घर मेहमानों से खचाखच भरा था। तिल रखने की भी जगह न थी। सभी के चेहरे पर एक अनोखी चमक व चित्त में उल्लास था। और हो भी क्यूं न? घर में पहली शादी जो थी- सुषमा और आलोक की लाड़ली बेटी कंचन की।

ढोलक की थाप के बीच सुहाग गीतों से वातावरण गूंज रहा था। शहनाइयों की गूंज हवा की तरंगों पर अठखेलियां कर रही थी। मेहंदी से रचे हाथ, हल्दी लगा तन और कलाई भर-भर कर पहनी गयीं लाल-लाल चूड़ियों को देखकर कंचन फूली नहीं समा रही थी। उसकी सहेलियां उसे चारों ओर से घेरे बैठी उससे छेड़खानी कर रही थीं। उनकी छेड़खानी जहां एक ओर उसके मन को गुदगुदा रही थी, वहीं दूसरी ओर इस घर से बिछड़ने का ग़म उसे आहत किए जा रहा था और वह ग़मगीन हो उठी। तभी बारात आने का शोर गूंजा और लड़कियां पल्लू संवारती, आंचल संभालती और चेहरे पर लटें बिखराती बाहर लपकीं।

सुर्ख़ लाल जोड़े में लिपटी और गहनों से लक-दक करती कंचन ने जब छज्जे से बाहर झांककर देखा तो अपने दूल्हे को बस देखती ही रह गई। लंबा क़द, गोरा रंग, चौड़ा माथा और सिर पर बंधा सेहरा कंचन का सपना तो जैसे साकार हो उठा। ऐसे ही तो एक राजकुमार को जीवन-साथी बनाने का सपना देखा करती थी वह और आज वही सपना हक़ीक़त बन कर साक्षात् उसके दरवाज़े पर खड़ा था। एक बार तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। यह जानने के लिए कि कहीं वह सपना तो नहीं देख रही, उसने अपने गाल पर चिकोटी काटी और इसी के साथ एक आह उसके मुंह से निकल पड़ी। पास ही खड़ी उसकी प्रिय सहेली निधि न जाने कब से उसकी हरकतों को ग़ौर से देख रही थी और जैसे ही कंचन की नज़र निधि पर पड़ी, वह शर्माकर उससे लिपट गई।

“अरे, यूं ही दूर से अपने दूल्हे को देखकर हाय-हाय करती रहेगी, वरमाला नहीं डालनी है उसके गले में?” निधि की इस बात पर वह खिलखिलाती हुई उसके साथ-साथ नीचे उतर आई।

वरमाला की रस्म के बाद प्रीति भोज, फिर भांवरे, कंचन सम्मोहित-सी अपने सपनों के राजकुमार आकाश के पीछे-पीछे घूमती रही और फिर वह घड़ी भी आ पहुंची जब वह अपने ही घर से पराई होकर एक अजनबी का घर बसाने जा रही थी।

मां ने बलैयां लेकर जब उसे गले से लगाया तो वह मां से इस तरह लिपट गई जैसे उसे कोई ज़बरदस्ती मां से छीन कर ले जा रहा हो। पापा का स्नेहल स्पर्श सिर पर महसूस किया तो उसकी आंखों से गंगा यमुना बह निकली। न जाने कितनी देर पापा के गले से लगी रोती रही। रोते-रोते सहेलियों की हिचकी बंध गयी और अन्ततः उसे गाड़ी में बिठा ही दिया गया।

ससुराल में क़दम रखते ही सास ने उसे हाथों पर उठा लिया। ससुर का स्नेह पाकर कंचन निहाल हो गयी। पर उसके सुनहरे सपने पहली ही रात को चूर-चूर होकर बिखर गए। उनकी किरचों से उसका दिल लहूलुहान हो गया और उसकी आंखों के रास्ते बह निकला। सुहाग सेज पर बैठी जब वह अपने पति के प्यार की कल्पना में खोई थी तभी आकाश ने कमरे में प्रवेश किया और पहली ही रात आकाश ने उसे यह कह कर संज्ञा शून्य कर दिया कि वह किसी और को चाहता है। चूंकि वह अभी अपनी पढ़ाई पूरी कर रही है, इसलिए उसे अभी इंतज़ार करना है। पापा दिल के मरीज़ हैं। अतः उनकी खुशी की ख़ातिर उसे इस शादी के लिए मजबूरन हां करनी पड़ी।

