदतमीज़ी करने पर आकर बता दिया। उसे इतनी समझ नहीं कि इस बात से बदनामी तो उसी की होगी।“ मुझे ये समझ में नहीं आता अगर ग़लती लड़के ने की हो तो बदनामी लड़की की क्यूं ?

                वो विरोध क्यूं न करे?
               वो क्यूं न बोले?

हम यदा-कदा ऐसी बातें कर-कर के अपनी बेटियों को कमज़ोर बनाते रहते हैं। वो भी सोचती हैं कि यदि विरोध न करें तो करें क्या? बस छुप कर रहें? सारी उम्र बचती फिरें?

नहीं, अब और नहीं।

इन सब बातों के हल ये नहीं। बेटियों को सही-ग़लत की तमीज़ तो देनी चाहिए, हर बुरे वक्‍़त के लिए तैयार करते रहना चाहिए। पर उसे कमज़ोर हरगिज़ नहीं बनाना। तमाम राहें खुली हैं उसके लिए, उसने छूना है आसमानों को। मन की कमज़ोरी उसके रास्ते का रोड़ा न बनने पाए यह आप ही ने तो सोचना है, आप ही ने शक्ति देनी है उसे। इतनी शक्ति दें कि उसे हर संघर्ष में आप अपने साथ दिखाई दें। उसने हर नए रास्ते पर अपनी मोहर लगानी है। आज उसके रास्ते संघर्षपूर्ण ही सही पर उसने इन रास्तों पर तो चलना ही है। अगर आज कच्ची पगडंडियों पर उसे चलना भी पड़ा तो आने वाली पीढ़ी के लिए सशक्त मार्ग वो तैयार कर ही पाएगी।

-सिमरन

One comment

  1. Well written.

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