“बचपन एक खास उम्र है अब भी,
यह बात अलग है कि, अब इसमें शरारत नहीं होती “
किसी शायर की यह पंक्तियां आज के बचपन पर बिल्कुल सही बैठती है। आज के बच्चे टी.वी, इंटरनेट, मोबाइल इत्यादी के इतने दीवाने हैं कि उन्हें खाने पीने की सुध नहीं रहती, सुध रहती है तो स्टेटॅस अपडेट, प्रोफाईल फोटोज़ और दोस्तों की और मुहब्बत की।
इन बाकी लफ़्ज़ों में मुहब्बत जैसा पाक लफ़्ज़ अटपटा ज़रूर लगता है परन्तु आज के बच्चे “मुहब्बत” करने में बिल्कुल नहीं हिचकिचाते उनके लिए मुहब्बत मिर्ज़ा साहिबा की मुहब्बत नहीं है जो बचपन के भोलेपन से शुरू होकर फ़ोन होने तक साथ रही, उनके लिए मुहब्बत है। फ़ोन पर अश्लील संदेश, मूवीज़, एम.एम.एस, शारीरिक आकर्षण और अंत में सेक्स जिससे उनके चरित्र का तो सर्वनाश हो ही रहा है, इतनी छोटी उम्र में इन रास्तों पर चलने के कारण सेहत, पढ़ाई, कैरियर सब पहलू अंधकारमय होते नज़र आ रहे हैं।
पहले जहां पढ़ाई, सेवा, देश भक्ति जैसे गुण बच्चों में विकसित होते थे। वहां अब एक से ज़्यादा दोस्तों से फ्रेंडशिप निभाने, वन नाईट स्टैंड निभाने जैसे अवगुण विकसित हो रहे हैं जो कि अत्यंत लज्जा और चिंता का विषय है। क्योंकि अगर हमारी भावी पीढ़ी यूं ही जिस्मानी प्रेम की चाह में गिरती गई तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे। गैंगरेप, रेप और ऐसी कई दुर्घटनाएं हमाारे सामने ही हैं।
अंत में मेरा यही कहना है कि छोटी उम्र के बच्चों का प्यार आज के ज़माने में पाक-पवित्र नहीं रह गया है। आज “बचपन की मुहब्बत को दिल से न जुदा करना” वाला ज़माना न रह कर “आओ इन द बीच” वाला ज़माना आ गया है जो कि अत्यंत घातक है। इस पर अकुंश लगाना चाहिए। और ऐसा भी नहीं है कि यह संभव नहीं है।
आवश्यकता है तो बस अपने मनोरंजन और अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच बच्चों के लिए अापके स्नेह और समय की। इस भटकार के दौर में यदि बच्चों के घर परिवार में अच्छे सम्बन्ध रहेंगे तो उसके भटकने का अंदेशा कम रहेगा। इसी के साथ आज के समय के अनुसार बच्चे को समझना भी ज़रूरी होता है और ज़रूरत पड़ने पर उस पर अंकुश लगाना भी आवश्यक होता है।
-अनुराधा शर्मा