आकाश के ये शब्द कंचन के ऊपर ऐसे पड़े थे जैसे किसी ने बम फेंक दिया हो। मन टुकड़े-टुकड़े हो छितर गया था। सब्र का बांध सारे किनारे तोड़ कर बह निकला, पर आकाश ने मुड़कर उसकी ओर देखा तक नहीं और वह तीर की तरह कमरे से बाहर निकल गया।

मेहंदी रचे हाथों में मुंह छिपाकर, सुहाग सेज पर बैठी कंचन सारी रात उसे आंसुओं से भिगोती रही। सपनों का महल पलभर में धाराशायी हो गया। सारे अरमान आंसू बनकर आंखों के रास्ते बह गए। उसकी ज़िन्दगी मंझधार में डोलती नाव की तरह हिचकोले खाने लगी। उसके सामने उसका अंधकारमय भविष्य राक्षस की तरह मुंह बाए खड़ा, उसे निगलने को आतुर था। उसे अपने जीवन से घृणा हो गई। पल भर में ही जीवन का मोह ख़त्म हो गया। इसे ख़त्म करने की योजनाएं एक के बाद एक उसके दिमाग़ में जन्म लेने लगीं। उसने फौरन अपनी सुर्ख़ लाल साड़ी खोली और छत पर झूल रहे पंखे पर अटका दी। दूसरा सिरा वह अपनी गर्दन में लपेटने लगी कि तभी दीवार पर टंगी सास-ससुर की मुस्कुराती हुई तसवीर पर उसकी निगाह पड़ी। उसका स्नेह सिक्त चेहरा देखते ही वह सिहर गयी। जीवन त्यागने का विचार उड़न छू हो गया। उसने अपने को संयत किया। उसने फै़सला किया कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, ऐसा कुछ भी ज़ाहिर नहीं होने देगी जिससे उसके सास-ससुर के दिल को ठेस पहुंचे। ससुर तो पहले ही दिल के मरीज़ हैं। यदि उन्हें इस बात का पता चल गया तो अनर्थ हो जाएगा। अतः उसे धैर्य से काम लेना होगा और समझदारी दिखानी होगी। जल्दबाज़ी में उठाया गया कोई भी क़दम ठीक नहीं होता। समय ने जो उसकी ये अग्नि परीक्षा ली है, इसमें वह खरी उतरकर दिखायेगी। अपने प्यार और विश्वास से वह एक दिन आकाश को अपना बनाकर दिखायेगी।

इसी ऊहापोह में रात काफ़ी बीत चुकी थी। शादी की रस्में निभाते-निभाते वह काफ़ी थक गई थी। उसने अपने आंसू पोंछे और लेट गई। थकी होने के कारण उसे लेटते ही नींद आ गई।

सुबह फ्रैश होकर जब वह कमरे से बाहर निकली तो बिल्कुल सामान्य थी। उसने ऐसा कुछ भी ज़ाहिर नहीं होने दिया कि रात कोई ऐसी अनहोनी हुई है जिसने उसके जीवन में अंधेरा कर दिया है। नाश्ते के समय बड़े ही विनम्र भाव से उसने ससुर से कहा, “पापा, यदि आप अनुमति दें तो मैं आगे पढ़ना चाहती हूं।”

“हां-हां बेटी, क्यूं नहीं? यह तो बड़ी अच्छी बात है। हमें कोई एतराज़ नहीं है,” और उसके ससुर ने जब अपनी पत्नी की तरफ़ देखा तो उन्होंने भी बड़े प्यार से कंचन के इस फै़सले पर स्वीकृति की मोहर लगा दी। कंचन ने सास-ससुर के चरण-स्पर्श किए तो आकाश हतप्रभ-सा खड़ा उसके फै़सले को सुन, उसे देखता ही रह गया।

कंचन ने कॉलेज में दाख़िला ले लिया। अब वह सुबह जल्दी उठकर घर के सारे काम बड़ी निपुणता से निपटाती और फिर कॉलेज चली जाती। दोपहर को घर आकर फिर काम में जुट जाती। रात को सबको खाना खिलाने के बाद वह दो घंटे जमकर पढ़ाई करती। वह जी जान से पढ़ाई में जुट गई। उसने अपने मन को संयमित कर लिया था। आकाश के साथ रहते हुए भी कभी उसके क़दम डगमगाए नहीं थे। वह जीवन की इस अग्नि परीक्षा में खरी उतरने के लिए बड़े ही मनोयोग से जुटी हुई थी। बहुत ही धैर्य के साथ वह अपने पति का तिरस्कार सह रही थी। आकाश उससे बात करना तो दूर, कभी नज़र उठाकर भी उसकी तरफ़ नहीं देखता था। कंचन का दिल घायल हो जाता। पर फिर भी वह हर समय चेहरे पर मुस्कान ओढ़े रहती। अपने मन में मच रही हलचल का उसने सास-ससुर को भान तक नहीं होने दिया था। पर ससुर की अनुभवी आंखें शायद सब कुछ ताड़ गई थीं। कंचन की मुस्कुराहट के नीचे छिपा उसका दर्द उनसे छिपा नहीं था। आकाश का असामान्य व्यवहार उन्हें भीतर ही भीतर खाए जा रहा था।

पर कंचन और आकाश कुछ भी ज़ाहिर नहीं होने देते थे और बिना किसी पक्के सबूत के वे कुछ भी कह पाने या कर पाने में अपने को असमर्थ पा रहे थे। कंचन के शांत और संतुलित व्यवहार ने कभी यह ज़ाहिर होने ही नहीं दिया कि उसके भीतर कुछ ऐसा सुलग रहा है जिसे वे अपने स्नेह की बौछार से शीतल कर सकें। बस वे छटपटा कर ही रह जाते।

कभी-कभी कंचन का संयम और धैर्य भी जवाब देने लगता और उसका मन बाग़ी हो उठता। वह सोचने लगती कि वह क्यूं एक ऐसे आदमी के साथ अपना जीवन बर्बाद कर रही है जिसे उसके साथ ज़रा सी भी हमदर्दी नहीं है, प्यार तो दूर की बात है। क्यूं नहीं सास ससुर को बता देती कि आकाश के जीवन में कोई दूसरी लड़की है। पर तभी उसे ख़्याल आता कि उसके ससुर तो वैसे ही दिल के मरीज़ हैं और जब उन्हें यह पता चलेगा तो शायद वह यह सदमा बर्दाश्त न कर पाएं और फिर न जाने क्या अनिष्ट हो जाए? सोचकर वह भीतर तक सिहर उठती। एक अन्जान रिश्ता इतनी जल्दी इतना मज़बूत हो जाएगा, यह तो उसने सोचा भी न था।

कभी सोचती कि अपने मम्मी-पापा से बात करे, वही आकाश को समझायेंगे। शायद कोई रास्ता निकल ही आए और फिर भी यदि आकाश नहीं समझता हो तो वह मायके चली जाएगी। वह यहां क्यूं घुट-घुट कर मरे? क्यूं अपनी अनमोल ज़िन्दगी बर्बाद करे? पर तभी मां की दी हुई शिक्षा इस सोच के आगे दीवार बन कर खड़ी हो जाती- ‘बेटी शादी के बाद ससुराल के सारे दुःख-सुख तेरे अपने हैं। तुझे उनका सामना धैर्य व साहस से करना होगा। इस रास्ते पर चलते हुए कभी तेरे क़दम डगमगाने न पाएं। भूल से भी कभी कोई ऐसा क़दम न उठाना जो मायके से मिली शिक्षा व संस्कारों पर प्रश्न-चिन्ह लगा दे।’

और फिर इस निर्णय के बाद कि यह लड़ाई उसे अकेले ही लड़नी है और इसमें विजय भी प्राप्त करनी है, वह अपने प्रतिदिन के कामों में जुट जाती।

कंचन की पढ़ाई पूरी हो गई और उसका परीक्षा का परिणाम भी आ गया। वह प्रथम श्रेणी में पास हो गई। सास-ससुर के चेहरे प्रसन्नता से दमक रहे थे। मगर जीवन की अग्नि परीक्षा का परिणाम अभी तक नहीं आया था। तीन साल से यह परीक्षा देते देते वह टूटने लगी थी। आकाश के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया था। इन तीन वर्षों में एक दिन भी उसके मन में कंचन के प्रति दया, प्रेम या करुणा जैसे भाव नहीं पनपे थे। घर के कुत्ते तक से घरवालों को प्यार हो जाता है। वह तो फिर भी इंसान है, भावनाएं है उसमें। इतना सबकुछ करने के बावजूद भी वह आकाश के मन में अपने प्रति प्रेम नहीं उपजा पायी थी और अब वह शायद यह सब कर भी नहीं पायेगी।

पत्थरों को भी पिघलते सुना था उसने। पर आकाश तो न जाने किस मिट्टी का बना था जो उसके मन में कंचन के प्रति करुणा या प्यार पैदा ही नहीं हुआ था। अब कंचन टूट गई थी। उसके लिए यूं घुट-घुट कर जीना असह्य हो गया था। उसने आज बहुत सोचने के बाद यह फै़सला किया कि अपने ससुर से कहकर कहीं नौकरी तलाश लेगी और इस घर से कहीं दूर चली जाएगी।

जब कंचन के ससुर ने उसका यह फै़सला सुना तो वे बहुत दुःखी हुए। कंचन की हालत उनसे छिपी नहीं थी। पर वे असहाय से मूक दर्शक बने सब कुछ देख रहे थे। आकाश से वे कुछ भी पूछ पाने की हिम्मत इसलिए नहीं जुटा पा रहे थे कि कहीं आकाश ने उनके सामने मुंह खोलकर कह दिया कि वह कंचन को पत्नी का दर्जा नहीं दे सकता और यह विवाह उनकी मर्ज़ी से ज़बरदस्ती हुआ है, तो वह इसे बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे। आकाश की मां तो यह सब सुनकर जीते जी मर जाएगी। वह तो कंचन को अपनी बेटी से भी ज़्यादा प्यार करती है। उसे क्या कहकर समझायेंगे? पर कुछ न कुछ तो करना ही होगा। अपने सुख की ख़ातिर अब वह कंचन को और ज़्यादा घुटते नहीं देख सकते। कंचन इस घुटन से मुक्त हो जाए, इससे बड़ी उपलब्धि उनके लिए और क्या हो सकती है। वे कंचन के अपराधी है। उन्हीं की वजह से वह यह घुटन भरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर थी। कंचन की नौकरी तलाश करके वे अपनी भूल का प्रायश्चित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने खुद ही दौड़-भाग करके कंचन के लिए नौकरी ढूंढ़ दी। आकाश इस सब से अनभिज्ञ था।

वह समय भी आ गया जब कंचन विदा होकर इस घर से जा रही थी। जैसे ही वह सूटकेस उठा कर चलने को तैयार हुई, सामने से आकाश आता दिखाई दे गया। उसे देखकर कंचन की आंखें भर आई, कंठ अवरुद्ध हो गया। बड़ी कठिनाई से वह यही कह पायी थी, “आकाश! मैं जा रही हूं। मैंने तुम्हें हर बंधन से आज मुक्त कर दिया है। अब तुम अपने प्यार को पा सकते हो। जीवन की परीक्षा में मैं फेल हो गयी।” इससे आगे वह कुछ भी नहीं बोल पाई। उसकी हिचकी बंध गई। तभी आकाश का स्वर उभरा, “कौन कहता है कि जीवन की अग्नि परीक्षा में तुम फेल हो गयी हो। यह परीक्षा तो तुमने अव्वल दर्जे से पास की है। मुझे माफ़ कर दो कंचन। वह लड़की तो मात्र छलावा थी। उसका प्यार स्वार्थी था। उसे मुझसे नहीं, मेरी दौलत से प्यार था। पर तुम्हारा त्याग और बलिदान तो निःस्वार्थ था कंचन। मैं तुम्हारा गुनहगार हूं कंचन। मुझे जो चाहे सज़ा दे दो, मगर यह घर छोड़कर मत जाओ।”

“वह स्वार्थी थी तो तुम क्या थे? तुमने भी तो तीन साल तक अपने स्वार्थ की ख़ातिर मुझे तड़पाया। मेरे प्यार, समर्पण व आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचायी। अब तुम भी ज़रा इस पीड़ा को महसूस कर लो, फिर मेरे पास आना” और सूटकेस उठाकर कंचन तेज़ी से घर से निकल गयी।  

 

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